Muslims said, mob lynching is a crime against humanity.
फ़िरदौस ख़ान
पड़ौसी मुल्क बांग्लादेश के मयमनसिंह ज़िले में गत 18 दिसम्बर की रात 27 वर्षीय युवक दीपू चंद्र दास की हत्या और उसके शव को जलाए जाने की घटना अत्यंत निन्दनीय और मानवता को शर्मसार करने वाली है। यह न केवल एक व्यक्ति की हत्या है, बल्कि सभ्य समाज, मानवाधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों पर एक गहरा प्रहार है। दुनियाभर में इसकी कड़ी निन्दा हो रही है। भारत के मुसलमान भी इस घटना पर गहरी चिन्ता व्यक्त कर रहे हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम देश में रहने वाले ग़ैर-मुस्लिमों की रक्षा करना सरकार का दायित्व है।

हरियाणा के करनाल शहर के वरिष्ठ अधिवक्ता और
समाजसेवी मोहम्मद रफ़ीक़ चौहान कहते हैं- “बांग्लादेश में भीड़ द्वारा एक हिन्दू की हत्या इस्लाम के मूल सिद्धांतों से पूरी तरह विपरीत है। इस्लाम शान्ति और न्याय का धर्म है।
इस्लाम में निर्दोष लोगों की हत्या सबसे बड़ा पाप माना जाता है। पवित्र क़ुरआन में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एक निर्दोष की हत्या पूरी मानवता की हत्या के समान है। विभिन्न हदीसों में भी कहा गया है कि ग़ैर-मुस्लिम नागरिकों के प्राण, सम्पत्ति और सम्मान की रक्षा करना मुसलमानों पर फ़र्ज़ है।
उन्हें अपने धर्म के अनुसार धार्मिक कार्य करने और त्यौहार मनाने का अधिकार है। उन्हें सम्पत्ति रखने, व्यापार और नौकरी आदि करने की स्वतंत्रता प्राप्त है। उन्हें राज्य से सैन्य और नागरिक सुरक्षा का अधिकार है। उन्हें कई मामलों में मुसलमानों की भाँति सम्पत्ति और अनुबंध के क़ानूनों में समानता का अधिकार है। बुख़ारी और अबू दाऊद की हदीसों के अनुसार पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि जो ग़ैर-मुस्लिम को मारता है, वह जन्नत की ख़ुशबू भी नहीं सूंघ सकेगा।“

महान सुपर स्टार स्वर्गीय सुनील दत्त के गांव मंडोली ज़िला यमुनानगर (हरियाणा) के समाजसेवी
राणा आस मोहम्मद कहते हैं- “बांग्लादेश की घटना अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है। किसी भी देश में ऐसा नहीं होना चाहिए। देश में विभिन्न धर्मों एवं सम्प्रदायों के लोग निवास करते हैं।
इनमें कुछ बहुसंख्यक होते हैं और कुछ अल्पसंख्यक होते हैं। ऐसे में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा करना सरकार का दायित्व है। सरकार को उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए। इसके साथ-साथ बहुसंख्यक वर्ग का भी दायित्व है कि वह अल्पसंख्यकों के साथ दुर्व्यवहार न करें। उनके साथ मिलजुल रहें और उनकी सुरक्षा का ध्यान रखें। वह ऐसा कोई कार्य न करें, जिससे अल्पसंख्यक वर्गों के हितों की उपेक्षा हो या उनके जान-माल को हानि पहुंचे।
इस तरह की घटनाएं मानवता को शर्मसार करने वाली हैं। जिस देश में अल्पसंख्यकों या मज़लूमों पर ऐसे ज़ुल्म होते हैं, वहां की सरकार को चुल्लू भर पानी में डूब मर जाना चाहिए। ऐसी घटनाओं के लिए ज़िम्मेदार शासन और प्रशासन की कड़े शब्दों में निन्दा होनी ही चाहिए। उन्हें सत्ता में रहने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है।“

सोनीपत के समाजसेवी व
एडवोकेट राजेश ख़ान माच्छरी कहते हैं- “निसंदेह बांग्लादेश की घटना अत्यंत निन्दनीय है। किसी भी देश में विभिन्न समुदाय निवास करते हैं। सब उस देश के निवासी हैं। सबका देश पर समान अधिकार है।
यदि कोई व्यक्ति अपराध करता है, तो उसे सज़ा देने का कार्य न्यायालय का है। पीड़ित पक्ष को अपराधी के ख़िलाफ़ पुलिस में मामला दर्ज करवाना चाहिए। फिर आगे का काम पुलिस और न्यायालय का है। व्यक्ति को न्यायालय पर विश्वास होना चाहिए। यदि लोग स्वयं ही अपराधी अथवा आरोपी को सज़ा देने लगे, तो यह अराजकता ही है। किसी भी सभ्य समाज के लिए यह शुभ संकेत नहीं है। युवक पर ईशनिंदा के आरोप लगाए गये थे।
प्राय: देखा जाता है कि इस प्रकार के आरोपों का उपयोग निजी शत्रुता निकालने या अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने के लिए एक शस्त्र के रूप में किया जाता है। एक निर्दोष व्यक्ति को केवल अफ़वाहों के आधार पर पीट-पीटकर मौत के घाट उतार देना सरासर न्याय की हत्या है।“

हिसार के
समाजसेवी होशियार ख़ान कहते हैं- “मॉब लिंचिंग क़ानून का सरासर उल्लंघन है। लोकतंत्र में क़ानून का शासन सर्वोपरि होता है। किसी भी आरोप की जांच पुलिस और न्यायपालिका का कार्य है। जब भीड़ स्वयं ही न्यायाधीश और दंडाधिकारी बन जाती है, तो वह समाज में अराजकता का बीज बोती है।
मॉब लिंचिंग दर्शाती है कि कट्टरपंथी तत्व क़ानून को अपने हाथ में लेने में तनिक भी संकोच नहीं कर रहे हैं, जो किसी भी देश की सुरक्षा के लिए गंभीर ख़तरा है। इस प्रकार की घटनाएं मध्ययुगीन बर्बरता का स्मरण कराती हैं। ऐसी घटनाएं किसी भी धर्म या समाज में स्वीकार्य नहीं हो सकतीं। सरकार को चाहिए कि वह दोषियों को दंड दे और यह भी सुचिश्चित करे कि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।“

मेवात के
पर्यावरण कार्यकर्ता हाजी इब्राहिम ख़ान इस प्रकरण पर गहरी चिन्ता व्यक्त करते हुए कहते हैं- “मैं हर प्रकार की हिंसा के ख़िलाफ़ हूं, चाहे वह दुनिया के किसी भी देश में हो। बांग्लादेश में भीड़ द्वारा एक युवक की हत्या करना और फिर उसे साम्प्रदायिक रंग देने की जितनी भी निन्दा की जाए, वह कम ही है।
मैं बांग्लादेश की सरकार से गुज़ारिश करता हूं कि वह इस हत्याकांड में शामिल लोगों को कड़ी सज़ा दे। इसके साथ ही मैं वहां की अवाम से अपील करता हूं कि वह आपसी सद्भाव और भाईचारा बनाए रखे। देश में चैन-अमन क़ायम करे।
भारतीय विदेश मंत्रालय ने इसे एक ‘भयावह कृत्य’ की संज्ञा देते हुए अपराधियों को दंड देने और हिन्दुओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है। संयुक्त राष्ट्र ने भी बांग्लादेश में हो रही हिंसा और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा पर गहरी चिन्ता व्यक्त की है। एमनेस्टी इंटरनेशनल और स्थानीय बांग्लादेश हिन्दू बौद्ध ईसाई एकता परिषद ने इसे साम्प्रदायिक सौहार्द बिगाड़ने वाला षड्यंत्र बताया है।“
बहरहाल, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने इन हमलों की कड़ी निन्दा करते हुए गिरफ़्तारियां की हैं। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने भी हमलों की निन्दा की और कहा कि सभी नागरिकों के अधिकार समान हैं। कई मुस्लिम समुदायों ने हिन्दुओं के धार्मिक स्थानों की रक्षा भी की है।
वास्तव में इस प्रकार की घटनाएं सरकार और प्रशासन की नाकामी को दर्शाती हैं। इनसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर देश की छवि धूमिल होती है। उसकी पहचान एक ऐसे देश के रूप में बनती है, जहां अल्पसंख्यकों के मौलिक अधिकारों का हनन होता है और उनके जीवन की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं है।