एक शिक्षिका, तीन धर्म और इंसानियत की एक भाषा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-12-2025
A teacher, three religions, and one language of humanity.
A teacher, three religions, and one language of humanity.

 

d विदुषी गौड़

लोरेटो कॉन्वेंट इंटरमीडिएट कॉलेज, लखनऊ

लोरेटो कॉन्वेंट इंटरमीडिएट कॉलेज, लखनऊ मेरे लिए केवल एक विद्यालय नहीं था। वह मेरी पहली पाठशाला थी, जहाँ मैंने जाना कि भारत अपनी विविधताओं को टकराव में नहीं, बल्कि सौहार्द में कैसे बदल देता है।मेरे मन में कई यादें बसी हैं, पर एक स्मृति ऐसी है जो सबसे अधिक कोमल, रंगीन और स्थायी है। यह स्मृति मेरी अंग्रेज़ी की शिक्षिका, श्रीमती यास्मीन से जुड़ी है—जिन्होंने मुझे केवल व्याकरण, गद्य और शेक्सपियर ही नहीं सिखाया, बल्कि जीवन को समझने का एक गहरा दृष्टिकोण भी दिया।

https://www.awazthevoice.in/upload/news/1765614056WhatsApp_Image_2025-12-13_at_1.49.21_PM_(1).jpeg

सामंजस्य का मौन पाठ

लोरेटो एक कैथोलिक संस्थान है। सुबह की प्रार्थनाओं में मधुर स्वर में भजन गूँजते थे, दीवारों पर मदर मैरी की शांत तस्वीरें टँगी रहती थीं और सिस्टर्स का अनुशासन स्नेह से भरा होता था। उस वातावरण में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई और सिख,सभी धर्मों की छात्राएँ एक साथ खड़ी होकर प्रार्थना करती थीं। यह दृश्य हमारे लिए बिल्कुल सामान्य था, लेकिन आज सोचती हूँ तो वह असाधारण था।

सातवीं कक्षा में श्रीमती यास्मीन हमारे जीवन में आईं। वे लंबी, आत्मविश्वासी और अत्यंत सौम्य स्वर वाली थीं। उनकी आवाज़ में ऐसा जादू था कि साधारण-सी कविता भी किसी रहस्य की तरह लगती थी। वे मुस्लिम थीं और उनकी हाल ही में हुई शादी पूरे स्कूल में चर्चा का विषय थी। स्टाफ रूम बधाइयों और प्रशंसाओं से गूँज रहा था।

उन्होंने पारंपरिक मुस्लिम रीति-रिवाजों से निकाह किया था। हमने उनकी शादी की तस्वीरें देखी थीं,चमकीला दुपट्टा, हाथों में सजी मेहंदी और एक शालीन, खूबसूरत लखनवी दुल्हन की छवि।

वह क्षण, जो जीवन भर साथ रहा

शादी की छुट्टी के एक सप्ताह बाद जब वे कक्षा में लौटीं, तो मानो पूरा कमरा ठहर-सा गया। मैं दूसरी पंक्ति में बैठी थी। मैंने देखा—माँग में सजा चमकता सिंदूर, कलाई में लाल-सफेद चूड़ियाँ और हल्के रंग के कुर्ते पर टिका मंगलसूत्र।

पूरी कक्षा में एक क्षणिक विस्मय फैल गया। हम इतने छोटे थे कि धार्मिक सीमाओं को पूरी तरह समझ सकें, लेकिन इतना जरूर समझते थे कि कुछ अलग, कुछ अनोखा हमारे सामने था। अंततः एक छात्रा ने हिम्मत करके पूछा,“मैडम… आपने ये…?”

श्रीमती यास्मीन के चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान आई, जो आज भी मेरी स्मृति में चमकती है। उन्होंने मंगलसूत्र को हल्के से छूते हुए कहा,“हाँ। मुझे हिंदू दुल्हनें बहुत सुंदर लगती हैं—उनके रंग, उनकी खुशी। मुझे यह सब हमेशा से पसंद रहा है।”

उनके स्वर में न कोई संकोच था, न कोई सफ़ाई-सिर्फ अपनापन। उस दिन उन्होंने हमें रोमियो और जूलियट का बालकनी दृश्य पढ़ाया, पर असली पाठ कुछ और ही था। उन्होंने अपने धर्म की परंपराओं के अनुसार विवाह किया था, लेकिन दूसरे धर्म की सुंदर परंपराओं को प्रेमपूर्वक अपनाने में उन्हें कोई झिझक नहीं थी।

एक कैथोलिक स्कूल में, एक मुस्लिम शिक्षिका का हिंदू दुल्हन के आभूषण पहनना और उस पर किसी का आपत्ति न करना—अपने आप में एक सशक्त संदेश था। मुझे याद है, सिस्टर ऐनी ने उन्हें गलियारे में देखकर कहा था,“आप बहुत सुंदर लग रही हैं।”वह क्षण मानो पूरे संस्थान की मौन स्वीकृति था।

पहचान, जो और मजबूत हो गई

समय बीतता गया। वे कभी-कभी सिंदूर लगातीं, कभी चूड़ियाँ पहनतीं। हर दिन नहीं, केवल जब उनका मन होता। मेरे लिए वे आभूषण केवल सजावट नहीं थे,वे स्वतंत्रता, चयन और सम्मान के प्रतीक थेएक दिन मैंने उनसे धीमे स्वर में पूछा,“मैडम, क्या किसी को आपत्ति नहीं होती?”उन्होंने मुस्कुराकर कहा,“जब प्रेम छोटा होता है, तब आपत्तियाँ होती हैं। लेकिन जब प्रेम बड़ा हो, तो सबके लिए जगह होती है।”

उन शब्दों का अर्थ मैं तब पूरी तरह नहीं समझ पाई थी, लेकिन आज जानती हूँ,उस दिन मेरे भीतर कुछ स्थायी रूप से बदल गया था।

https://www.awazthevoice.in/upload/news/1765614101WhatsApp_Image_2025-12-13_at_1.49.21_PM_(3).jpeg

सह-अस्तित्व की सबसे सुंदर तस्वीर

आज, जब मैं धर्म, पहनावे और पहचान को लेकर होने वाले विवादों के बारे में पढ़ती हूँ, तो मुझे श्रीमती यास्मीन की वही छवि याद आती है—कक्षा में चॉक लिए खड़ी एक शिक्षिका, कलाई में लाल चूड़ियाँ, चेहरे पर आत्मविश्वास और मन में अपार उदारता।

उन्होंने मुझे सिखाया कि पहचान नाज़ुक नहीं होती। वह दूसरी संस्कृतियों के रंगों से टूटती नहीं, बल्कि और निखरती है।लोरेटो ने मुझे विषय पढ़ाए, लेकिन श्रीमती यास्मीन ने मुझे यह सिखाया कि धर्म आपस में नहीं टकराते,लोग टकराते हैं।

आज यदि कोई मुझसे पूछता है कि सांप्रदायिक सद्भाव कैसा दिखता है, तो मैं किसी पुस्तक या भाषण का हवाला नहीं देती।मैं बस अपनी अंग्रेज़ी शिक्षिका को याद करती हूँ—एक मुस्लिम महिला, जो एक कैथोलिक स्कूल में पढ़ाती थीं, हिंदू दुल्हन के आभूषण पहनकर, मुस्कुराते हुए, और हमें साहित्य के साथ-साथ सह-अस्तित्व का सबसे रंगीन और मानवीय पाठ पढ़ाती थीं।


पाठक अपने सांप्रदायिक सद्भाव या अंतरधार्मिक मित्रता से जुड़े अनुभव प्रकाशन हेतु [email protected] पर भेज सकते हैं।

— संपादक