जस्टिस सूर्यकांत: साफ़-सुथरे कामकाज के सबसे बड़े हिमायती

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 25-11-2025
Justice Surya Kant: The biggest champion of clean working
Justice Surya Kant: The biggest champion of clean working

 

 मधुबन पिंगले

जस्टिस सूर्यकांत ने हाल ही में देश के 53वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ली है। उन्हें काम करने के लिए 15महीने का वक़्त मिलेगा, जो पिछले कुछ कार्यकालों के मुक़ाबले काफ़ी लंबा है। सुप्रीम कोर्ट में पिछले कुछ समय में जस्टिस सूर्यकांत ने जिस तरह के अहम फैसले दिए हैं, उससे उम्मीद की जा रही है कि बतौर चीफ जस्टिस उनका कार्यकाल भी उतना ही शानदार रहेगा।

हिसार से सुप्रीम कोर्ट तक का सफ़र

सूर्यकांत का बचपन हरियाणा के हिसार ज़िले में बीता। वहीं से क़ानून की पढ़ाई करने के बाद 1984में उन्होंने वकालत शुरू की। पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में उन्होंने लंबे समय तक वकालत की। उनका ध्यान ज़्यादातर दीवानी और संविधान से जुड़े मामलों पर ही रहता था।

उनके करियर का ग्राफ़ लगातार ऊपर चढ़ता गया। 2004 में वे उसी हाई कोर्ट के जज बने और 2018में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस बने। इसके एक साल बाद ही उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट में जज के तौर पर हो गई।

ऐतिहासिक और निडर फैसले

जस्टिस सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट में अब तक के अपने छह साल के कार्यकाल में कई अहम मामलों में निर्णायक आदेश दिए हैं। केंद्र सरकार ने अगस्त 2019में जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370को रद्द कर दिया था। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। सरकार के उस फैसले को सही ठहराने वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच में जस्टिस सूर्यकांत भी शामिल थे।

इसके अलावा, उनकी बेंच ने अंग्रेज़ों के ज़माने से चले आ रहे राजद्रोह (Sedition) के क़ानून पर रोक लगा दी और सरकार को इसकी दोबारा समीक्षा करने का निर्देश दिया। उन्होंने सरकार को साफ़ शब्दों में कहा था कि जब तक समीक्षा नहीं हो जाती, तब तक इस क़ानून के तहत कोई भी नया केस दर्ज नहीं किया जाना चाहिए।

पारदर्शिता पर ज़ोर: पेगासस और वोटर लिस्ट

उन्होंने बार-बार इस बात पर ज़ोर दिया है कि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता यानी कामकाज का साफ़-सुथरा होना बहुत ज़रूरी है। बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग की तरफ़ से वोटर लिस्ट की जो गहरी जांच की गई थी, वह विवादों में आ गई थी। आयोग ने इस प्रक्रिया में 65लाख नाम हटा दिए थे। जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने ही आयोग को आदेश दिया था कि हटाए गए ये सभी नाम सार्वजनिक किए जाएं।

कुछ साल पहले 'पेगासस' जासूसी मामले को लेकर देश में काफ़ी हंगामा हुआ था। उस वक़्त सुप्रीम कोर्ट ने जांच के लिए जानकारों की एक कमेटी बनाई थी। इस मामले में जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने सरकार को खरी-खरी सुनाते हुए कहा था कि "राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को मनमानी करने की खुली छूट नहीं मिलेगी।"

सरकार के अधिकारों पर लगाम

अक्सर यह आरोप लगता है कि विधानसभा से पास किए गए बिलों को राज्यपाल लटका कर रखते हैं। ख़ास तौर पर उन राज्यों में यह ज़्यादा होता है जहां केंद्र की सत्ताधारी पार्टी के विरोधी दलों की सरकार है। ऐसे में राज्यपाल और राष्ट्रपति के अधिकारों को लेकर दायर याचिका पर भी जस्टिस सूर्यकांत की बेंच सुनवाई कर रही है। इस मामले के फैसले पर पूरे देश की नज़र है, क्योंकि इससे केंद्र और राज्य के रिश्तों पर गहरा असर पड़ेगा।

इसके अलावा, 2022 में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पंजाब दौरे पर थे, तब उनकी सुरक्षा में बड़ी चूक हुई थी। प्रधानमंत्री जैसे सबसे बड़े पद पर बैठे व्यक्ति की सुरक्षा में कमी रह जाना बहुत गंभीर बात थी। इसलिए इस मामले की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज इंदु मल्होत्रा की अध्यक्षता में पांच सदस्यों की कमेटी बनाई गई थी, उसमें भी जस्टिस सूर्यकांत शामिल थे।

सोशल मीडिया और अदालतें

बदलते हालात में न्याय व्यवस्था के सामने चुनौतियां भी बदली हैं। सोशल मीडिया आज एक बहुत बड़ा माध्यम बन गया है, और इस पर ट्रोल करने वाले लोग बेकाबू हो जाते हैं। इसका असर आम लोगों की सोच पर पड़ता है, इससे इनकार नहीं किया जा सकता।

लेकिन, चीफ जस्टिस पद की शपथ लेते हुए जस्टिस सूर्यकांत ने साफ़ कर दिया, "हम तथ्यों और क़ानून के आधार पर सुनवाई करते हैं। इसलिए सोशल मीडिया पर होने वाली ट्रोलिंग का किसी भी जज पर कोई असर नहीं होगा।"

भविष्य की चुनौतियां

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत सभी बार एसोसिएशन में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित रखने का श्रेय भी जस्टिस सूर्यकांत को ही जाता है।

उन्होंने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट में लटके हुए 90हज़ार और हाई कोर्ट व ज़िला अदालतों में अटके पांच करोड़ मुक़दमों को कम करना उनकी प्राथमिकता होगी। साथ ही, उनकी यह सलाह बहुत महत्वपूर्ण है कि "भारतीय जजों को अपने देश के न्याय-शास्त्र पर ज़्यादा भरोसा करना चाहिए।"

ख़ास बात यह है कि चीफ जस्टिस के शपथ ग्रहण समारोह में भूटान, मलेशिया, केन्या, मॉरीशस, नेपाल और श्रीलंका जैसे छह देशों के सदस्य मौजूद थे। इससे साबित होता है कि विकासशील देश भारतीय न्याय व्यवस्था को सम्मान की नज़र से देखते हैं। इससे यह बात साफ़ होती है कि भारतीय न्याय प्रणाली सक्षम है और उसे उतनी ही ताक़त के साथ दुनिया के सामने जाना चाहिए।