मिर्जा गालिब: शायरी का जादू जो सदियों तक जीवित रहेगा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 27-12-2025
Mirza Ghalib: The magic of his poetry will live on for centuries.
Mirza Ghalib: The magic of his poetry will live on for centuries.

 

डॉ. प्रितम भि. गेडाम

"हाथों की लकीरों पर मत जा ऐ ग़ालिब, नसीब उनके भी होते हैं, जिनके हाथ नहीं होते।"

उर्दू-फारसी के सर्वकालिक महान शायर मिर्जा असदुल्लाह बेग खान उर्फ ”गालिब“ अपने मन व देश की मनोदशा को स्वंयम की गजलो व शायरी के माध्यम से लोगों तक पहुंचाते थे। उनके द्वारा रचित शेरो-शायरी आज भी लोगों के जेहन और जुबान पर बनी हुई हैं। कितने ही दौर आये और गए लेकिन ग़ालिब का जादू जो का त्यों है, गालिब को शायरी का पर्यायवाची भी कहा जाता है उनके द्वारा लिखी गई शायरी हर वर्ग के व्यक्ति को पसंद हैं। ग़ालिब की रचनाएँ न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में पसंद की जाती हैं। फारसी कविता के प्रवाह को हिंदुस्तानी जुबान में लोकप्रिय कराने का श्रेय भी इनको दिया जाता हैं। गालिब के लिखे पत्र, जो उस समय प्रकाशित नहीं  हुए थे, इन पत्रों को भी उर्दू लेखन का महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता हैं।

fमिर्जा गालिब का जन्म 27दिसंबर 1797को उत्तर प्रदेश के आगरा में हुआ। इनके पूर्वज तुर्की में रहा करते थे, उनके पिता का नाम मिर्जा अब्दुल्लाह बेग खान और माता का नाम इज्जत-उत-निसा बेगम था। 1803में अलवर में एक युद्ध के दौरान मिर्जा गालिब के पिता की मृत्यु हुई।

11वर्ष की उम्र से ही मिर्जा गालिब ने कविता लिखना शुरू कर दिया था एवं 13वे साल में उनकी शादी उमराव बेगम से हुई। उनके सात बच्चे हुए लेकिन एक भी जीवित नहीं रह पाया। आरिफ अर्थात गोद लिया हुआ बेटे को भी अपने बच्चे की तरह पाला पर फिर भी अन्य बच्चो की तरह यह बच्चा भी ज्यादा समय नही जी पाया।

ताउम्र उन्हें इस बात का दुख था, इस बात का जिक्र उन्होने अपनी कविता कैद-ए-हयात-ओ-बंद-ए-गम मे दर्शाया था। मिर्जा गालिब मुगल काल के आखरी शासक बहादुर शाह जफर के दरबारी कवि थे।

1850में बहादुर शाह जफर द्वितीय के दरबार में गालिब को दबीर-उल-मुल्क की उपाधि से नवाजा गया और इसके अलावा उनको नज्म-उद-दौला के खिताब से नवाजा गया। मिर्जा गालिब का मुगल दरबार में बहुत मान-सम्मान था। 1854 में खुद बहादुर शाह जफर ने उनको कविताओं के लिए शिक्षक के रूप में नियुक्त किया, व्यंग्य करने वालों पर गालिब शायरी लिख दिया करते थे।

मुगलों के पतन के दौरान उन्होंने मुगलों के साथ बहुत वक्त बिताया। मुगल साम्राज्य के पतन के बाद ब्रिटिश सरकार ने गालिब पर ध्यान नहीं दिया और उन्हें दी जाने वाली पेंशन भी बंद करवा दी। वह अपनी हर रचना मिर्ज़ा, असद या ग़ालिब के नाम से लिखते थे, इसलिए वह इस नाम से प्रसिद्ध हो गये।

sमिर्जा गालिब का व्यक्तित्व बड़ा ही आकर्षक था। वस्त्र विन्यास पर विशेष ध्यान रखते थे।

खाने-खिलाने के शौकीन, स्वादिष्ट व्यंजनों के प्रेमी थे। मिर्जा गालिब जीवन के संघर्ष से भागते नहीं थे, वह इस संघर्ष को जीवन का एक अंश तथा आवश्यक भाग समझते थे।

मानव की उच्चता तथा मनुष्यत्व को सब कुछ मानकर उसके भावों तथा विचारों का वर्णन करने में वह अत्यंत निपुण थे और यह वर्णनशैली ऐसे नए ढंग की है कि, इसे पढकर पाठक मुग्ध हो जाता हैं।

उनके स्वभाव में विनोदप्रियता तथा वक्रता भी थी, ये सब विशेषता उनकी शेरोशायरी में भी झलकती हैं।

वे मदिरा प्रेमी भी थे, इसलिए मदिरा के संबंध में उन्होंने भाव प्रकट किये है, उनके शेर ऐसे चुटीले तथा विनोदपूर्ण है कि, उनका जोड़ उर्दू कविता में अन्यत्र नहीं मिलता।

वह अत्यंत शिष्ट एवं मित्रपरायण थे। उनके मित्रों का दायरा बहुत बड़ा था, जिसमे सभी धर्म व प्रांत के लोग थे और वे सर्व धर्म प्रिय व्यक्ति थे। उदार व्यक्तित्व के धनी व उसी उदार दृष्टि के बावजूद आत्माभिमानी थे।

 मिर्जा गालिब ने कविता अर्थात गजल, शेरो शायरी में ही नहीं, गद्य लेखन में भी नया मार्ग प्रशस्त किया हैं। अपनी रचनाओं में सरल शब्दों का प्रयोग किया हैं। उर्दू गद्य-लेखन की नींव रखने के कारण इन्हे वर्तमान उर्दू गद्य का जन्मदाता भी कहा जाता हैं।

इनकी अन्य रचनाएँ लतायफे गैबी, दुरपशे काव्यानी, नाम-ए-ग़ालिब, मेहनीम इत्यादि गद्य मे हैं। फारसी के कुल्लियात मे फारसी कविताओं का संग्रह है। दस्तंब मे इन्होने 1857ई. के बलवे का आंखों देखा विवरण फारसी गद्य मे लिखा है, इसके अलावा उर्दू-ए-हिंदी, उर्दू-ए-मुअल्ला भी हैं।

इनकी रचनाओं में देश की तत्कालीन, राजनीतिक, आर्थिक स्थिति का वर्णन हुआ हैं। उनकी खूबसूरत शायरी का संग्रह दीवान-ए-गालिब का अनेक स्वदेशी व विदेशी भाषाओं में अनुवाद हो चुका हैं।

ग़ालिब की शायरी ने उर्दू अदब को नए पंख और नया आसमान दिया हैं। मिर्ज़ा ग़ालिब हमेशा उर्दू के सबसे बड़े शायरों में रहेंगे। उर्दू और फारसी के बेहतरीन शायर के रूप में उनकी ख्याती दूर-दूर तक फैली तथा अरब एवं अन्य राष्ट्रों में भी वे अत्यंत लोकप्रिय हुए।

ग़ालिब की शायरी का बड़ा हिस्सा फारसी में है, कम उर्दू में है लेकिन जितना लिखा है, वो ही आने वाले कई जमाने तक लोगों को सोचने पर मजबूर करने के लिए काफी हैं। ग़ालिब की शायरी की सबसे खूबसूरत बात ये है कि, वो किसी एक रंग या किसी एक एहसास से बंधे नहीं, जीवन के हर पड़ाव की स्थिति पर उनका शेर हैं।

गालिब शायद उर्दू के इकलौते ऐसे शायर है, जिनका कोई न कोई शेर जिंदगी के किसी न किसी मौके पर आधारित हैं। ग़ालिब की शायरी में एक तड़प, एक तंज, एक चाहत, एक आशिकाना अंदाज देखने को मिलता है जो सहज ही पाठकों के दिल को छू लेता हैं। कुछ ऐसे ही उनकी मशहूर रचनाओं के चंद शेर प्रस्तुत हैं।

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मिर्जा गालिब साहब के जन्मदिन के मौके पर उनके गजलों की कुछ पंक्तियाँ और कुछ चुनिंदा शेर पेश हैं।

 इस कदर तोड़ा है मुझे उसकी बेवफाई ने ग़ालिब,

अब कोई अगर प्यार से भी देखे तो बिखर जाता हूँ

 फिर उसी बेवफा पे मरते है, फिर वही जिंदगी हमारी है,

बेखुदी बेसबब नही गालिब, कुछ तो है जिसकी पर्दादारी है।

 ग़ालिब बुरा न मान जो वाइज बुरा कहे,

ऐसा भी कोई है के सब अच्छा कहे जिसे।

 आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक,

कौन जीता है तेरी जुल्फ के सर होते तक।

  बगीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे,

होता है शब-ओ-रोज तमाशा मिरे आगे।

 बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,

आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना।

  दिल-ए-नादाँ तुझे हुआ क्या है,

आखिर इस दर्द की दवा क्या है।

 इशरत-ए-क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना,

दर्द का हद से गुजरना है दवा हो जाना।

काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब,

शर्म तुमको मगर नहीं आती

 कहाँ मयखाने का दरवाजा गालिब और कहां वाइज

पर इतना जानते हैं कल वो जाता था कि हम निकले।

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 मिर्जा गालिब के जीवन पर फिल्म, धारावाहिक व नाटकों का मंचन होता रहा हैं। हालांकि गजल की दुनिया में ग़ालिब बहुत मशहूर हुए और उनकी राह पर देश-दुनिया के गायक भी चल पड़े जैसे जगजीत सिंह, मेहंदी हसन, आबिदा परवीन, फरीदा खानुम, टीना सानी, बेगम अख्तर, गुलाम अली, राहत फतेह अली खान कुछ ऐसे ही गायक हैं।

भारत व पाकिस्तान सरकार की ओर से मिर्जा गालिब पर सिक्के, डाक टिकट जारी किये गये। मिर्जा गालिब ने जो विश्व को धरोहर दी है, वो अतुलनीय हैं। अंतरराष्ट्रीय, राष्ट्रीय, राज्य स्तर पर बेहतरीन रचनाओं के लिए मिर्जा गालिब के नाम से बहुत से पुरस्कार व सम्मान दिए जाते हैं।

दिल्ली में ग़ालिब संग्रहालय बनाया गया हैं। गालिब अकादमी, गालिब इंस्टीट्यूट, गालिब की हवेली देश में मशहूर हैं। उनकी याद में दुनिया भर में मुशायरे आयोजित किए जाते हैं। मिर्जा गालिब हमेशा अपनी रचनाओं से पाठकों के दिलो मे राज करते रहेंगे, चाहे कितनी भी सदियां गुजर जाए और वे नए रचनाकारों को कल भी प्रेरणा देते थे आज भी प्रेरणा देते है और हमेशा प्रेरणा देते रहेंगे।