डॉ. काकोली हलदर
टीके मानव इतिहास के सबसे प्रभावशाली और सफल चिकित्सा आविष्कारों में से एक हैं.इनकी बदौलत आज हम उन अनेक घातक बीमारियों से सुरक्षित हैं, जिनसे कभी लाखों लोग अपनी जान गंवाते थे.पोलियो, चेचक, डिप्थीरिया, खसरा और टाइफाइड जैसी संक्रामक बीमारियाँ टीकों के कारण या तो पूरी तरह समाप्त हो चुकी हैं या नियंत्रण में हैं.फिर भी, जब भी कोई नया टीका जारी होता है या कोई राष्ट्रीय टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया जाता है, समाज के कुछ वर्गों में अफवाहें और गलत धारणाएँ फैलने लगती हैं.यह प्रवृत्ति केवल विकासशील देशों तक सीमित नहीं है, बल्कि विकसित देशों में भी देखी जाती है.यह समझना ज़रूरी है कि जब वैज्ञानिक प्रमाण स्पष्ट रूप से बताते हैं कि टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं, तब भी अफवाहें क्यों फैलती हैं.
टीकाकरण के बारे में अफवाहें फैलने के कई कारण हैं.पहला कारण है गलत जानकारी और अज्ञानता। बहुत से लोग यह नहीं जानते कि टीके किस तरह काम करते हैं या वे बीमारियों से बचाव में कितने आवश्यक हैं.

कई लोगों को लगता है कि जब तक वे बीमार नहीं पड़ते, उन्हें टीका लगवाने की जरूरत नहीं है, जबकि सच्चाई यह है कि टीके बीमारी से बचाव का उपाय हैं, इलाज का नहीं.दूसरी वजह है अविश्वास और षड्यंत्र सिद्धांत.
कुछ लोग सरकार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) या दवा कंपनियों के प्रति अविश्वास रखते हैं और इसी का फायदा उठाकर कुछ समूह झूठी बातें फैलाते हैं, जैसे कि टीकों से पौरुष शक्ति नष्ट हो जाती है, बांझपन होता है, या सरकार लोगों को नियंत्रित करने के लिए टीके दे रही है.कोविड-19 महामारी के दौरान भी ऐसी अफवाहें खूब फैलीं कि टीकों में माइक्रोचिप्स हैं या वे डीएनए बदल देते हैं, जबकि वैज्ञानिक अध्ययनों ने इन सभी दावों को झूठा साबित किया है.
कुछ अफवाहें धार्मिक या सांस्कृतिक मान्यताओं के आधार पर भी फैलती हैं.कई बार कहा जाता है कि टीके हलाल नहीं हैं या किसी धर्म के सिद्धांतों के विरुद्ध हैं.जबकि यह पूरी तरह निराधार है, क्योंकि टीकों को तैयार करने और स्वीकृत करने से पहले उनके घटकों की वैज्ञानिक और नैतिक जांच की जाती है.

इसके अलावा, आज सोशल मीडिया के दौर में अफवाहें बिजली की गति से फैलती हैं.बिना किसी पुष्टि या प्रमाण के, लोग गलत जानकारी को शेयर कर देते हैं, जिससे डर और भ्रम का माहौल बन जाता है.
अब अगर हम तथ्यों की बात करें तो वैज्ञानिक साक्ष्य बताते हैं कि टीके पूरी तरह सुरक्षित और प्रभावी हैं.वे शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रशिक्षित करते हैं ताकि वह किसी विशेष रोगजनक से लड़ सके.इससे व्यक्ति उस बीमारी से सुरक्षित रहता है और संक्रमण फैलने की संभावना घट जाती है.
पोलियो और चेचक जैसी बीमारियों का लगभग उन्मूलन इसी कारण संभव हुआ है.किसी भी टीके को बाजार में लाने से पहले उसके कई चरणों में नैदानिक परीक्षण किए जाते हैं.विश्व स्वास्थ्य संगठन, राष्ट्रीय नियामक संस्थान और स्वतंत्र वैज्ञानिक एजेंसियाँ यह सुनिश्चित करती हैं कि टीका सुरक्षित और प्रभावी हो.
टीके केवल व्यक्ति को नहीं, बल्कि पूरे समाज को सुरक्षा प्रदान करते हैं.जब किसी समुदाय के अधिकांश लोग टीकाकृत होते हैं, तो संक्रमण का फैलाव रुक जाता है और वे लोग भी सुरक्षित रहते हैं जो किसी चिकित्सकीय कारण से टीका नहीं लगवा सकते.इसे झुंड प्रतिरक्षा या हर्ड इम्युनिटी कहा जाता है.
टीकों के साथ जुड़ी अफवाहें कोई नई बात नहीं हैं.जब एडवर्ड जेनर ने 18वीं सदी में चेचक का टीका विकसित किया, तब भी लोगों ने यह अफवाह फैलाई कि टीका लगवाने से इंसानों में गाय जैसे लक्षण विकसित हो जाएंगे, क्योंकि इसमें काऊपॉक्स वायरस का इस्तेमाल हुआ था.यह धारणा पूरी तरह गलत साबित हुई। 1998 में ब्रिटिश डॉक्टर एंड्रयू वेकफील्ड ने दावा किया कि एमएमआर (खसरा, कण्ठमाला, रूबेला) टीका बच्चों में ऑटिज़्म का कारण बनता है.

बाद में यह अध्ययन झूठा साबित हुआ, उनका लाइसेंस रद्द कर दिया गयाऔर शोधपत्र को वापस ले लिया गया.बावजूद इसके, इस एक झूठी रिपोर्ट ने दुनियाभर में टीकाकरण के प्रति हिचकिचाहट फैला दी.2019 में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ‘वैक्सीन हिचकिचाहट’ को वैश्विक स्वास्थ्य के दस सबसे बड़े खतरों में शामिल किया.
कोविड-19 महामारी के दौरान तो अफवाहों का दायरा और भी बढ़ गया.सोशल मीडिया पर टीकों के बारे में अजीबोगरीब दावे किए गए.कोई कहता था कि इसमें माइक्रोचिप्स हैं, तो कोई कहता था कि यह लोगों के डीएनए को बदल देता है.विज्ञान ने एक-एक कर इन सभी मिथकों को गलत साबित किया.
हमें टीकों के बारे में अफवाहों पर विश्वास क्यों नहीं करना चाहिए? सबसे पहले, इसलिए कि वैज्ञानिक समुदाय में इस बात पर सर्वसम्मति है कि टीके सुरक्षित और प्रभावी हैं.अरबों लोगों को सफलतापूर्वक टीके लगाए जा चुके हैं, और उनका फायदा किसी भी संभावित दुष्प्रभाव से कहीं अधिक है.
दूसरा, टीकाकरण घातक बीमारियों से बचाव का सबसे प्रभावी तरीका है.पोलियो, खसरा, टाइफाइड, और डिप्थीरिया जैसी बीमारियाँ, जो कभी लाखों लोगों की जान लेती थीं, अब लगभग समाप्त हो चुकी हैं.तीसरा, हमें हमेशा विश्वसनीय स्रोतों जैसे कि विश्व स्वास्थ्य संगठन, स्वास्थ्य मंत्रालय या मान्यता प्राप्त चिकित्सकों से ही जानकारी लेनी चाहिए.
सोशल मीडिया पर फैलने वाली अपुष्ट जानकारी अक्सर भ्रम फैलाती है.चौथा, यदि लोग टीका नहीं लगवाते, तो बीमारियों के दोबारा फैलने की संभावना बढ़ जाती है.इतिहास में कई बार ऐसा हुआ है कि टीकाकरण दर घटने पर पहले से नियंत्रित बीमारियाँ फिर उभर आईं.
इसलिए यह आवश्यक है कि हम अफवाहों और गलत सूचनाओं पर ध्यान न दें.टीकाकरण केवल व्यक्तिगत सुरक्षा नहीं बल्कि सामुदायिक जिम्मेदारी भी है.जब हम टीका लगवाते हैं, तो न केवल खुद को, बल्कि अपने परिवार, पड़ोस और पूरे समाज को संक्रमण से बचाते हैं.

हमें विज्ञान और प्रमाणित जानकारी पर भरोसा करना चाहिएऔर अफवाहों से दूर रहना चाहिए.टीके मानवता की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक हैं—वे जीवन बचाते हैं, समाज को सुरक्षित बनाते हैं और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वस्थ भविष्य सुनिश्चित करते हैं.अतः समय पर टीकाकरण करवाना, दूसरों को इसके लिए प्रेरित करना और अफवाहों को नज़रअंदाज़ करना हम सबका कर्तव्य है.
(डॉ. काकोली हलदर, एमबीबीएस, एमडी (माइक्रोबायोलॉजी), सहायक प्रोफेसर)