देस-परदेस : रूसी तेल पर पाबंदियाँ और भारत-अमेरिका रिश्ते

Story by  प्रमोद जोशी | Published by  [email protected] | Date 28-10-2025
Domestic and International Affairs: Sanctions on Russian Oil and India-US Relations
Domestic and International Affairs: Sanctions on Russian Oil and India-US Relations

 

 

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प्रमोद जोशी

रूस पर दबाव बढ़ाने के लिए उसकी दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों और 34सहायक कंपनियों पर अमेरिका ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनका असर भारत पर भी पड़ेगा. कोई भी बैंक, जो इन कंपनियों के तेल की खरीद में मदद करेगा, उसे अमेरिकी वित्तीय प्रणाली से अलग किया जा सकता है.

रोज़नेफ्ट और लुकॉइल नामक इन कंपनियों से भारत की दो कंपनियाँ (रिलायंस और नायरा) तेल खरीदती रही हैं. रिलायंस का रोज़नेफ़्ट से क़रार था और नायरा में भी रोज़नेफ़्ट की हिस्सेदारी है. रिलायंस ने प्रतिबंधों को स्वीकार करने के साथ भारत सरकार के साथ खड़े होने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की है.

उधर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता निर्णायक मोड़ पर है. लगता है कि दोनों देशों ने कुछ पत्ते दबाकर रखे हैं, जिनके सहारे मोल-तोल चल रहा है. इस दौरान अमेरिका यह संकेत भी दे रहा है कि दोनों के रिश्तों में बिगाड़ नहीं है.

ट्रंप इस हफ्ते दक्षिण पूर्व और पूर्व एशिया की यात्रा पर आए हैं. मलेशिया, जापान और दक्षिण कोरिया में वे रुकेंगे. उनकी चीन के शी जिनपिंग के साथ बैठक होगी.

वे साबित करना चाहेंगे कि अमेरिका का अब भी दक्षिण पूर्व एशिया में बोलबाला है, जहाँ बीजिंग का दबदबा बढ़ रहा है. उम्मीद थी कि उनकी और पीएम मोदी की मुलाकात कुआलालंपुर में आसियान शिखर सम्मेलन में होगी, पर मोदी वहाँ नहीं गए. ज़ाहिर है कि भारत सरकार, अमेरिका के साथ निकटता दिखाने से बच रही है.

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अन्य प्रतिबंध

रूस की सैन्य क्षमताओं को कम करने के उद्देश्य से विमान उपकरण और सेमीकंडक्टर जैसे उच्च तकनीक वाले उत्पादों के रूस को निर्यात पर रोक भी लगाई गई है. ये निर्यात प्रतिबंध उन वस्तुओं पर भी लागू होंगे, जिनका उत्पादन अन्य देश अमेरिकी तकनीक का उपयोग करके करते हैं. अमेरिकी वित्तमंत्री स्कॉट बेसेंट ने कहा कि ‘युद्ध को ख़त्म करने से इनकार’ की वजह से प्रतिबंध जरूरी हैं.

अमेरिका ने यह कार्रवाई अकेले नहीं की है, बल्कि उसके सहयोगियों ने भी की है. पिछले हफ्ते ब्रिटेन ने भी इन्हीं दोनों कंपनियों पर प्रतिबंध लगाए थे. यूरोपियन यूनियन ने भी प्रतिबंध लगाए हैं.

कीमतें बढ़ेंगी

इन प्रतिबंधों का तात्कालिक प्रभाव दुनिया में तेल की कीमतों पर भी पड़ेगा, जो बढ़ने लगी हैं. बावज़ूद इसके लगता नहीं है कि इससे यूक्रेन में लड़ाई रुक जाएगी या रूस अपनी सैनिक कार्रवाई से पीछे हट जाएगा.

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा, उन्होंने कहा, कोई भी स्वाभिमानी देश और व्यक्ति दबाव में आकर कोई फैसला नहीं करेगा. संघर्ष की मूल वजहों को सुलझाना ज़रूरी है, इसका मतलब है कि डोनबास पर रूस की पूर्ण संप्रभुता को मान्यता देना और यूक्रेन का हथियार डालना.कम से कम वर्तमान स्थितियों में यूक्रेन और यूरोपीय देश इस बात को किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं करेंगे.

इन प्रतिबंधों की घोषणा के एक दिन पहले डॉनल्ड ट्रंप ने कहा था कि उनकी पुतिन के साथ बुडापेस्ट में होने वाली बैठक अनिश्चित काल के लिए टाल दी गई है. दूसरी तरफ रूस ने चेतावनी दी है कि इन प्रतिबंधों से विकासशील देशों की ऊर्जा सुरक्षा पर असर पड़ेगा.

यूक्रेन टॉमहॉक क्रूज़ मिसाइलें अमेरिका से माँग रहा है. यों तो सर्दी नज़दीक है, जिसके कारण यूक्रेन में लड़ाई अब कुछ महीने धीमी रहेगी.

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प्रतिबंधों की पृष्ठभूमि

रोज़नेफ्ट और लुकॉइल दोनों रूसी कंपनियां हर रोज़ क़रीब 31लाख बैरल तेल का निर्यात करती हैं. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत ने इस साल जनवरी से जुलाई के बीच औसतन 17.3 लाख बैरल रूसी कच्चा तेल रोज़ाना आयात किया.

अमेरिका के कौंसिल ऑन फॉरेन रिलेशंस (सीएफआर) के अनुसार मार्च 2022में, वाशिंगटन ने रूसी कच्चे तेल, लिक्विफाइड नेचुरल गैस और कोयले के आयात पर प्रतिबंध लगाया था और अधिकतर रूसी ऊर्जा कंपनियों में अमेरिकी निवेश को प्रतिबंधित कर दिया था.

उसी वर्ष दिसंबर में, अमेरिका और ग्रुप ऑफ सेवन सहयोगियों ने अन्य आयातक देशों, जैसे चीन और भारत, द्वारा रूसी कच्चे तेल के लिए भुगतान की जाने वाली कीमत को सीमित करने के उद्देश्य से नियम लागू किए. 2024 में, अमेरिका ने रूसी संवर्धित यूरेनियम के आयात पर रोक लगा दी, जिससे रूस के राजस्व का एक प्रमुख स्रोत बंद हो गया.

अब ट्रंप ने अपने नए कार्यकाल में पहली बार रूस के खिलाफ प्रत्यक्ष दंडात्मक कार्रवाई की है. यूक्रेन पर आक्रमण के समय, रूस का सबसे बड़ा ऊर्जा निर्यात बाजार यूरोप था. यूरोपीय संघ की खपत के लगभग 40 प्रतिशत प्राकृतिक गैस और एक-तिहाई खनिज तेल की आपूर्ति रूस कर रहा था.

तमाम प्रतिबंधों के बावज़ूद हंगरी और अन्य सदस्यों की निर्भरता और विरोध को देखते हुए, यूरोपीय संघ ने गैस आयात पर समूह-व्यापी प्रतिबंध नहीं लगाए हैं. 2023की शुरुआत में, उसने डीजल और गैसोलीन जैसे रूसी परिष्कृत तेल उत्पादों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाया. अब 2027के अंत तक रूसी गैस के आयात को पूरी तरह से समाप्त करने का संकल्प किया है.

रूस को धक्का

प्रतिबंधों ने रूस की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचाया ज़रूर है. तेल और गैस राजस्व में गिरावट आई है और रूसी केंद्रीय बैंक की संपत्तियाँ ज़ब्त होने का ख़तरा है. फिर भी इन प्रतिबंधों से भारी धक्का नहीं लगा है. यूक्रेन के ख़िलाफ़ उसकी आक्रामकता भी नहीं रुकी है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान लगाया है कि 2024में रूस का सकल घरेलू उत्पाद वास्तव में 3.6प्रतिशत बढ़ा है—जो लड़ाई पर हुए भारी खर्च के बावज़ूद अमेरिका और कई अन्य पश्चिमी देशों की तुलना में बेहतर वृद्धि दर है.

प्रतिबंध-समर्थकों का कहना है कि ये उपाय सिर्फ़ रूस की अर्थव्यवस्था को कुचलने या युद्ध समाप्त करने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह संदेश देने के लिए हैं कि हमारी अनदेखी करने और पड़ोसी देश पर हमले का जवाब दिया जाएगा.

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रूसी जवाब

रूस ने भी यूरोप के खिलाफ जवाबी कार्रवाई करने के लिए अपनी ताकत का इस्तेमाल किया है. अगस्त 2022 में, मॉस्को ने नॉर्ड स्ट्रीम 1पाइपलाइन को बंद कर दिया, जो जर्मनी को लगभग 60 प्रतिशत प्राकृतिक गैस की आपूर्ति करती थी.

2022 के अपने आक्रमण से पहले, रूस ने केंद्रीय बैंक के भंडार में 640अरब डॉलर से ज़्यादा जमा करने में कई साल लगाए, जिनमें से अब करीब आधा पश्चिमी प्रतिबंधों के अधीन है. मॉस्को ने अपने द्विपक्षीय व्यापार का ज़्यादातर हिस्सा रूबल में करने के लिए भी समायोजन किया है.

चीन के साथ रूसी व्यापार में काफी वृद्धि हुई है. 2023में, चीन ने रिकॉर्ड मात्रा में रूसी ऊर्जा का आयात किया. दोनों देशों के बीच लगभग 92 प्रतिशत व्यापार अब रूबल और चीनी युआन में होता है, जबकि पहले यह केवल 25प्रतिशत था.

प्रतिबंधों की उपादेयता

ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल में ईरान पर प्रतिबंधों का आक्रामक इस्तेमाल किया था, लेकिन वे इनके औचित्य पर संदेह भी व्यक्त करते रहे हैं. पिछले साल न्यूयॉर्क के इकोनॉमिक क्लब में उन्होंने कहा था, प्रतिबंधों के बेतहाशा  इस्तेमाल से डॉलर को नुकसान पहुँचता है, क्योंकि प्रभावित देश प्रतिबंधों से बचने के लिए दूसरी मुद्राओं का इस्तेमाल करने लगे हैं.

रूस ने क्रिप्टोकरेंसी का रुख किया है और ब्रिक्स मुद्रा की बात शुरू की है, ताकि ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका जैसे देश डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करें.

रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार चीन की सरकारी रिफाइनरियों ने समुद्री रास्ते से आने वाले रूसी खनिज तेल की ख़रीद ज़रूर रोकी है, पर कुछ रिफ़ाइनर पाइपलाइन के ज़रिए भी अच्छी मात्रा में आयात कर रहे हैं.

भारतीय रिफाइनर रूसी कच्चे तेल का आयात तीसरे और यहाँ तक कि चौथे पक्ष के व्यापारियों के माध्यम से भी करते हैं, जिन्हें काली सूची में नहीं डाला गया है. वे अपनी खरीदारी में कटौती शायद तभी करेंगे सरकार उन्हें ऐसा करने का निर्देश देगी.

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भारत पर असर

ट्रंप बार-बार कह रहे हैं कि भारत अब रूस से तेल नहीं खरीदेगा. बेशक कमी ज़रूर आएगी. यह कितनी होगी और भारत वैकल्पिक व्यवस्था क्या करेगा, यह देखना है. भारत को यह भी साबित करना है कि वह अमेरिकी दबाव में नहीं है.  

मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता अब निर्णायक मोड़ पर है. इसकी व्याख्या करते हुए, वरिष्ठ अधिकारी ने कहा: सैद्धांतिक रूप से, हम सहमत हो गए हैं और सौदे के पाठ को अंतिम रूप दे रहे हैं.

शायद इन पंक्तियों के प्रकाशित होने तक यह काम भी हो गया होगा. जहाँ तक सौदे का सवाल है, दोनों पक्षों में कमोबेश सहमति है, पर अंतिम घोषणा के लिए राजनीतिक सहमति चाहिए. 

इसका मतलब है कि पेच केवल आर्थिक-रिश्तों में नहीं हैं, बल्कि कहीं और है. वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को बर्लिन में संकेत दिया था कि भारत से कोई भी समझौता ‘सिर पर बंदूक’ रखकर नहीं किया जा सकेगा.

ट्रंप क्या पंगा लेंगे?

ब्रिटिश साप्ताहिक ‘इकोनॉमिस्ट’ का अनुमान है कि फौरी तौर पर इस टकराव से रूस के तेल-निर्यात में कमी आ जाएगी, पर असली कमी लाने के लिए अमेरिका को या तो मोदी को संतुष्ट करना होगा, या फिर खुलकर पंगा लेना होगा. यानी कि भारतीय तथा चीनी रिफाइनरियों और बैंकों पर प्रतिबंध लगाने होंगे. 

बेशक रूसी तेल का भारत पूर्ण बहिष्कार करेगा, तो रूस को बड़ा धक्का लगेगा, पर इससे वैश्विक कीमतों में कम से कम 10-15डॉलर प्रति बैरल की वृद्धि होगी. सवाल है कि ट्रंप किस हद तक जाने को तैयार हैं?

अमेरिकी प्रतिबंधों के वास्तविक प्रभाव का आकलन करना अभी जल्दबाजी होगी. सरकारी रिफाइनरियाँ जोखिमों का मूल्यांकन कर रही हैं. यह सुनिश्चित किया जा रहा है कि अब जो भी रूसी तेल खरीदें, वह सीधे रोज़नेफ्ट, लुकॉइल और उनकी शाखाओं से नहीं लिया जाए.बैंकों से भी अपेक्षा की जा रही है कि वे प्रतिबंधित संस्थाओं से लेन-देन से बचें, ताकि वाशिंगटन से अतिरिक्त प्रतिबंधों के जोखिम से बचा जा सके.

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नीतिगत स्वायत्तता

भारत की दीर्घकालीन नीतियाँ भी कसौटी पर हैं. हम किसी के भी इस निर्देश को नहीं मानेंगे कि हमें किसके साथ व्यापार करना है और किसके साथ नहीं. खासकर जब बात रूस की हो, जो हमारा पुराना और प्रमुख साझेदार है.

रूस के विरुद्ध प्रतिबंध और निर्यात नियंत्रण सुरक्षा परिषद के किसी प्रस्ताव से नहीं आए हैं, बल्कि इन्हें एकतरफा तौर पर एक गठबंधन ने लागू किया है. इस गठबंधन का नेतृत्व मुख्य रूप से जी-7और यूरोपीय संघ कर रहे हैं.

भारत हमेशा एकतरफा प्रतिबंधों का विरोधी रहा है. 1974और 1998में जब भारत ने परमाणु परीक्षण किए थे, तब हमारे देश पर भी ऐसे प्रतिबंध लगाए गए थे. भारत का कहना है कि हम संरा सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों का पालन करते हैं, किसी देश-विशेष की ओर से लगाए गए एकतरफा प्रतिबंधों का नहीं.

दूसरी तरफ भारत ने ट्रंप के पहले कार्यकाल में ईरान पर लगाए गए एकतरफ़ा प्रतिबंधों का सम्मान भी किया था. हालाँकि वे प्राथमिक प्रतिबंध थे, सेकंडरी नहीं, जो अब रूस पर लगे हैं.

(लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं)


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