जब ड्रैगन हाथी से मिलता है: कूटनीति का एक नया नृत्य

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 04-09-2025
When the dragon meets the elephant: a new dance of diplomacy
When the dragon meets the elephant: a new dance of diplomacy

 

dपल्लब भट्टाचार्य

राष्ट्रों का भू-राजनीतिक परिदृश्य अक्सर एक अशांत महासागर जैसा दिखता है, जो अवसरों के ज्वार और प्रतिद्वंद्विता की अंतर्धाराओं के साथ बदलता रहता है.भारत के लिए, यह गतिशीलता बांग्लादेश, चीन और व्यापक विश्व के साथ उसके संबंधों में सबसे स्पष्ट रूप से परिलक्षित होती है.5 मार्च 2025 को शेख हसीना, एक ऐसी नेता जिनके नई दिल्ली के साथ घनिष्ठ संबंध थे, के निष्कासन ने द्विपक्षीय संबंधों में भूचाल ला दिया.

फिर भी, राजनीतिक गर्मजोशी के इस ठंडेपन के बीच भी, भारत ने 17 अगस्त 2025 से बांग्लादेश को प्याज का निर्यात फिर से शुरू करके व्यावहारिकता का परिचय दिया.230 मीट्रिक टन प्याज का निर्यात उनके बाजार मूल्य से कहीं अधिक बड़ा संदेश देता था.इसने संकेत दिया कि सरकारें भले ही लड़खड़ाएँ, लेकिन लोगों के बीच के बंधन हमेशा मज़बूत बने रहेंगे.

क्षणिक को स्थायी से अलग करने का यह दृष्टिकोण भारत की विदेश नीति का आधार बनता जा रहा है.डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा अपने राष्ट्रपति कार्यकाल के दौरान शुरू किए गए टैरिफ युद्धों ने भारत को याद दिलाया कि महाशक्तियाँ अक्सर व्यापार को एक हथियार के रूप में इस्तेमाल करती हैं, जिससे हमारे जैसे देशों को आर्थिक व्यावहारिकता और रणनीतिक स्वायत्तता के बीच सावधानीपूर्वक संतुलन बनाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

यह नाज़ुक संतुलन भारत के चीन के साथ जटिल, अक्सर अशांत, फिर भी ज़रूरी संबंधों में सबसे ज़्यादा स्पष्ट है.तीन साल के अंतराल के बाद 18 अगस्त 2025 को चीनी विदेश मंत्री वांग यी की नई दिल्ली यात्रा एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई.

राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के साथ उनकी चर्चाओं ने प्रधानमंत्री मोदी की शंघाई सहयोग संगठन शिखर सम्मेलन के लिए आगामी तियानजिन यात्रा,जो सात वर्षों में पहली यात्रा होगी,की नींव रखी.2020 में गलवान की यादों से आहत दो देशों के लिए, नए सिरे से बातचीत का स्वरूप उतना ही महत्वपूर्ण था जितना कि उसका सार.

लंबे समय से एक-दूसरे से सतर्क रहे हाथी और ड्रैगन, एक बार फिर साथ-साथ चलने की संभावना तलाशने लगे थे.यह नरमी सिर्फ़ कूटनीतिक नहीं.महामारी और सीमा पर झड़पों के बाद से रुकी हुई सीधी उड़ानों का फिर से शुरू होना, आसमान और शायद दिलों के खुलने का प्रतीक था.

लिपुलेख, शिपकी ला और नाथू ला के ज़रिए पारंपरिक सीमा व्यापार मार्गों के फिर से खुलने का व्यावसायिक से ज़्यादा सांस्कृतिक महत्व था, फिर भी कूटनीति में प्रतीकात्मकता अक्सर सबसे भारी बोझ होती है.यहाँ तक कि 2021 के बाद से चीन को भारत की पहली डीज़ल खेप ने भी यह संकेत दिया कि जहाँ राजनीति हिचकिचाती है, वहाँ अर्थशास्त्र रास्ते बना सकता है.

लेकिन कोई भी मेल-मिलाप बिना किसी छाया के नहीं होता.वास्तविक नियंत्रण रेखा पर हज़ारों सैनिक तैनात हैं, जबकि पीछे हटने के समझौते सतही तौर पर राहत दे रहे हैं.

तिब्बत में चीन की बुनियादी ढाँचे की महत्वाकांक्षाएँ और पाकिस्तान के साथ उसका अटूट रिश्ता भारत के लिए काँटे की तरह बना हुआ है.इसी तरह, भारत लगभग 100 अरब डॉलर के व्यापार घाटे को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता, जो आर्थिक जुड़ाव के तराजू को झुका देता है.इसलिए, इस नए गर्मजोशी भरे माहौल को पूरी तरह से पिघल जाने के बजाय सामरिक व्यावहारिकता के रूप में देखा जाना चाहिए.

फिर भी, इतिहास सिखाता है कि सामरिक पुनर्संरेखण भी राष्ट्रों की दिशा बदल सकते हैं..ट्रम्प के टैरिफ़ संबंधी आदेशों के ख़िलाफ़ साझा प्रतिरोध ने नई दिल्ली और बीजिंग को बाहरी दबाव का विरोध करने में और क़रीब ला दिया, जिससे यह साबित हुआ कि प्रतिकूल परिस्थितियाँ कभी-कभी अप्रत्याशित गठबंधन भी बना सकती हैं.

गलवान में टकराव से लेकर दिल्ली में बातचीत तक, भारत-चीन संबंधों का स्वरूप अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति की नाज़ुकता और लचीलेपन, दोनों को दर्शाता है.अंततः, भारत के लिए चुनौती तीन तात्कालिक डी (डिसएंगेजमेंट, डी-एस्केलेशन और डी-इंडक्शन) से आगे बढ़कर तीन सी (कॉन्फिडेंस, कोऑपरेशन और कोलेबोरेशन) से आकार लेने वाले भविष्य की ओर कदम बढ़ाने की है,क्योंकि ऐसे दौर में जब दुनिया साझा संकटों,जलवायु परिवर्तन, महामारी, ऊर्जा सुरक्षा—का सामना कर रही है, न तो ड्रैगन और न ही हाथी अकेले नाचने का जोखिम उठा सकते हैं.

जैसा कि रवींद्रनाथ टैगोर ने एक बार लिखा था, "सिर्फ़ खड़े होकर पानी को घूरने से आप समुद्र पार नहीं कर सकते." भारत और चीन के लिए, विकल्प स्पष्ट है: साथ मिलकर, सावधानी से लेकिन दृढ़ता से आगे बढ़ना, या अविश्वास के भंवर में फँसने का जोखिम उठाना.कदम भले ही अनिश्चित हों, लेकिन इतिहास का संगीत दोनों को नाचने के लिए प्रेरित कर रहा है.