बिसरख से सिंगापुर तक : नेताजी की विरासत आज भी जनमानस में जीवित

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 01-09-2025
From Bisrakh to Singapore: Netaji's legacy is still alive in the minds of people
From Bisrakh to Singapore: Netaji's legacy is still alive in the minds of people

 

रत्नज्योति दत्ता

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में लिखना,जिन्हें हम आदरपूर्वक "नेताजी" कहकर संबोधित करते हैं,मेरे लिए एक ओर जहां गर्व की बात है, वहीं यह एक चुनौतीपूर्ण कार्य भी है. उनका ऐतिहासिक योगदान और विरासत हमारे देश की चेतना में गहराई से समाहित है. उसे किसी नए दृष्टिकोण से प्रस्तुत करना आसान नहीं . फिर भी, वर्तमान युवा पीढ़ी को प्रेरित करने और नेताजी के अद्वितीय व्यक्तित्व से जोड़ने की भावना से मैं यह लेख लिख रहा हूं.
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नेताजी की यात्रा,ऑस्ट्रिया से बर्लिन, लंदन से सिंगापुर और काबुल से मास्को तक,उन्हें एक अंतरराष्ट्रीय व्यक्तित्व के रूप में स्थापित करती है. इसके बावजूद वे स्थानीय और जमीनी सच्चाइयों से भी गहराई से जुड़े रहे. एक क्रांतिकारी, राजनीतिज्ञ, रणनीतिकार और दूरदर्शी नेता के रूप में उन्होंने जो भूमिका निभाई, वह आज भी असाधारण मानी जाती है.

उत्तर भारत में रहते हुए, जो कि मेरे मूल पूर्वोत्तर भारत से काफी दूर है, मैंने अनेक प्रेरणादायक कथाएं सुनी हैं. ऐसी ही एक कहानी है उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर ज़िले के बिसरख गांव की, जिसने मुझे अत्यंत प्रभावित किया.
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बिसरख: पौराणिक मान्यताओं से राष्ट्रभक्ति तक का सफर

बिसरख गांव को पौराणिक रूप से रावण के पिता विश्रवा मुनि की जन्मस्थली माना जाता है. यहां के लोग अपने को विश्रवा के वंशज मानते हैं . रावण दहन का आयोजन नहीं करते. धार्मिक आस्था के इस केंद्र ने एक नई गौरवगाथा को भी अपनाया है.वह है आजाद हिंद फौज से उसका संबंध.

यह गांव गर्व से स्मरण करता है अपने उस बेटे को, जो कभी ब्रिटिश सेना में था, लेकिन नेताजी के “चलो दिल्ली” के आह्वान पर ब्रिटिश सेना छोड़ आईएनए (आजाद हिंद फौज) में शामिल हो गया. उस वीर सिपाही की देशभक्ति आज भी गांव की पहचान का हिस्सा है. लोग उसे श्रद्धा से याद करते हैं.

आज गांववाले नेताजी की स्मृति को अमर करने के लिए एक विशाल प्रवेशद्वार और नेताजी की भव्य प्रतिमा स्थापित करने में जुटे हैं. यह प्रतिमा सिर्फ नेताजी को श्रद्धांजलि नहीं होगी, बल्कि यह गांव की उनकी विरासत के प्रति श्रद्धा और प्रेम का प्रतीक भी होगी. यह आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी.

विरासत का संरक्षण और नेताजी के वंशजों से जुड़ाव

सबसे प्रेरक बात यह है कि आईएनए के उन सैनिकों के वंशज आज भी अपने पूर्वजों के योगदान को संजोकर रखते हैं. वे कोलकाता में नेताजी के परिवार से भी जुड़े हैं.यह स्वतंत्रता संग्राम के समय बने रिश्तों की गहराई और स्थायित्व का प्रमाण है. नेताजी का नेतृत्व आज भी देश में एकता और नि:स्वार्थ सेवा की भावना को जगाता है.

उत्तर भारत के जाट और गुर्जर समुदाय नेताजी को उतनी ही श्रद्धा से देखते हैं जितना बंगाली समुदाय. इन ताकतवर जातियों के कई बुजुर्ग नेताजी के नेतृत्व में स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हुए थे. उन्होंने राष्ट्रीय एकता और मातृभूमि के लिए बलिदान को जीवन का ध्येय माना. यह हम सबकी राष्ट्रीय जिम्मेदारी है कि युवा पीढ़ी को नेताजी और उनके योगदान के प्रति सम्मान का भाव दें.
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चाय की बातों में नेताजी

जब भी मुझे मौका मिलता है, मैं देश के अलग-अलग हिस्सों में लोगों से मिलने निकल पड़ता हूं.यह यात्राएं मेरे लिए किसी "चाय की चर्चा" से कम नहीं होतीं. आम लोगों से मिलकर, उनकी बातें सुनकर ही भारत की असली आत्मा को जाना जा सकता है.

ऐसी ही एक यात्रा में, सहारनपुर में मेरी मुलाकात हुई एक पंजाबी बुजुर्ग से,जिनका जन्म लाहौर में हुआ था. उनके माता-पिता ने उनका नाम रखा था सुभाष चंद्र महेन्द्रू. नाम रखने का कारण था,विदेश में रहकर भारत के लिए लड़ रहे नेताजी से प्रेरणा.

उनके परिवार ने नेताजी की तस्वीर अपने सिंगापुर स्थित घर के ड्रॉइंगरूम में टांगी हुई है. वे हर दिन उसकी ओर देख कर दिन की शुरुआत करते हैं. उनका बेटा समीर महेन्द्रू और पोता बिहान, 2023 में नेताजी के एल्गिन रोड स्थित कोलकाता वाले घर पर भी श्रद्धांजलि देने आए थे. यह सब दर्शाता है कि नेताजी का प्रभाव भाषा, राज्य और धर्म की सीमाओं से परे था.
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जनता दर्शन और नेताजी की सड़कों पर उपस्थिति

अगर आप कभी उत्तर भारत की सड़कों पर निकलें तो अनेक जगहों पर नेताजी से जुड़ी कहानियां और स्मृतियां मिल जाएंगी. हाल ही में देहरादून यात्रा के दौरान मैंने देखा कि वहां के मुख्य पुलिसालय और डीजीपी ऑफिस वाले क्षेत्र की सड़क का नाम है सुभाष रोड.

आज देशभर में नेताजी के नाम पर सड़कें, हवाई अड्डे, स्टेडियम और अनेक सार्वजनिक स्थल मौजूद हैं. हालांकि, दुर्भाग्यवश, स्वतंत्र भारत के शुरुआती शासकों ने नेताजी के योगदान का समुचित मूल्यांकन नहीं किया. लेकिन हाल के वर्षों में, इंडिया गेट पर स्थापित नेताजी की प्रतिमा ने इतिहास को एक नई परिभाषा दी है,जो नई पीढ़ी को नेताजी को समझने और अपनाने की प्रेरणा देगी.

(लेखक दिल्ली स्थित वरिष्ठ पत्रकार हैं)