अभिषेक कुमार सिंह
आज हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां सूचनाएं हर पल हमारी स्क्रीन पर दस्तक देती हैं.सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और वेबसाइट्स के ज़रिए खबरें और जानकारियां पलक झपकते ही लाखों लोगों तक पहुंच जाती हैं.इस डिजिटल क्रांति ने जहां ज्ञान और सूचना को सभी के लिए सुलभ बना दिया है, वहीं एक और गंभीर समस्या को जन्म दिया है,फेक न्यूज़, यानी झूठी, भ्रामक और गुमराह करने वाली खबरें.
इन झूठी खबरों की सबसे बड़ी ताकत है इनकी रफ्तार.ये इतनी तेज़ी से फैलती हैं कि लोग सही-गलत का फर्क समझने से पहले ही प्रभावित हो जाते हैं.ये खबरें सामाजिक- सांप्रदायिक तनाव, राजनीतिक ध्रुवीकरण और यहां तक कि जान-माल के नुकसान का कारण भी बन सकती हैं.
परंतु अब जिस तकनीक ने फेक न्यूज़ को फैलाना आसान बनाया, उसी तकनीक से इसे रोकने की भी उम्मीद जगी है.इस लड़ाई में सबसे कारगर हथियार बनकर उभरा है—रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग.
क्या है रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग?
रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग एक ऐसी तकनीक है जिसमें इंटरनेट पर उपलब्ध किसी भी डेटा—चाहे वह सोशल मीडिया पोस्ट हो, वीडियो हो, न्यूज़ आर्टिकल हो या कमेंट—का तुरंत विश्लेषण किया जाता है.यह डेटा जैसे ही पब्लिश होता है, उसे लाइव मोड में प्रोसेस किया जाता है ताकि यह परखा जा सके कि उसमें कोई भ्रामक, झूठी या भड़काऊ सामग्री तो नहीं है.
डलास (अमेरिका) स्थित ऑप्शंस क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन में असोसिएट प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत डेटा स्ट्रीमिंग एक्सपर्ट प्रभु पटेल बताते हैं, “फेक न्यूज़ की सबसे बड़ी ताकत उसकी गति है.अगर झूठी खबर को रोकने में थोड़ी भी देरी हो गई, तो वह वायरल होकर लाखों लोगों तक पहुँच जाती है.ऐसे में जरूरी है कि उसे उसी गति से पकड़ा और रोका जाए.”
कैसे काम करती है यह तकनीक?
रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग की प्रक्रिया बहुत व्यवस्थित और तकनीकी रूप से उन्नत होती है.यह मुख्यतः तीन स्तरों पर काम करती है:
भाषाई विश्लेषण:जैसे ही कोई पोस्ट या खबर सामने आती है, सबसे पहले उसका भाषाई विश्लेषण किया जाता है.इस बात की जांच होती है कि क्या उसमें उत्तेजक, भड़काऊ या भावनात्मक रूप से उकसाने वाली भाषा का प्रयोग किया गया है.
स्रोत की सत्यता:इसके बाद यह देखा जाता है कि खबर या जानकारी कहां से आई है.वह वेबसाइट या सोशल मीडिया अकाउंट कितना विश्वसनीय है? क्या अतीत में भी उस स्रोत से झूठी खबरें फैलती रही हैं?
फैलाव की गति और क्षेत्र:तीसरे स्तर पर यह जांचा जाता है कि वह कंटेंट कितनी तेजी से और कहां-कहां फैल रहा है.किस तरह के समूह इसे शेयर कर रहे हैं? यह ट्रेंड में आ रहा है या नहीं?
इन तीनों स्तरों की जांच के बाद यदि कंटेंट संदिग्ध पाया जाता है, तो संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म या वेबसाइट तत्काल कार्रवाई करती है.जैसे:
उस खबर की रीच (Reach) सीमित कर दी जाती है.
उसे ‘फैक्ट-चेकिंग इन प्रोग्रेस’ का टैग दिया जाता है.
या उसे मानव मॉडरेटर के पास भेजा जाता है जो अंतिम निर्णय लेता है.
सिर्फ रोकना नहीं, सच को फैलाना भी है ज़रूरी
प्रभु पटेल कहते हैं कि फेक न्यूज़ को रोकना केवल आधी लड़ाई है.असली चुनौती तब शुरू होती है जब आपको सच्चाई भी उतनी ही तेजी से लोगों तक पहुंचानी होती है.उनका कहना है कि “जैसे ही कोई भ्रामक खबर सामने आती है, उसी क्षण फैक्ट-चेकिंग संगठनों को अलर्ट भेजा जाना चाहिए ताकि वे सही जानकारी तैयार कर सकें.और फिर उसी नेटवर्क के माध्यम से सच को फैलाना चाहिए.”
यह प्रक्रिया एक तरह से डिजिटल वैक्सीन की तरह काम करती है—सही जानकारी पहले फैला दो, ताकि झूठी खबर का असर कम हो जाए.इससे न केवल लोग गुमराह होने से बचते हैं, बल्कि इंटरनेट पर फैली भ्रम की स्थिति को भी नियंत्रण में लाया जा सकता है.
आसान नहीं है यह लड़ाई
हालांकि यह तकनीक आशाजनक है, लेकिन इसके रास्ते में कई चुनौतियां हैं.सबसे पहली चुनौती है—कंसेप्ट ड्रिफ्ट (Concept Drift)। फेक न्यूज़ फैलाने वाले लोग लगातार नए तरीके अपनाते हैं ताकि तकनीकी सिस्टम उन्हें पकड़ न सके.वे भाषा, प्रतीकों, इमोजी या वर्तनी के साथ प्रयोग करते हैं ताकि उनके पोस्ट सिस्टम की नजर से बच जाएं.
दूसरी बड़ी चुनौती है—डेटा वॉइड (Data Void).कई बार किसी विषय पर इंटरनेट पर अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं होती.ऐसे में अगर कोई झूठी खबर उस विषय पर आ जाती है, तो वह सर्च इंजन में टॉप पर दिखाई देती है और लोग उसे ही सच मान लेते हैं.
तीसरी चुनौती है—स्केल की.हर सेकंड सोशल मीडिया पर लाखों पोस्ट, वीडियो और मैसेज अपलोड होते हैं.इस विशाल मात्रा में डेटा को रियल टाइम में प्रोसेस करना न केवल तकनीकी रूप से मुश्किल है, बल्कि बेहद खर्चीला भी है.
फिर भी उम्मीद बाकी है
इन चुनौतियों के बावजूद टेक्नोलॉजी एक्सपर्ट्स का मानना है कि रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग आने वाले समय में फेक न्यूज़ के खिलाफ सबसे प्रभावी हथियार बन सकता है.यह न केवल झूठी खबरों को तुरंत पहचानने में सक्षम है, बल्कि समाज में विश्वास बहाल करने का माध्यम भी बन सकता है.
आज जब समाज में संदेह और अफवाहों का माहौल बन रहा है, तब यह तकनीक एक डिजिटल प्रहरी की तरह कार्य कर सकती है—जो न केवल झूठ को पकड़ता है, बल्कि सच की आवाज़ को भी आगे लाता है.
फेक न्यूज़ आज एक गंभीर समस्या है जो न केवल सूचना के स्वरूप को प्रभावित करती है, बल्कि लोकतंत्र, समाज और व्यक्ति के विवेक पर भी सीधा वार करती है.लेकिन जैसे हर अंधेरे के बाद उजाला होता है, वैसे ही तकनीक की दुनिया में रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग की रोशनी इस अंधेरे को मिटाने की दिशा में बड़ा कदम साबित हो रही है.
यह सिर्फ एक तकनीक नहीं, बल्कि एक सामाजिक ज़िम्मेदारी है—जहां हर पोस्ट, हर शेयर और हर खबर को समझदारी और सतर्कता से जांचना जरूरी है.और इसमें रियल टाइम डेटा स्ट्रीमिंग जैसी तकनीकें हमारे सबसे भरोसेमंद सहयोगी बन सकती हैं.जब सच को भी वही ताकत और रफ्तार मिले जो झूठ को मिलती है, तभी एक सजग, जिम्मेदार और सच्चा डिजिटल समाज बन सकता है.
( लेख डलास ;अमेरिका के ऑप्शंस क्लीयरिंग कॉर्पोरेशन में असोसिएट प्रिंसिपल प्रभु पटेल से बातचीत पर आधारित)