आवाज द वाॅयस/ नई दिल्ली
दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग के आचार्य दया शंकर तिवारी ने वेदों को ज्ञान का मूल स्रोत बताते हुए कहा कि यह धरोहर केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है. वह जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्कृत विभाग में शिक्षा दिवस पर आयोजित राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका विषय पर आयोजित एक विशेष व्याख्यान बोल रहे थे.
उन्होंने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत करते हुए कहा, श्शिक्षा केवल ज्ञान देने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा को गढ़ने का माध्यम है. गुरु ही वह दीपक है, जो अंधकार को दूर कर समाज को नई दिशा देता है.
जामिया मिल्लिया इस्लामिया के संस्कृत विभाग में शिक्षक दिवस बड़े ही हर्षोल्लास और गरिमामय माहौल में मनाया गया. यह आयोजन कुलपति प्रो. मज़हर आसिफ, छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. नीलोफर अफ़जल तथा विभागाध्यक्ष डॉ. जयप्रकाश नारायण के मार्गदर्शन और प्रेरणा से सम्पन्न हुआ.
इस अवसर पर "राष्ट्र निर्माण में शिक्षक की भूमिका" विषय पर एक विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया, जिसमें प्रो. दया शंकर तिवारी (आचार्य, संस्कृत विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) ने मुख्य वक्ता के रूप में अपने विचार प्रस्तुत किए.
उन्होंने कहा, “शिक्षा केवल ज्ञान देने की प्रक्रिया नहीं है, बल्कि यह राष्ट्र की आत्मा को गढ़ने का माध्यम है. गुरु ही वह दीपक है, जो अंधकार को दूर कर समाज को नई दिशा देता है.” उन्होंने वेदों को ज्ञान का मूल स्रोत बताते हुए कहा कि यह धरोहर केवल भारत के लिए नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है.
गुरु-शिष्य परंपरा पर प्रकाश डालते हुए प्रो. तिवारी ने कहा कि यह संबंध केवल शैक्षणिक नहीं, बल्कि आत्मिक और नैतिक भी है. शिक्षक अपने शिष्यों के जीवन में केवल जानकारी ही नहीं, बल्कि संस्कार और जीवन मूल्य भी संचारित करता है.
कार्यक्रम में विद्यार्थियों ने उत्साहपूर्वक विभिन्न प्रस्तुतियाँ दीं. इनमें शिक्षक दिवस पर कविताएँ, गुरु-शिष्य संवाद, निबंध और पोस्टर प्रस्तुति, तथा लघु नाट्य मंचन शामिल थे. इन रचनात्मक प्रस्तुतियों ने शिक्षकों के प्रति छात्रों की कृतज्ञता और सम्मान को जीवंत रूप से अभिव्यक्त किया.
समारोह का विशेष आकर्षण विद्यार्थियों द्वारा शिक्षकों को पुष्प और स्मृति-चिह्न भेंट करना रहा. इस अवसर पर विभागाध्यक्ष डॉ. जयप्रकाश नारायण ने विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए कहा, “शिक्षक केवल ज्ञान नहीं बाँटते, बल्कि वे जीवन के पथप्रदर्शक होते हैं. उनका सम्मान करना प्रत्येक विद्यार्थी का नैतिक कर्तव्य है.”
कार्यक्रम के सफल संचालन में विभाग के संकाय सदस्य डॉ. मणि शंकर द्विवेदी, डॉ. संगीता शर्मा और डॉ. जहाँ आरा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. समारोह में विभाग के सभी अध्यापक, शोधार्थी तथा स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र-छात्राएँ बड़ी संख्या में उपस्थित रहे.
पूरे आयोजन का वातावरण उत्साह, कृतज्ञता और प्रेरणा से ओतप्रोत रहा। यह समारोह केवल औपचारिकता न रहकर एक आत्मीय अनुभव बना, जिसने छात्रों को शिक्षा के वास्तविक महत्व और शिक्षकों के योगदान का गहराई से अहसास कराया. शिक्षक दिवस के इस आयोजन ने गुरु-शिष्य संबंधों की गरिमा को पुनः स्थापित किया और यह याद दिलाया कि शिक्षा ही वह आधार है, जिस पर राष्ट्र का भविष्य निर्मित होता है.