बांग्लादेश सीमा संकट: एक चुनौती, एक चेतावनी और एक अवसर

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 02-09-2025
Bangladesh border crisis: A challenge, a warning and an opportunity
Bangladesh border crisis: A challenge, a warning and an opportunity

 

ऋषि सूरी

भारत और बांग्लादेश के बीच स्थित 4,096.7 किलोमीटर लंबी भूमि सीमा न केवल दक्षिण एशिया की सबसे लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमाओं में से एक है, बल्कि यह एक जटिल और संवेदनशील भू-राजनीतिक, सामाजिक और सुरक्षा संबंधी चुनौती भी प्रस्तुत करती है.यह सीमा सिर्फ दो देशों के बीच की भौगोलिक रेखा नहीं है, बल्कि यह रोज़ लाखों लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाली एक धड़कती हुई वास्तविकता है.

भारत, एक नियम-आधारित लोकतंत्र होने के नाते, अपनी सीमाओं की सुरक्षा और सामाजिक संतुलन बनाए रखने के लिए उत्तरदायी है.लेकिन जब सीमा पार होने वाली आवाजाही अवैध, अनियंत्रित और व्यापक हो जाती है, तब न केवल राष्ट्रीय सुरक्षा पर असर पड़ता है, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था, जनसांख्यिकीय संतुलन और सार्वजनिक संसाधनों पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है.भारत-बांग्लादेश सीमा पर यह संकट अब इसी व्यापक संदर्भ में गहराता जा रहा है.

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फरवरी 2025 तक भारत सरकार ने जानकारी दी कि लगभग 3,232 किलोमीटर सीमा पर बाड़बंदी पूरी हो चुकी है, लेकिन अब भी 864 किलोमीटर क्षेत्र बिना बाड़ के है, जिसमें 175 किलोमीटर का हिस्सा "असंभव" इलाकों, जैसे कि नदियों, दलदलों और पहाड़ी क्षेत्रों में आता है.

यह बिना बाड़ वाला हिस्सा ही उन चुनौतियों का केंद्र है, जिनमें अवैध घुसपैठ, मानव तस्करी, तस्करी का सामान और हथियारों की आवाजाही शामिल है.पश्चिम बंगाल (2,216.7 किमी), असम (263 किमी), मेघालय (443 किमी), त्रिपुरा (856 किमी) और मिजोरम (318 किमी) जैसे राज्यों को इस संकट का सबसे अधिक सामना करना पड़ रहा है.

उदाहरण के लिए, पश्चिम बंगाल, जो सबसे लंबा सीमा क्षेत्र साझा करता है, वहां अगस्त 2025 तक केवल 1,647.7 किलोमीटर सीमा पर ही बाड़ लग पाई थी.शेष हिस्से पर भूमि अधिग्रहण में देरी और स्थानीय विरोध जैसे कारणों से काम अधर में लटका हुआ है.

यह देरी कोई तकनीकी अड़चन मात्र नहीं है.इसका सीधा असर स्थानीय कानून-व्यवस्था, सुरक्षा और सामाजिक सामंजस्य पर पड़ रहा है.सीमावर्ती जिलों में अवैध गतिविधियाँ बढ़ने से न केवल सामाजिक तनाव पैदा हो रहा है, बल्कि सुरक्षा बलों पर भी अतिरिक्त दबाव बढ़ा है.

12 मार्च 2025 को संसद में दिए गए एक लिखित उत्तर के अनुसार, 1 जनवरी 2024 से 31 जनवरी 2025 तक कुल 2,601 बांग्लादेशी नागरिकों को अवैध रूप से भारत में घुसने के दौरान पकड़ा गया.

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यह आंकड़ा दिखाता है कि घुसपैठ कोई एक बार की घटना नहीं, बल्कि लगातार चल रही प्रक्रिया है.यह ‘नरम सीमा’ भारत की संप्रभुता के लिए खतरा बनती जा रही है.

भारत का संविधान, विशेष रूप से अनुच्छेद 355, केंद्र को राज्यों को बाहरी आक्रमण और आंतरिक गड़बड़ी से बचाने का दायित्व देता है.सुप्रीम कोर्ट ने सर्बानंद सोनोवाल केस (2005) में इसे स्पष्ट रूप से रेखांकित किया था कि बड़े पैमाने पर अवैध आव्रजन, “बाहरी आक्रमण” के समान है.

2024 के निर्णय में कोर्ट ने धारा 6ए के तहत असम समझौते पर भी फिर से विचार करते हुए बताया कि यह अनियमित आव्रजन भारत की जनसांख्यिकीय संरचना को अस्थिर कर सकता है और सामाजिक तनाव को जन्म दे सकता है.

यह दृष्टिकोण भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह अवैध प्रवास को केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं, बल्कि एक रणनीतिक खतरे के रूप में देखता है.अवैध सीमा पार केवल मानव प्रवास तक सीमित नहीं है.

भारत-बांग्लादेश सीमा सोना, नशीले पदार्थ, नकली मुद्रा, मवेशियों और खाद्य वस्तुओं की तस्करी के लिए कुख्यात बन चुकी है.हाल की रिपोर्टों में यह भी सामने आया है कि अब तस्करी वस्तु-विनिमय की शैली में भी हो रही है,जैसे सोने के बदले अनाज की अदला-बदली.

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इससे भारतीय अर्थव्यवस्था को दोहरी चोट लगती है: एक तरफ राजस्व का नुकसान होता है, तो दूसरी तरफ कालाबाजारी और महंगाई जैसी समस्याएं बढ़ती हैं.

हर जब्त की गई खेप केवल एक अपराध नहीं दर्शाती, बल्कि एक संगठित भूमिगत अर्थव्यवस्था की मौजूदगी का प्रमाण होती है, जो राज्य की कार्यक्षमता को कमजोर करती है और आपराधिक सिंडिकेट्स को मज़बूत करती है.

नई दिल्ली ने इस संकट का सामना करने के लिए मानव संसाधन और तकनीकी संसाधनों का सहारा लिया है.सीमा सुरक्षा बल (BSF) अब यूएवी (ड्रोन), नाइट विज़न डिवाइस, इंफ्रारेड सेंसर, सीसीटीवी और पैन-टिल्ट-जूम कैमरों के साथ-साथ व्यापक एकीकृत सीमा प्रबंधन प्रणाली (CIBMS) का प्रयोग कर रही है.

असम के धुबरी जैसे नदी क्षेत्रों में बीएसएफ और बांग्लादेश की बीजीबी के बीच संयुक्त गश्त का भी आयोजन किया जा रहा है। लेकिन जब तक भौतिक अवरोध अधूरे हैं और कानूनी प्रक्रियाएँ धीमी हैं, तब तक यह तकनीकी प्रयास भी अधूरा ही रहेगा.

पहली प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि शेष 864 किलोमीटर की सीमा को स्मार्ट निगरानी और भौतिक अवरोधों के संयोजन से बंद किया जाए.जहाँ पारंपरिक बाड़बंदी संभव नहीं है, वहाँ ड्रोन निगरानी, फ्लोटिंग बीओपी और अत्याधुनिक सेंसर का प्रयोग बढ़ाया जाए.

भूमि अधिग्रहण में देरी को पारदर्शी मुआवज़े और तेज़ मंज़ूरी प्रक्रियाओं से दूर किया जा सकता है.अभी जो कार्रवाई होती है, वह अक्सर प्रतिक्रिया आधारित और अस्थायी होती है.आवश्यकता इस बात की है कि सीमा सुरक्षा एक सतत और विश्लेषण-आधारित प्रणाली हो,जहाँ डैशबोर्ड, डेटा और तकनीक के माध्यम से रियल टाइम में निगरानी और प्रतिक्रिया हो सके.

अवैध प्रवेश के बाद अगला बड़ा संकट दस्तावेज़ों की धोखाधड़ी है.राशन कार्ड, आधार, मतदाता पहचान पत्र आदि अवैध तरीकों से प्राप्त कर लाभ उठाना आम हो गया है.

सीमावर्ती ज़िलों में किरायेदारों, मज़दूरों और कल्याण लाभार्थियों का डिजिटल सत्यापन आवश्यक है.इसके साथ ही, जानबूझकर अवैध प्रवासियों को रोजगार देने वाले नियोक्ताओं और एजेंटों पर भी कड़ी कार्यवाही होनी चाहिए—नस्ल या धर्म के आधार पर नहीं, बल्कि नियम उल्लंघन के आधार पर.

विदेशी न्यायाधिकरणों में मामलों की सुनवाई तेज़ और निष्पक्ष होनी चाहिए.इसके लिए न्यायाधिकरणों की संख्या बढ़ाई जाए, केस ट्रैकिंग डिजिटल हो, और गरीबों को कानूनी सहायता मिले.भारत की न्यायिक प्रणाली यदि तेज़ी से और निष्पक्ष तरीके से निर्णय ले, तो न केवल न्याय होगा, बल्कि न्याय होते हुए दिखेगा भी.

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हालाँकि बांग्लादेश वर्तमान में राजनीतिक अस्थिरता से जूझ रहा है, फिर भी बीएसएफ-बीजीबी के बीच संवाद, संयुक्त गश्त और फ्लैग मीटिंग्स जैसे तंत्र को और सक्रिय बनाए रखना ज़रूरी है.जहाँ दोनों पक्ष सहयोग करते हैं, वहाँ अवैध गतिविधियों में गिरावट आती है.इसलिए इन संवाद चैनलों को न केवल बनाए रखना बल्कि संसाधनों और राजनीतिक समर्थन से मज़बूत करना होगा.

भारत की छवि एक उदार और सहिष्णु राष्ट्र की रही है, लेकिन इसकी उदारता को शोषण का साधन नहीं बनने दिया जा सकता.यह आवश्यक है कि भारत अपने सामाजिक अनुबंध की रक्षा करे—जहाँ सार्वजनिक संसाधन उन नागरिकों के लिए हों, जिन्होंने नियमों का पालन किया है.

एक सुरक्षित और सुव्यवस्थित सीमा प्रवासी-विरोधी नहीं होती, बल्कि यह नागरिकों और वैध प्रवासियों दोनों के लिए अनुकूल होती है.भारत को ऐसे संतुलन की ओर बढ़ना होगा जहाँ मानवीयता और सुरक्षा, दोनों के बीच कोई टकराव न हो.
 

(द संडे गार्जियन से साभार)