भारत-बांग्लादेश संबंधों की क्या है विशिष्टता ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] • 2 Months ago
What is the specialty of India-Bangladesh relations?
What is the specialty of India-Bangladesh relations?

 

saranपंकज सरन

भारत-बांग्लादेश संबंध कई कारणों से अद्वितीय हैं. वे दोनों देशों के साझा इतिहास, भूगोल और संस्कृति का सारांश हैं. ये कारक रिश्ते पर भारी पड़ते हैं, कभी-कभी रिश्ते को मजबूत करते हैं और कभी-कभी इसे तोड़ देते हैं. हम दोनों वास्तविकताओं से गुजरे हैं. लेकिन अच्छे समय और बुरे समय के हर चक्र के अंत में, अंतिम सत्य हमारे सामने आ खड़ा होता है कि हमें एक साथ रहना होगा और अपने रिश्तों खुद ही प्रबंधन करना होगा. इसके लिए दोनों पक्षों की ओर से परिपक्वता व राजनीतिक कौशल और इस वास्तविकता को स्वीकार करने की आवश्यकता है कि संप्रभुता उतनी पूर्ण नहीं हो सकती, जितनी हम मानना चाहते हैं. इसका मतलब यह नहीं है कि राजनीतिक सीमाएं पवित्र नहीं हैं, क्षेत्रीय अखंडता या संयुक्त राष्ट्र चार्टर के सिद्धांत वार्तायोग्य नहीं हैं.

भारत और बांग्लादेश के सुरक्षा और विकास हित, कल्पना से कहीं अधिक स्तरों पर जुड़े हुए हैं. एक देश के अंदर होने वाले घटनाक्रम दूसरे देश को प्रभावित करते हैं. ओवरलैपिंग के अवसर और चुनौतियाँ हैं, जो एक जीवित वास्तविकता हैं. उस सीमा तक, दोनों देशों के संप्रभु हितों को समायोजन के तत्व की आवश्यकता है. यह किसी भी पक्ष के शुद्धतावादियों और राष्ट्रवादियों के लिए सुखद नहीं हो सकता है लेकिन यह एक अपरिहार्य तथ्य है.

मैं बांग्लादेश में रहा हूं और अपने करियर के बड़े हिस्से में भारत-बांग्लादेश संबंधों पर काम किया है. मैंने संबंधों में बदलाव देखा है और हमारे देशों का भाग्य आपस में कैसे जुड़ा हुआ है.


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आज, बांग्लादेश की मुक्ति के पचास से अधिक वर्षों के बाद, बांग्लादेशियों की एक नई पीढ़ी अपने देश की नियति को आकार दे रही है. एक स्तर पर, यह अच्छा है, क्योंकि इससे देश को अपनी पहचान विकसित करने और 1905 में बंगाल विभाजन से शुरू हुए क्षेत्र के लगातार आघातों के बाद अपनी वास्तविक प्रतिभा को खोजने में मदद मिलती है.

एक नए बांग्लादेश का उद्भव शहरों और कस्बों-गांवों में दिखाई देता है. देश पर शासन करने और इसकी आर्थिक गतिविधियों को विनियमित करने के लिए नए संस्थान बनाए गए हैं. आज एक युवा बांग्लादेशी खुद को पाकिस्तान या ब्रिटिश भारत के वंशज से कहीं अधिक देखता है.

फिर भी, पहचान की लड़ाई अभी ख़त्म नहीं हुई है. यह जीवन के हर क्षेत्र में व्याप्त है, चाहे वह राजनीति हो, संस्कृति हो या सामाजिक मानदंड और व्यवहार हो. यहां तक कि राष्ट्रीयता के प्रतीक भी वैकल्पिक व्याख्याओं और ऐतिहासिक पूर्वाग्रहों के प्रति संवेदनशील हैं.

कुछ लोग आज भी एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के जन्म पर सवाल उठाते रहते हैं. एक स्तर पर, हर चीज पर बहस चल रही है और कोई भी मुद्दा सुलझता नहीं दिख रहा है. बांग्लादेश का कितना हिस्सा अपनी भाषाई पहचान में निहित है और कितना हिस्सा इसकी इस्लामी पहचान में निहित है, यह एक सवाल है, जो अभी भी बना हुआ है और अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ उत्पन्न करता है.

 

बांग्लादेश में भूमि और संसाधन की कमी है. 1971 में इसकी जनसंख्या लगभग सात करोड़ थी. आज यह अनुमानतः सत्रह करोड़ के करीब है, जिनमें से अधिकांश तीस वर्ष से कम आयु के हैं. तुलना के लिए, यह रूस की जनसंख्या से अधिक है.

जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र तट सिकुड़ रहा है, लवणता बढ़ रही है और प्राकृतिक आपदाओं की संभावना बढ़ रही है. यह सब आजीविका और खुशहाली के लिए खतरा पैदा करता है. अराकान से 1.2 मिलियन रोहिंग्याओं की आमद बांग्लादेश के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र के लिए नवीनतम झटका है.

इन चुनौतियों के बावजूद देश ने पिछले कुछ वर्षों में उल्लेखनीय रूप से अच्छा प्रदर्शन किया है और उन सभी को चकित कर दिया है, जिन्होंने बांग्लादेश को सफल होने का बहुत कम मौका दिया.

अनुभवजन्य आंकड़ों के आधार पर, यह कहा जा सकता है कि पिछले पंद्रह वर्षों में बांग्लादेश का उदय एक ऐसे राजनीतिक नेतृत्व की उपस्थिति के साथ हुआ है, जिसने भारत के साथ तेजी से आगे बढ़ने का विकल्प चुना और भारत के साथ अच्छे संबंध बांग्लादेश के लिए अच्छे रहे हैं. यह आर्थिक एकीकरण, कनेक्टिविटी, व्यापार, बुनियादी ढांचे और लोगों से लोगों के बीच संपर्क के क्षेत्रों में प्रमुख और निरंतर पहलों के संयोजन से शुरू हुआ है.

इसे रेखांकित करते हुए एक रणनीतिक सहमति बनी है कि बांग्लादेश के अंदर शांति और सुरक्षा न केवल सीमा पार सकारात्मक बाह्यताओं में योगदान करती है, बल्कि बांग्लादेश के लिए भी अच्छी है. इस अवधि में बांग्लादेश उस मूल अनुबंध पर चला गया, जिसके कारण वह एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में उभरा, उन सिद्धांतों के आधार पर, जिन्होंने उसकी मुक्ति को सुनिश्चत  किया और जिसने बांग्लादेश के विचार के लिए लड़ने वालों को प्रेरित किया. दूसरी ओर, लगातार दो और बहुत अलग सरकारों के दौरान बांग्लादेश के प्रति दिल्ली की नीतियों में निरंतरता, एक प्रमुख विदेश नीति मुद्दे पर भारत में घरेलू सहमति का एक अनूठा उदाहरण है.

इस तथ्य से कोई मुंह नहीं मोड़ सकता कि बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास से भारत का गहरा नाता रहा है. न ही इस तथ्य से कि बांग्लादेश के अंदर का घटनाक्रम भारत के सबसे कमजोर क्षेत्रों और सामान्य तौर पर, भारत के मुख्य सुरक्षा हितों को प्रभावित करता है.
 
यह केवल भारत और बांग्लादेश हैं, न कि कोई तीसरा पक्ष, निकट या दूर, जो सेनाओं की इस जटिल परस्पर क्रिया को प्रबंधित कर सकता है और एक-दूसरे के साथ रहने के तरीके पर एक रूपरेखा पर पहुंच सकता है. यही उप-क्षेत्र में स्थिरता सुनिश्चित करने का आधार है.

बांग्लादेश भारत के लिए एक स्थायी प्राथमिकता है. इसे भारतीय विदेश एवं सुरक्षा नीति का रडार कभी नहीं छोड़ता. इसके विपरीत, बांग्लादेश पर शेष विश्व का ध्यान यदा-कदा और छिटपुट रहता है और हमेशा मददगार नहीं होता. बड़े वैश्विक परिदृश्य पर एक खिलौना के अलावा बांग्लादेश प्रमुख शक्तियों के लिए बहुत कम महत्वपूर्ण है.

जैसे-जैसे चुनाव का समय नजदीक आ रहा है, बांग्लादेश फिर से ध्यान आकर्षित करने लगा है. सभी दक्षिण एशियाई लोगों की तरह बांग्लादेशी भी राजनीति में आनंद लेते हैं. बांग्लादेश के लोगों को बाहरी हस्तक्षेप, दबाव, धमकी या प्रभाव के बिना मतदान करने और अपने भाग्य का फैसला करने की अनुमति दी जानी चाहिए.

शासन प्रणाली का चयन करने का अधिकार केवल बांग्लादेश के लोगों को है. लोकतंत्र को न तो बाहर से निर्यात किया जा सकता है और न ही बाहर से थोपा जा सकता है. इसके पास अपनी जड़ें खोजने और अपने लोगों की प्रतिभा का अनुसरण करने का एक तरीका है.

हमारे दोनों देशों के लोगों की खातिर, हमें उम्मीद करनी चाहिए कि राजनीतिक वर्ग और बांग्लादेशी समाज के अन्य स्तंभ, एक-दूसरे के हितों को ध्यान में रखते हुए भारत के साथ अधिक आर्थिक एकीकरण और मजबूत संबंधों की दिशा में आगे बढ़ते रहेंगे. हाल के इतिहास से पता चला है कि यह संभव है और यही किया जाना चाहिए. ऐसा कोई कारण नहीं है कि इन लाभों को न केवल कायम रखा जा सके, बल्कि इन्हें आगे भी बढ़ाया जा सके.

(लेखक पूर्व राजदूत और नैटस्ट्रैट के संयोजक हैं.)


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