क्या सरदार पटेल वाकई मुस्लिम विरोधी थे? सच बनाम धारणा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 31-10-2025
Was Sardar Patel really anti-Muslim? Truth versus perception.
Was Sardar Patel really anti-Muslim? Truth versus perception.

 

sसाकिब सलीम

भारतीय इतिहास में कुछ ही व्यक्तित्व ऐसे हैं जिनकी विरासत को लेकर उतना विवाद रहा है जितना सरदार पटेल के साथ है.कई मुस्लिम और वामपंथी विश्लेषक मानते हैं कि सरदार पटेल हिंदू समर्थक थे, अगर सीधे शब्दों में कहें तो मुस्लिम विरोधी, जबकि संघ परिवार से जुड़े लोग भी उन्हें इसी कारण महिमामंडित करते हैं.

हालाँकि, कई विद्वानों ने उनके व्यक्तित्व को संतुलित रूप से देखा है और यह निष्कर्ष निकाला है कि वे एक व्यावहारिक व्यक्ति थे जिन्हें ऐसे समय में देश का नेतृत्व करना पड़ा जब धार्मिक भावनाएँ चरम पर थीं और देश को धर्म के नाम पर बाँटा जा रहा था.क्या सरदार पटेल एक सांप्रदायिक व्यक्ति थे जो हिंदुओं को मुसलमानों या अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों से अधिक तरजीह देते थे?
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इस प्रश्न का उत्तर खोजने से पहले यह समझना ज़रूरी है कि सरदार पटेल महात्मा गांधी के सबसे विश्वसनीय अनुयायियों में से एक थे .वही गांधी जो हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक थे.जब उन पर हिंदू पक्षधर होने के आरोप लगे, तो 17 दिसंबर 1948 को जयपुर में एक सभा में उन्होंने कहा था,“मैं हमेशा शांति चाहता हूँ.अगर ऐसा न होता, तो मैं गांधीजी के साथ जीवनभर नहीं रह सकता था.

चाहे मेरे विचार हिंदुओं, मुसलमानों या किसी और को अप्रिय क्यों न लगें, मैं वही कहता हूँ जो मुझे सही लगता है.मैं स्वीकार करता हूँ कि मेरी भाषा कभी-कभी कठोर होती है, लेकिन यदि मुझे ‘सही भाषा’ सीखनी होती तो मुझे अपना अगला जन्म भी गांधीजी के साथ बिताना पड़ता.”

यह एक प्रकार से आरोपों के प्रति उनका बचाव लग सकता है, लेकिन सच्चाई की जाँच कैसे करें?सबसे पहले देखना होगा कि क्या सरदार ने कांग्रेस के भीतर सांप्रदायिक ताकतों का साथ दिया था.

विभाजन से पहले, जब मुस्लिम लीग पाकिस्तान की माँग कर रही थी और पूरे देश में सांप्रदायिक माहौल गरम था, तब कांग्रेस की अखिल भारतीय समिति के एक हिंदू सदस्य ने कहा कि सभी मुसलमानों को कांग्रेस छोड़कर मुस्लिम लीग में शामिल हो जाना चाहिए.इस पर सरदार पटेल ने डटकर कहा कि ऐसे विचार रखने वाला वही व्यक्ति खुद कांग्रेस छोड़ दे, क्योंकि उसकी मानसिकता मुस्लिम लीग से ज़्यादा मेल खाती है.

1946 में जब संविधान सभा का गठन हो रहा था, तब कई हिंदू नेताओं ने यह सवाल उठाया कि सीमांत प्रांत (NWFP) में कोई गैर-मुस्लिम सीट नहीं है और वहाँ से कोई हिंदू नहीं चुना जा सकता.इस पर सरदार पटेल ने इस व्यवस्था का समर्थन किया.

उन्होंने 26 मई 1946 को गोपीचंद भार्गव को लिखे पत्र में कहा,“यह सही है कि सीमांत प्रांत में गैर-मुसलमानों को कोई सीट या सदस्य चुनने का अधिकार नहीं मिला, लेकिन उड़ीसा में मुसलमानों के साथ भी यही व्यवहार हुआ है क्योंकि जनसंख्या के आधार का सिद्धांत समान रूप से स्वीकार किया गया है.इसलिए इसमें किसी अन्याय की बात नहीं कही जा सकती.”

एक और आरोप यह था कि सरदार पटेल ने मुसलमानों को चेतावनी दी थी कि यदि वे देश के प्रति वफादार नहीं रहे तो परिणाम भुगतने होंगे.बहुत से लोगों का मानना है कि उन्होंने मुसलमानों को राष्ट्रविरोधी मान लिया था.लेकिन क्या यह कठोर भाषा केवल मुसलमानों के लिए थी या यह उनका सामान्य स्वभाव था?

6 मई 1948 को सरदार ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी को लिखा,“... जिस तरह कुछ महीने पहले तक हिंदू महासभा के कई नेताओं — जैसे महंत दिग्विजयनाथ, प्रो. रामसिंह और देशपांडे ने उग्र सांप्रदायिकता का प्रचार किया, क्या उसे सार्वजनिक सुरक्षा के लिए खतरा नहीं माना जा सकता? यही बात आर.एस.एस. पर भी लागू होती है.”

17 मार्च 1949 को संसद में सरदार पटेल ने कहा कि भारत दो आंतरिक खतरों का सामना कर रहा है — साम्यवादी और सांप्रदायिक.उन्होंने कहा,“सांप्रदायिक खतरा मुख्यतः आर.एस.एस. और अकाली दल से आया है.अगर आर.एस.एस. शांति और संवैधानिक तरीकों से हिंदू समाज का उत्थान करना चाहता है, तो कोई विवाद नहीं। लेकिन जब वह अन्य समुदायों के प्रति नफरत फैलाने या हिंसा का सहारा लेता है, तब वह कानून और व्यवस्था के विरुद्ध खड़ा हो जाता है.”

इसी भाषण में सरदार पटेल ने कहा,“शायद मैं मुसलमानों के बारे में भी कुछ कहना चाहूँ.सिवाय कुछ पुरानी संगठनों जैसे मुस्लिम लीग या मुस्लिम नेशनल गार्ड्स की छिटपुट गतिविधियों के, देश के मुसलमानों ने शांति बनाए रखी है और वे, भले ही निराश हैं, लेकिन नए देश के प्रति अपनी निष्ठा निभा रहे हैं.मैं उन्हें आश्वस्त करना चाहता हूँ कि जब तक वे देश के वफादार नागरिक बने रहेंगे, सरकार उन्हें जीवन, संपत्ति और धर्म की पूर्ण सुरक्षा देगी... हमने दिल्ली में मुसलमानों की सुरक्षा सुनिश्चित की, उनकी संपत्तियों को वापस लौटाने का प्रबंध किया, मस्जिदों की मरम्मत कराई — यह सब इसका प्रमाण है.”

क्या यह बयान किसी ‘मुस्लिम विरोधी’ व्यक्ति का लगता है?उसी भाषण में उन्होंने कम्युनिस्टों के बारे में कहा,“हम संवैधानिक प्रगति और शांतिपूर्ण तरीकों के पक्षधर हैं.यदि कम्युनिस्ट इन तरीकों से परिवर्तन लाना चाहें तो उनका अधिकार है, लेकिन अगर वे हिंसा, छल या षड्यंत्र का सहारा लेते हैं, तो सरकार उन्हें अपनी पूरी ताकत से कुचल देगी.”

जब सरदार हैदराबाद गए (ऑपरेशन पोलो के बाद), तब कहा गया कि उन्होंने मुसलमानों को चेतावनी दी थी.लेकिन यह भूल जाते हैं कि उन्होंने उसी भाषण में हिंदुओं को भी चेताया था.

हैदराबाद में उन्होंने कहा,“जब मैं सुनता हूँ कि कुछ मुसलमान लैक अली के भाग जाने पर खुशियाँ मना रहे हैं, तो मुझे स्वाभाविक रूप से संदेह होता है कि क्या वे भारत में अपना भविष्य देखते हैं.

लेकिन मैं यह नहीं कहता कि केवल मुसलमान ही दोषी हैं.जब गांधीजी की हत्या हुई थी, तब कुछ हिंदुओं ने भी खुशी मनाई थी.जब तक यह शैतानी दोनों समुदायों से नहीं जाती, तब तक सच्ची शांति संभव नहीं.मैं मुसलमानों से कहना चाहता हूँ कि वे समान नागरिक हैं, उन्हें कानून और सरकार से पूरा संरक्षण मिलेगा.लेकिन हर भारतीय, चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान, उसे पहले भारतीय बनकर सोचना और व्यवहार करना होगा.”

सरदार बार-बार यह स्पष्ट करते थे कि वे ‘मुस्लिम लीग’ और ‘भारतीय मुसलमानों’ में फर्क करते हैं.उनके अनुसार आम मुसलमान मुस्लिम लीग की नीतियों से सबसे अधिक पीड़ित हुए थे और अब उन्हें अपनी निष्ठा साबित करने का दबाव झेलना पड़ रहा था.

दरअसल, सरदार पटेल को सांप्रदायिक बताने का एक बड़ा कारण पाकिस्तान के अख़बारों की गलत रिपोर्टिंग थी.मार्च 1950 में जब वे पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए शरणार्थियों की स्थिति देखने कोलकाता गए, तब पाकिस्तानी अख़बारडॉनने लिखा कि सरदार ने कहा,“नोआखाली को मत भूलो, अपनी स्वतंत्रता के रक्षकों को मत भूलो... तुम्हारा लक्ष्य अभी पूरा नहीं हुआ है.”

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लेकिन वास्तव में सरदार ने ऐसा कुछ नहीं कहा था.उन्होंने पुलिस के संदर्भ में कहा,“हमने पहले पुलिस को बुरा-भला कहा, अब उस मानसिकता को बदलना होगा.आज की पुलिस वही नहीं है, वे स्वयंसेवक हैं, जो बड़ी जिम्मेदारी निभा रहे हैं.हमें उनके प्रति सम्मान और सहानुभूति रखनी चाहिए.”

कोलकाता में उन्होंने जनता से कहा,“क्रोध या घृणा से कुछ हासिल नहीं होगा.हमारे भाई, हिंदू और मुसलमान, हमसे अलग हो गए हैं.हम सब चाहते हैं कि दोनों ओर के लोग खुशहाल रहें, लेकिन इसके लिए दोनों को धैर्य, साहस और विवेक से काम लेना होगा.”

सारांश रूप में,सरदार पटेल एक व्यावहारिक व्यक्ति थे जिनकी जिम्मेदारी देश में कानून और व्यवस्था बनाए रखने की थी.वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते थे.उन्होंने मुसलमानों की आलोचना की तो हिंदुओं, सिखों और कम्युनिस्टों को भी नहीं बख्शा.बल्कि अगर गौर से देखा जाए तो गांधीजी की हत्या के बाद उन्होंने कम्युनिस्टों और आर.एस.एस. के खिलाफ कहीं अधिक सख्त रुख अपनाया था.