क्या सरदार पटेल मुस्लिम बस्ती बसाने के खिलाफ थे ?

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 31-10-2025
Was Sardar Patel against establishing Muslim settlements?
Was Sardar Patel against establishing Muslim settlements?

 

fसाक़िब सलीम

टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) के प्रोफ़ेसर अब्दुल शबन लिखते हैं कि दंगों के डर, आर्थिक अक्षमता और धार्मिक पहचान के कारण आवास बाज़ार में भेदभाव के चलते, मुस्लिम बड़े पैमाने पर शहरों के पुराने हिस्सों में अपने ghettos (बस्ती) में ही कैद होकर रह जाते हैं.इन बस्तियों की ख़ासियत है कि वहाँ विकास की कमी होती है और दूसरों का डर बना रहता है.

जस्टिस राजेंद्र सच्चर की अध्यक्षता वाली समिति ने भी अपनी रिपोर्ट में यह नोट किया था.हालाँकि बस्तियों में रहना उन्हें अपनी संख्या की मज़बूती के कारण सुरक्षा की भावना देता है, लेकिन यह समुदाय के फ़ायदे के लिए नहीं रहा है.

समिति ने पाया कि मुसलमानों का केंद्रित पॉकेट्स में एक साथ रहना उन्हें सरकारी अधिकारियों द्वारा उपेक्षा (Neglect) का आसान निशाना बना देता है.इन क्षेत्रों में पानी, स्वच्छता, बिजली, स्कूलऔर परिवहन सुविधाएँ—सभी कम मात्रा में हैं.समिति ने चेतावनी दी कि समुदाय का बढ़ता ghettoisation सार्वजनिक क्षेत्र में उनके लिए एक सिकुड़ते स्थान का संकेत देता है, जो एक अस्वस्थ प्रवृत्ति है.

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विभाजन और अलगाव की नीति पर मतभेद

विद्वान इस बात पर लगभग एकमत हैं कि मुसलमानों के ghettoisation (बस्ती में सीमित होने) का भारत में इस सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक के विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.यह प्रक्रिया आज़ादी से बहुत पहले, 20वीं सदी की शुरुआत में ही शुरू हो गई थी और विभाजन के बाद यह अलगाव और भी ज़्यादा बढ़ गया.मुसलमान ख़ुद 'अपनों' के बीच रहना चाहते थे और हिंदू 'दूसरों' को अपने इलाक़ों में नहीं चाहते थे.

जवाहरलाल नेहरू सहित अधिकांश भारतीय राजनेताओं ने मुसलमानों की इस इच्छा को वैध माना था और उनका मानना था कि मुसलमानों को अपने 'सुरक्षित स्थान' रखने का पूरा अधिकार है.लेकिन, सरदार वल्लभभाई पटेल का नज़रिया अलग था.

शुरुआत से ही वह 'किसी समुदाय के लिए विशेष स्थान' के विचार के ख़िलाफ़ थे.उन्होंने पहले ही देख लिया था कि ऐसी नीति एक समुदाय को ghettoisation की ओर ले जाएगी और राष्ट्रीय जीवन की मुख्यधारा में उनके एकीकरण को रोकेगी.

विभाजन के बाद, जब हिंदू और मुस्लिम आबादी का आदान-प्रदान हो रहा था और दिल्ली में शरणार्थियों की भारी बाढ़ आई, तब 21नवंबर, 1947को, जवाहरलाल नेहरू ने सरदार पटेल को लिखा कि पाकिस्तान चले जाने वाले मुसलमानों के ख़ाली हुए घरों को गैर-मुसलमानों को आवंटित नहीं किया जाना चाहिए.

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पटेल का धर्मनिरपेक्ष और मिश्रित समाज का दृष्टिकोण

सरदार पटेल ने जवाब दिया कि वह शहर में मुस्लिम पॉकेट्स और हिंदू पॉकेट्स के गठन के ख़िलाफ़ थे.उनके विचार में, इससे दोनों समूहों के बीच दुश्मनी बढ़ेगी क्योंकि सामाजिक मेलजोल कम से कम होगा.उन्होंने ख़ाली मकानों को आवंटित करने से पहले क़ब्ज़ा करने वालों के धर्म की नहीं, बल्कि उनके चरित्र की जाँच करने की ज़रूरत पर सहमति व्यक्त की.

9 दिसंबर 1947 को, जब के.सी. नियोगी ने शरणार्थियों से निपटने के लिए सिर्फ़ समान धर्म के सरकारी कर्मचारियों और पुलिस को तैनात करने का सुझाव दिया, तो सरदार पटेल ने साफ़ इनकार कर दिया.उन्होंने कहा कि ऐसा दृष्टिकोण समाज में और ज़्यादा दरार पैदा करेगा और सरकार अपनी नीतियों में सांप्रदायिक विभाजन को मज़बूत नहीं कर सकती.

अक्सर लगाया जाने वाला यह आरोप कि सरदार पटेल की नीतियाँ मुस्लिम विरोधी थीं, बेबुनियाद हो जाता है, क्योंकि उनका दृढ़ विश्वास था कि हिंदुओं और मुसलमानों को एक धर्मनिरपेक्ष भारत में मिश्रित समाज में एक साथ रहना चाहिए.

जब डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने दिल्ली में मुस्लिम पुलिसकर्मियों की संख्या कम करने और हिंदुओं को आत्मरक्षा के लिए हथियार उपलब्ध कराने के लिए कहा, तो सरदार पटेल ने इस बात से इनकार कर दिया कि वह इन पुलिस अधिकारियों को हटा नहीं सकते क्योंकि वे स्थायी कर्मचारी थे.हथियारों के बारे में उन्होंने कहा कि वह वितरण के लिए कोई उदार नीति नहीं बना सकते, क्योंकि उन्हें "यक़ीन नहीं था कि इन हथियारों का इस्तेमाल मुसलमानों के ख़िलाफ़ नहीं होगा."

सरदार पटेल का मानना था कि भारत तभी समृद्ध हो सकता है जब लोग एक साथ रहें, घुल-मिल जाएँ और एक-दूसरे की सेवा करें.यह महात्मा गांधी की शिक्षाओं के अनुरूप था.सरदार पटेल ने 1947 में ही अनुमान लगा लिया था कि मुसलमानों का ghettoisation ख़ुद मुसलमानों के लिए एक समस्या बन जाएगा, हालाँकि उस समय उनके विचारों को कई लोगों ने मुस्लिम विरोधी क़रार दिया था.

1949 में हैदराबाद में सरदार पटेल ने स्पष्ट कहा था, “मुसलमान विदेशी नहीं हैं.वे हमारे बीच के हैं.हमारे धर्मनिरपेक्ष राज्य में, हमने यह सुनिश्चित करने की कोशिश की है कि मुसलमान समान नागरिकों के रूप में अपने सभी अधिकारों का आनंद लें."