भारत के मुसलमानों के लिए विकास की रोशनी चुराने का वक्त आ गया

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 08-05-2022
भारत के मुसलमानों के लिए विकास की रोशनी चुराने का वक्त आ गया
भारत के मुसलमानों के लिए विकास की रोशनी चुराने का वक्त आ गया

 

डॉक्टर शुजाअत अली कादरी
 
अल्पसंख्यक बहुल जिलों में विकास योजनाओं से भारत के 90 जिलों में तस्वीर बदल रही है. इन 90 जिलों को 2008 में अल्पसंख्यक बहुल जिले यानी एमसीडी में अंकित किया गया था. यह सामाजिक बुनियादी ढांचे का निर्माण और बुनियादी सुविधाएं प्रदान करके अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों की विकासात्मक कमियों को दूर करने के लिए क्षेत्रीय विकास की पहल है. 

राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम, 1992 की धारा 2 (सी) के तहत मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी (पारसी) और जैन को अल्पसंख्यक समुदायों के रूप में अधिसूचित किया गया है. इस योजना का मूल नाम ‘अल्पसंख्यकों के लिए बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम’ यानी एमसीडीएस से जाना जाता है. 
 
भारत सरकार का अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय इस योजना की देखरेख करता है. मुसलमानों के संदर्भ में इस योजना का महत्व इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि भारतीय मुसलमानों में गरीबी की दर बहुत अधिक है. जहां दलित पुरुषों के 53 प्रतिशत के पास काम है वहीं सिर्फ 48 प्रतिशत  बेरोजगार हैं.
 
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इसी तरह 23 प्रतिशत दलित महिलाएं रोजगार करती हैं, जबकि मुस्लिम महिलाओं में यह प्रतिशत मात्र 9.6 प्रतिशत है. साल 2001 की जनगणना के हिसाब से देश की साक्षरता दर 64.80 प्रतिशत है, जबकि मुसलमानों में यह मात्र 59.10 प्रतिशत ही है.
 
मुसलमान औसतन बीमार भी ज्यादा होते हैं, क्योंकि साफ पीने के पानी के लिए उनके घरों में पाइप लाइन सिर्फ 19 प्रतिशत ही बिछी हुई है. अब जबकि स्थिति इतनी गंभीर है तो जाहिर है भारत सरकार भी उनकी स्थिति में सुधार के लिए काम तो करेगी. 
 
आज बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम को 14 साल हो गए और कई जिलों में इसके बेहतर परिणाम भी आने लगे हैं.बहु-क्षेत्रीय विकास कार्यक्रम के चिन्हित 90 जिलों में उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक जिले हैं.
 
यहां के 21 जिले योजना में चिन्हित हैं. असम के 13, पश्चिम बंगाल के 12, बिहार व अरुणाचल प्रदेश के 7-7, मणिपुर के 6, झारखंड व महाराष्ट्र के 4-4, हरियाणा, उत्तराखंड, कर्नाटक व मिजोरम के 2-2, दिल्ली, मेघालय, अंडमान निकोबार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, केरल, सिक्किम व लद्दाख के 1-1 जिले इस योजना में कवर हैं. इसके साथ ही क्लास 1 के 338 कस्बे और 1228 ब्लॉक भी इस योजना में सूचीबद्ध हैं.

योजना का आधार है कि अल्पसंख्यक आबादी जिले या कस्बे में 25 फीसदी या इससे ज्यादा है. कस्बे और ब्लॉक स्तर पर जाने का लाभ यह है कि कई राज्य जिले की लिस्ट में कवर नहीं हैं, लेकिन कस्बे और ब्लॉक स्तर पर उनके अल्पसंख्यक क्षेत्रों को कवर किया गया है.
 
मिसाल के तौर पर 90 जिलों की राष्ट्रीय सूची में पंजाब और राजस्थान नहीं है, लेकिन कस्बे की सूची के आधार पर पंजाब के 26 कस्बे और राजस्थान के 16 कस्बे कवर किए गए हैं. मगर इसका यह मतलब भी नहीं कि जिन राज्यों के जिले इसमें कवर हैं,
 
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उनके कस्बे या ब्लॉक छोड़ दिए गए हैं. उदाहरण के तौर पर उत्तर प्रदेश के सबसे अधिक 21 जिले एमसीडी योजना में कवर हैं, जबकि दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त 71 कस्बे योजना में कवर किए गए हैं. यह उन 21 जिलों से अलावा हैं.
 
इसका उद्देश्य शिक्षा, कौशल विकास, स्वास्थ्य, स्वच्छता, पक्के आवास, सड़कों और पेयजल के लिए बेहतर बुनियादी ढांचा प्रदान करना और अल्पसंख्यकों के लिए आय के अवसर पैदा करना है. यह समावेशी विकास, विकास प्रक्रिया में तेजी लाने और लोगों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए केंद्र और राज्यों के संयुक्त प्रयास की उम्मीद करता है.
 
यह योजना अतिरिक्त संसाधन उपलब्ध कराकर सरकार की मौजूदा योजनाओं में कमियों को भरने का भी प्रयास करती है. साथ ही अल्पसंख्यक कल्याण के लिए नवीन परियोजनाओं को भी निष्पादित करती है, ताकि इस बीच विकास का जो खालीपन है उस पर तेजी से काम किया जा सके.
 
वर्ष 2017 में भारतीय लोक प्रशासन संस्थान ने एमसीडी योजना पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की. रिपोर्ट के चैप्टर 4 में कहा गया “ऐसा प्रतीत होता है कि ये आइटम अनिवार्य रूप से तीन क्षेत्रों से संबंधित हैंः शिक्षा, स्वास्थ्य और पेयजल.
 
पानी की आपूर्ति की मात्रा या अवधि में सुधार से लेकर स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं तक बेहतर पहुंच या उस मामले के लिए माध्यमिक विद्यालय तक पहुंच को देखते हुए, रिकॉर्ड किए गए डेटा एमएसडीपी के उनके दैनिक जीवन पर प्रभाव की पुष्टि करते हैं.
 
यह सुनने में अटपटा लग सकता है, कुछ के लिए मामूली भी, लेकिन हमने उन लोगों के चेहरों पर थोड़ी संतुष्टि देखी, जो लंबे समय तक उपेक्षा के कारण अनिवार्य रूप से अलग-थलग महसूस कर रहे थे. सच है, सभी को लाभ नहीं हुआ है, लेकिन इन छोटे-छोटे इशारों के साथ, एमएसडीपी अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों में लोगों के एक बड़े वर्ग के मन में हताशा रोकने में सक्षम है.“
 
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मुसलमानों की तीन जरूरतें हैं. शिक्षा, रोजगार और स्वास्थ्य. साल 2022-23 के बजट में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को 5020.50 करोड़ रुपए आबंटित किए गए. यह पिछले बजट से 674 करोड़ रुपए अधिक है.
 
जाहिर है इसमें अल्पसंख्यक आबादी वाले क्षेत्रों के विकास का भी लक्ष्य है. अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कोरोना महामारी के बीच इस बजट को भरोसा और विकास बढ़ाने वाला बताया था.
 
अगर सभी 90 चयनित जिलों में पूरी लगन और सोद्देश्य रूप से मेहनत कर रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को साथ लेकर मेहनत की जाए तो पूरे भारत के मुसलमानों के लिए यह जिले मिसाल बन सकते हैं. उम्मीद है कि 90 जिलों की रोशनी से पूरे भारत के अल्पसंख्यक अपने विकास के लिए जरूर रोशनी चुरा सकेंगे.
 
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार और मुस्लिम स्टूडेंट्स ऑर्गेनाइजेशन ऑफ इंडिया के चेयरमैन हैं.)