हज: आस्था, एकता और समानता की यात्रा

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 05-06-2025
Hajj: A journey of faith, unity and equality
Hajj: A journey of faith, unity and equality

 

 डॉ. उज़मा खातून

हर वर्ष, दुनिया भर से लाखों मुसलमान सऊदी अरब के पवित्र नगर मक्का की ओर हज करने जाते हैं.यह पुण्य यात्रा केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि इस्लाम के मूल सिद्धांतों में से एक—मानव समानता की याद दिलाने वाला गहरा प्रतीक है.हज के दौरान नस्ल, राष्ट्रीयता, सामाजिक वर्ग और धन जैसे सभी बाहरी भेदभाव समाप्त हो जाते हैं.हर व्यक्ति एक जैसे सादे वस्त्र पहनता है, एक जैसे कर्म करता है, और कंधे से कंधा मिलाकर इबादत करता है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि अल्लाह की नजर में सभी इंसान बराबर हैं.

हज इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है.हर वयस्क मुसलमान पर, यदि वह शारीरिक और आर्थिक रूप से सक्षम हो, तो जीवन में कम से कम एक बार हज करना फर्ज़ है.यह हर साल इस्लामी चंद्र पंचांग के 12वें महीने ज़िल-हिज्जा की 8 वीं से 13 वीं तारीख के बीच सम्पन्न होता है.

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इसके रिवाज हज़ारों साल पुराने हैं, जब हज़रत इब्राहीम (अलैहि.) ने अपने पुत्र इस्माईल (अलैहि.) के साथ मिलकर काबा का पुनर्निर्माण किया.माना जाता है कि वे अल्लाह के आदेश का पालन कर रहे थे, और इन्हीं परंपराओं को बाद में पैग़ंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने पूरा किया.

हज का एक अत्यंत महत्वपूर्ण पहलू है "एहराम की स्थिति".हज शुरू करने से पहले पुरुष दो बिना सिले सफेद कपड़े पहनते हैं, जबकि महिलाएं साधारण और शालीन वस्त्र पहनती हैं—अक्सर सफेद या हल्के रंगों में.

इससे सामाजिक या आर्थिक स्थिति का कोई संकेत नहीं मिलता। चाहे कोई राजा हो या मज़दूर, अमीर हो या गरीब—सभी एक जैसे दिखते हैं.यह दृश्य समानता उस आध्यात्मिक सच्चाई का प्रतीक है कि अल्लाह के सामने सभी बराबर हैं.यह तीर्थयात्रियों को अपने अहंकार और घमंड को पीछे छोड़कर नम्रता और समर्पण की भावना में प्रवेश करने की याद दिलाता है.

जब हाजी मक्का पहुँचते हैं और “लब्बैक अल्लाहुम्मा लब्बैक” (हे अल्लाह, मैं हाज़िर हूँ) का उद्घोष करते हैं, तो वे यह घोषणा करते हैं कि वे अल्लाह के बुलावे पर आए हैं.यह नारा पूरे हज के दौरान बार-बार दोहराया जाता है और एक आध्यात्मिक वातावरण तैयार करता है, जिसमें एकता और भक्ति झलकती है.

हज के विभिन्न रिवाज गहरे प्रतीकों से भरे हुए हैं.सबसे पहले होता है तवाफ़, जिसमें हाजी काबा के चारों ओर सात चक्कर लगाते हैं.यह इस बात का प्रतीक है कि अल्लाह एक मुसलमान के जीवन के केंद्र में है.

फिर आता है सई, जिसमें हाजी सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ते हैं.यह हज़रत हाजरा (अलैहि.), हज़रत इब्राहीम की पत्नी, की उस संघर्ष की याद है जब उन्होंने अपने नवजात पुत्र इस्माईल के लिए रेगिस्तान में पानी की तलाश की थी.यह कथा, जो अब्राहमिक परंपराओं में साझा है, एक माँ के साहस, विश्वास और उम्मीद की प्रतीक है.

हज का सबसे महत्वपूर्ण चरण होता है अराफात के मैदान में ठहरना.9वीं ज़िल-हिज्जा को दोपहर से सूर्यास्त तक, हाजी दुआ करते हैं, अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और आत्मनिरीक्षण करते हैं.

यही हज की आत्मा मानी जाती है.इसी स्थान पर पैग़ंबर मुहम्मद (स.अ.व.) ने अपना प्रसिद्ध विदाई भाषण दिया था, जिसमें उन्होंने मानव समानता, न्याय और दूसरों के साथ सम्मानपूर्ण व्यवहार की बात कही थी.उन्होंने कहा था, "न कोई अरबी अजमी पर श्रेष्ठ है, न कोई गोरा काले पर। श्रेष्ठता केवल अच्छे चरित्र और ईश्वर-भक्ति में है."

इसके बाद हाजी मुज़दलिफ़ा में रात बिताते हैं और फिर मिना पहुँचते हैं, जहाँ शैतान को कंकर मारने की रस्म निभाई जाती है.यह हज़रत इब्राहीम द्वारा शैतान के प्रलोभन को ठुकराने की स्मृति है.

इसके बाद एक जानवर की कुर्बानी दी जाती है—जो इब्राहीम की अल्लाह के लिए अपने बेटे को कुर्बान करने की तत्परता की याद में होती है.इस कुर्बानी का मांस गरीबों और ज़रूरतमंदों में बाँटा जाता है, जिससे समाज सेवा और दान की भावना प्रकट होती है.

फिर पुरुष अपने सिर के बाल मुंडवाते हैं या थोड़े काटते हैं, और महिलाएँ बालों का एक छोटा हिस्सा काटती हैं—यह आत्मिक नवीकरण का प्रतीक है.अंतिम कर्म है एक और तवाफ़, जिससे हज औपचारिक रूप से पूर्ण होता है.परंतु हज का असली उद्देश्य केवल इन कर्मों को निभाना नहीं, बल्कि आध्यात्मिक रूप से बदला हुआ व्यक्ति बनकर लौटना है—और अधिक नम्र, दयालु और न्यायप्रिय.

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हज में समाहित समानता का संदेश इस्लाम में कोई नई बात नहीं है—बल्कि यह इसकी नींव है.पैग़ंबर मुहम्मद (स.अ.व.) का विदाई भाषण इतिहास में मानव समानता का एक अत्यंत प्रभावशाली और आरंभिक घोषणापत्र माना जाता है.

आज जब नस्लवाद, जातिवाद और असमानता समाज को नुकसान पहुँचा रहे हैं, हज के दौरान प्रकट होने वाले मूल्यों की आज विशेष ज़रूरत है.यह हमें याद दिलाता है कि सभी मनुष्य एक ही परिवार के सदस्य हैं, जिन्हें एक ही ईश्वर ने बनाया है.

हज एक अत्यंत एकात्मता का अनुभव है.हर महाद्वीप से लोग—अलग रंग, भाषा और आर्थिक पृष्ठभूमियों वाले—एक साथ प्रार्थना करते हैं, भोजन साझा करते हैं और कठिनाइयाँ सहते हैं.मलेशिया का एक अमीर व्यापारी भारत के एक साधारण किसान के पास सो सकता है.कनाडा की एक प्रोफेसर इंडोनेशिया की एक गृह सहायिका के साथ चल सकती है.वे सभी समान हैं—एक ही इबादत, एक ही भावना.

यह अनुभव अक्सर लोगों के दिल बदल देता है.इसका सबसे प्रसिद्ध उदाहरण मैल्कम एक्स हैं—अमेरिका के अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार नेता.1964में हज करने के बाद उन्होंने कहा कि उन्होंने पहली बार देखा कि कैसे सभी रंगों के लोग सच्चे भाईचारे के साथ एक-दूसरे से पेश आते हैं.उन्होंने लिखा कि गोरे मुसलमान, जिनके साथ वे अमेरिका में कभी नहीं बैठ सकते थे, उनके साथ खाना खा रहे थे, एक साथ सो रहे थे.

उन्होंने कहा:“अमेरिका को इस्लाम को समझना होगा, क्योंकि यही एक धर्म है जो समाज से नस्लीय भेदभाव को मिटा देता है.मैंने मुस्लिम दुनिया में हर रंग के लोगों से मिला, बात की, खाना खाया—जहाँ रंग का कोई मतलब नहीं था, बल्कि सच्चा भाईचारा देखा.”

हज केवल एक व्यक्तिगत यात्रा नहीं है—यह दूसरों के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों की याद भी है.यह हमें सिखाता है—धैर्य, विनम्रता, सहानुभूति और सहनशीलता.आज जब समाज राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक मतभेदों से विभाजित है, हज यह याद दिलाता है कि जब हम साझा मानवता पर ध्यान केंद्रित करते हैं, तब एकता संभव है.

हज से लौटे मुसलमानों से अपेक्षा की जाती है कि वे जीवन को ईमानदारी, उदारता और करुणा से जिएं.हज में अनुभव की गई समानता, उन्हें जाति, वर्ग, नस्ल या लिंग पर आधारित अन्याय के खिलाफ खड़ा होने की प्रेरणा देती है.भारत जैसे देश, जहाँ सामाजिक विषमताएँ गहरी हैं, हज की शिक्षाएँ न्यायसंगत और दयालु समाज की ओर एक रास्ता दिखा सकती हैं.

अंततः, हज केवल मक्का जाने की यात्रा नहीं है—यह अंतरात्मा की ओर यात्रा है.यह जीवन के मुखौटे हटा देता है और मानवता का सच्चा स्वरूप प्रकट करता है.यह व्यक्ति को ईश्वर और दूसरों से जोड़ता है.यह सिखाता है कि न कोई श्रेष्ठ है, न कोई तुच्छ—सभी एक ईश्वर की संतान हैं, और सभी को गरिमा और सम्मान मिलना चाहिए.

हज विविधता में एकता का शाश्वत प्रतीक है.यह मुसलमानों के लिए एक गहराई से जुड़ी आध्यात्मिक ज़िम्मेदारी है, लेकिन साथ ही यह संपूर्ण मानवता के लिए एक सार्वभौमिक संदेश भी लिए हुए है.

आज की दुनिया, जहाँ हम अक्सर उन बातों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो हमें विभाजित करती हैं, हज हमें उन मूल्यों की याद दिलाता है जो हमें एकजुट करते हैं.यह हमें एक ऐसी दुनिया की कल्पना करने का निमंत्रण देता है, जहाँ लोग इस आधार पर एक साथ खड़े हों कि वे कौन हैं—बराबर, विनम्र और ईश्वर की दृष्टि में जुड़े हुए, न कि इस आधार पर कि उनके पास क्या है.

(डॉ. उज़मा खातून ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के इस्लामी अध्ययन विभाग में अध्यापन किया है.)