इस्लाम में क़ुर्बानी: केवल ईद-उल-अज़हा तक सीमित नहीं

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 07-06-2025
Qurbani in Islam: Not limited to Eid-ul-Adha only
Qurbani in Islam: Not limited to Eid-ul-Adha only

 

इमान सकीना

इस्लामी परंपरा में क़ुर्बानी (Qurbani) का विचार अत्यंत आदर और आध्यात्मिक गहराई रखता है. यद्यपि अधिकांश मुस्लिम क़ुर्बानी को विशेष रूप से ईद-उल-अज़हा के मुबारक अवसर से जोड़ते हैं, इसका सार इससे कहीं अधिक व्यापक है. इस्लाम में क़ुर्बानी केवल ज़िल-हिज्जा के दौरान जानवर की बलि देना नहीं है; बल्कि यह एक शाश्वत मूल्य, जीवनशैली और अल्लाह के प्रति समर्पण की निरंतर परीक्षा है.

क़ुर्बानी का गहरा अर्थ

अरबी शब्द क़ुर्बानी शब्द "क़ुर्ब" से आता है, जिसका अर्थ है निकटता. अतः इस्लाम में क़ुर्बानी का उद्देश्य अल्लाह के निकट आना है – शारीरिक और आत्मिक दोनों रूपों में। किसी प्रिय वस्तु को अल्लाह की खातिर छोड़ देना, एक मोमिन के समर्पण, प्रेम और आज्ञाकारिता का प्रतीक है.

क़ुरआन में यह आध्यात्मिक सत्य स्पष्ट किया गया है:"अल्लाह तक न उनका गोश्त पहुँचता है और न उनका खून, बल्कि उस तक तुम्हारी परहेज़गारी पहुँचती है."(सूरह अल-हज 22:37)

यह आयत सिखाती है कि ज़बह करने की बाहरी क्रिया केवल प्रतीकात्मक है. जो वास्तव में मायने रखता है, वह है क़ुर्बानी के पीछे की नीयत और ख़ुलूस. यह इस बात की घोषणा है कि अल्लाह से बढ़कर कुछ भी अहम नहीं—न धन, न आराम, न इच्छाएँ.

इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की कहानी – एक कालातीत आदर्श

ईद-उल-अज़हा की प्रेरणा हज़रत इब्राहीम (अ.स.) और उनके बेटे इस्माईल (अ.स.) की महान कहानी से आती है. जब इब्राहीम (अ.स.) को अपने बेटे की क़ुर्बानी देने का हुक्म मिला, तो उन्होंने कोई हिचक नहीं दिखाई. पिता और पुत्र दोनों ने अल्लाह की मर्ज़ी को पूरी तरह से स्वीकार कर लिया.

“ऐ मेरे बेटे! मैंने सपना देखा है कि मैं तुम्हें ज़बह कर रहा हूँ। अब तुम सोचो, तुम्हारा क्या विचार है?”

उसने कहा, “ऐ मेरे अब्बा! जो आपको हुक्म दिया गया है, वह कर डालिए। इंशा अल्लाह, आप मुझे सब्र करने वालों में पाएँगे.”(सूरह अस-साफ़्फ़ात 37:102)

हालाँकि अल्लाह ने इस्माईल (अ.स.) को एक मेंढे से बदल दिया, यह घटना केवल एक बार की नहीं थी जिसे हर साल याद किया जाए. यह एक ज़िंदगी बदल देने वाली परीक्षा थी—एक ऐसा मॉडल जिसे हर मुसलमान को अपने जीवन भर की हर आज्ञाकारिता में अपनाना चाहिए.

दैनिक जीवन में क़ुर्बानी

क़ुर्बानी की भावना मोमिन के जीवन के हर पहलू में समाई होनी चाहिए. इसका अर्थ है – ईमान को सुविधा से ऊपर रखना, सच्चाई को लोकप्रियता से ऊपर, और नेकी को निजी लाभ से ऊपर. यहाँ कुछ उदाहरण हैं कि दैनिक जीवन में क़ुर्बानी कैसे प्रकट होती है:

  1. इबादत के लिए समय और ऊर्जा देना

  2. आज के तेज़ जीवन में नमाज़, क़ुरआन की तिलावत और अल्लाह के ज़िक्र के लिए समय निकालना – अक्सर नींद, मनोरंजन या अन्य कार्यों की बलि चढ़ाना होता है. लेकिन जो मोमिन आराम छोड़ कर सज्दा करता है, वह अल्लाह के क़रीब पहुँचता है.

  3. सदक़ा और दरियादिली

  4. जब किसी के पास सीमित साधन हों और वह फिर भी अल्लाह की राह में खर्च करे, तो यह बड़ी क़ुर्बानी होती है. चाहे वह भूखों को खाना देना हो, मस्जिद बनवाना हो या किसी यतीम की मदद करना—ये सब क़ुर्बानी की भावना को दर्शाते हैं.

    "तुम नेकी को तब तक नहीं पा सकते जब तक अपनी प्रिय वस्तुओं में से खर्च न करो."(सूरह आल-इमरान 3:92)

  5. ख़्वाहिशों पर काबू

  6. गुनाहों से बचना, इच्छाओं पर नियंत्रण, और इस्लामी अख़लाक़ का पालन – यह सब तत्काल संतोष का त्याग है. जैसे अपनी नज़रें नीची रखना या ग़ीबत से बचना – ये चुपचाप की गईं क़ुर्बानियाँ रूह को पाक बनाती हैं.

  7. इंसाफ़ के लिए खड़ा होना

  8. अन्याय के खिलाफ़ सच्चाई बोलना, चाहे इससे अपनी सुविधा या प्रतिष्ठा को जोखिम क्यों न हो – एक महान क़ुर्बानी है. बहुत से नबी, आलिम, और इस्लामी सुधारक सताए गए, क्योंकि उन्होंने अल्लाह की बात को अपनी सुरक्षा से ऊपर रखा.

रिश्तों और सामाजिक ज़िम्मेदारियों में क़ुर्बानी

पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.) ने अपने जीवन में क़ुर्बानी की सबसे उत्तम मिसाल पेश की. उन्होंने अपनी आरामतलबी, दौलत और निजी इच्छाओं को उम्मत के लिए त्याग दिया. उन्होंने अपने दुश्मनों को माफ़ किया, तकलीफ़ें सब्र से सहीं और दूसरों के साथ रहमदिली से पेश आए.

क़ुर्बानी परिवार और समाज में भी झलकती है:

  • माँ-बाप जो अपने बच्चों के लिए नींद की क़ुर्बानी देते हैं.

  • पति-पत्नी जो आपसी अहं को छोड़कर घर में सुकून बनाए रखते हैं.

  • समाज के लोग जो दूसरों की सेवा के लिए अपना समय देते हैं.

  • छात्र जो लाभकारी ज्ञान के लिए अपनी फ़ुर्सत को त्यागते हैं.

ऐसे क़दम, जो भले ही रिवायती रूप से न मनाए जाएं, अल्लाह के यहाँ बड़ी अज्र रखते हैं.

रस्मों से आगे: निरंतर ईद

यदि ईद-उल-अज़हा क़ुर्बानी का प्रतीक है, तो मुसलमान का हर दिन उस प्रतीक को जीने का अवसर है. असली ईद तब है जब दिल पूरी तरह अल्लाह के आगे झुक जाए, जब स्वार्थ पर काबू पा लिया जाए, और जब अल्लाह का प्रेम हर चीज़ से बढ़कर हो जाए.

इसलिए पैग़म्बर (स.अ.) ने फ़रमाया:“यह दुनिया मोमिन के लिए एक क़ैदख़ाना है और काफिर के लिए जन्नत.”(सहीह मुस्लिम)

एक सच्चा मोमिन हमेशा अपने नफ़्स को काबू में रखता है, अक्सर कठिन रास्ता चुनता है अल्लाह की मोहब्बत में. लेकिन इसके बदले में उसे बहुत बड़ा इनाम मिलता है – इस दुनिया में सुकून और आख़िरत में जन्नत.

ईद-उल-अज़हा हमें क़ुर्बानी की अहमियत याद दिलाती है, लेकिन यह एकमात्र अवसर नहीं होना चाहिए जब हम इसे अपनाएं. असली क़ुर्बानी लगातार होती है – एक उम्र भर की जद्दोजहद, जो अल्लाह की रज़ा के लिए की जाती है. हर सब्र का पल, हर बार जब हम अपनी ख्वाहिशों पर अल्लाह को तरजीह देते हैं, हर नेक अमल जो दिल से किया गया – यही हमारी असली क़ुर्बानियाँ हैं.

आईए हम सोचें: क्या हम क़ुर्बानी की ज़िंदगी जी रहे हैं या आसानी की? क्या हम इब्राहीम (अ.स.) के नक़्श-ए-क़दम पर चल रहे हैं, जो अल्लाह के लिए सबसे प्यारी चीज़ को छोड़ने को तैयार थे?

अल्लाह हमें सच्चाई और अख़लूस के साथ जीने की ताक़त दे, कठिन वक़्त में भी देने का जज़्बा दे, और यह याद रखने की तौफ़ीक़ दे कि हर क़ुर्बानी हमें अल्लाह के और क़रीब लाती है.

आमीन !!!!