भीषण सूखे से जूझते मोरक्को में बकरीद पर कुर्बानी पर रोक

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 06-06-2025
Ban on sacrifice on Bakrid in Morocco battling severe drought
Ban on sacrifice on Bakrid in Morocco battling severe drought

 

आवाज़ द वॉयस | नई दिल्ली

इस्लामी दुनिया के अहम देशों में शुमार मोरक्को इस साल भीषण सूखा, पानी, चारे की भारी कमी और पशुधन संकट से जूझ रहा है. इन परिस्थितियों को देखते हुए मोरक्को सरकार ने इस साल बकरीद पर पारंपरिक कुर्बानी पर रोक लगाने का फैसला किया है. यह निर्णय पूरी तरह से प्राकृतिक आपदा और आर्थिक दबाव के चलते लिया गया है.

हालांकि, भारत में कुछ संगठन  भारतीय मुसलमानों के सामने ‘मॉडल’ के तौर पर पेश कर रहे हैं. उनका दावा है कि मोरक्को ने यह कदम "धार्मिक सुधार" के तहत उठाया है और भारतीय मुसलमानों को भी इससे सीख लेनी चाहिए.

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मोरक्को इस समय पिछले सात वर्षों से भीषण सूखे की चपेट में है.पशुओं की संख्या में 38% की गिरावट दर्ज की गई है.जलाशयों की क्षमता 23% तक घट चुकी है.

चारे की कीमतों में 50% तक की वृद्धि हुई है, जिससे किसानों और पशुपालकों की कमर टूट गई है.मांस की कीमतों में उछाल ने मध्यम और निम्न वर्ग के परिवारों के लिए कुर्बानी देना असंभव बना दिया है.

इन संकटों को देखते हुए मोरक्को के सम्राट किंग मोहम्मद VI, जो देश के धार्मिक प्रमुख भी हैं, ने ऐलान किया कि इस साल वह पूरे राष्ट्र की ओर से प्रतीकात्मक बलि देंगे. सरकार ने देशभर में पशु बाजार और मंडियां बंद कर दी हैं, ताकि कुर्बानी के लिए जानवरों की खरीद-बिक्री न हो.

क्या कहता है इस्लाम?

ईद अल-अधा या बकरीद, इस्लाम का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है, जो हज़रत इब्राहीम (अलैहिस्सलाम) की अल्लाह के प्रति निष्ठा और समर्पण की याद में मनाया जाता है. इस अवसर पर बलि एक धार्मिक कर्तव्य है, जिसे मुसलमान पूरे श्रद्धा और अनुशासन से निभाते हैं.

इस्लामी शिक्षाओं में यह स्पष्ट है कि बलि अनिवार्य नहीं, बल्कि सिफारिश की गई (सुन्नत ए मुअक्कदा) परंपरा है. परिस्थितियों के अनुसार इसमें छूट की गुंजाइश है, जैसा कि मोरक्को में हुआ.

हालांकि सरकार का यह निर्णय पर्यावरणीय कारणों से लिया गया है, लेकिन मोरक्को की जनता का एक हिस्सा इससे सहमत नहीं है. कई शहरों में विरोध प्रदर्शन हुए, और लोगों ने सरकार पर धार्मिक परंपरा में हस्तक्षेप का आरोप लगाया. सोशल मीडिया पर भी घर-घर तलाशी लेकर कुर्बानी रोकने वाले वीडियो वायरल हुए, जिससे मामला और संवेदनशील हो गया है.

मोरक्को का फैसला स्थानीय आपातकालीन संकट का नतीजा है.इसलिए यह आवश्यक है कि धार्मिक स्वतंत्रता को राजनीतिक या दुष्प्रचार के औज़ार के रूप में इस्तेमाल न किया जाए. अगर मोरक्को की तरह भारत में भी किसी दिन ऐसी आपदा आ जाए, तो इस्लाम रास्ता दिखाने में पीछे नहीं रहेगा.