हबीब तनवीर: रंगमंच का वह सितारा, जिसकी रौशनी आज भी मंच पर बिखरी है

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 08-06-2025
Habib Tanvir: The star of the theatre, whose light is still spread on the stage
Habib Tanvir: The star of the theatre, whose light is still spread on the stage

 

नई दिल्ली

दुनिया एक रंगमंच है और हम सब कलाकार हैं...” – इस विचार को अपने जीवन और कला के माध्यम से जीवंत करने वाले मशहूर नाट्य निर्देशक, लेखक, कवि और अभिनेता हबीब तनवीर का आज पुण्यतिथि है. रंगमंच को जन-जन तक पहुंचाने वाले इस फनकार ने 8 जून 2009 को 85 वर्ष की उम्र में दुनिया को अलविदा कह दिया था, लेकिन उनके नाटकों की गूंज आज भी थियेटर की रगों में दौड़ती है.

देसी जड़ों से जुड़ी रंगमंच की परंपरा

छत्तीसगढ़ की लोकसंस्कृति से गहराई से जुड़े हबीब तनवीर ने भारतीय रंगमंच को एक नई भाषा दी. उनकी नाट्यशैली में न तो भारी-भरकम सेट थे, न ही कृत्रिमता — बल्कि लोक-जीवन की सादगी, कथ्य की गहराई और सामाजिक संवेदना की स्पष्ट झलक थी.

उनके मशहूर नाटकों में ‘आगरा बाजार’ और ‘चरणदास चोर’ आज भी भारत के सबसे प्रभावशाली मंच प्रस्तुतियों में गिने जाते हैं. उन्होंने करीब 100 से अधिक नाटकों का निर्देशन किया और ‘नया थियेटर’ की स्थापना कर ग्रामीण कलाकारों को राष्ट्रीय मंच दिया.

Habib Tanvir with his tribal group at Naya Theatre

रंगमंच से जुड़े रहे जीवनभर

हबीब तनवीर ने न केवल भारतीय थिएटर को विश्वस्तरीय पहचान दिलाई, बल्कि उन्होंने पश्चिमी रंगशाला की पढ़ाई (रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट, लंदन) को भारतीय लोकनाट्य से इस तरह जोड़ा कि उनकी प्रस्तुतियों में गांव और वैश्विक चेतना एक साथ दिखाई देती थी.

आठ जून: इतिहास के आइने में

हबीब तनवीर के निधन के साथ ही 8 जून की तारीख इतिहास के कुछ अन्य अहम पलों की भी गवाह रही है:

  • 1658: औरंगज़ेब ने आगरा का किला अपने अधीन कर शाहजहाँ को कैद किया.

  • 1936: ‘इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस’ का नाम बदलकर ‘ऑल इंडिया रेडियो’ किया गया.

  • 1948: भारत और ब्रिटेन के बीच एअर इंडिया की पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरू.

  • 1983: मार्गरेट थैचर के नेतृत्व में कंजरवेटिव पार्टी ने ब्रिटेन के आम चुनाव में बड़ी जीत हासिल की.

  • 2004: 122 वर्षों बाद शुक्र ग्रह का दुर्लभ पारगमन देखा गया.

  • 2024: इजराइल ने हमास के कब्जे से चार बंधकों को मुक्त कराया; गाज़ा में 94 फलस्तीनी मारे गए.

एक विरासत जो जीवित है

हबीब तनवीर का जाना भारतीय रंगमंच के लिए एक युग का अंत था, लेकिन उनकी कला, सोच और दृष्टिकोण आज भी सैकड़ों कलाकारों, रंगकर्मियों और थिएटर समूहों को प्रेरणा देता है.

वे एक कलाकार भर नहीं थे — वे एक आंदोलन थे, जो रंगमंच को elitist मंच से उठाकर आम आदमी के जीवन से जोड़ने में सफल रहे.

Habib Tanvir with his group

क्या वह आज भी प्रासंगिक हैं?

आज की युवा पीढ़ी जब पूछती है — “हबीब तनवीर कौन थे?”, “क्या वे आज भी प्रासंगिक हैं?”, तो यह सवाल सिर्फ एक व्यक्ति की स्मृति का नहीं बल्कि हमारी सांस्कृतिक समझ की गहराई का भी है.

रंगमंच समीक्षक राजेश चंद्रा के अनुसार —

“उन्होंने भारतीय लोक कला को यूरोप और पश्चिम तक पहुँचाया, लेकिन उनका उद्देश्य ग्लैमर नहीं, बल्कि ‘सच्चाई’ को मंच पर लाना था. उनका फोकस था आम आदमी के संघर्ष, उसकी ज़रूरतें, उसकी इच्छाएँ — और इन सबको जनभाषा में परोसना.”

राजेश स्वीकारते हैं कि तनवीर के बाद कोई उस विरासत को आगे नहीं ले जा सका, लेकिन अरविंद गौड़ जैसे कुछ रंगकर्मी आज भी जीवन और जन-चेतना से जुड़ी नाट्य परंपरा को जीवित रखे हुए हैं.

एक rebellious raconteur थे तनवीर

हबीब तनवीर न तो उपदेशक थे, न ही केवल विद्रोही. वे किस्सागो थे, जनसंवाद के शिल्पकार, जिन्होंने शहर की जटिलता और गांव की सरलता को एक मंच पर खड़ा किया.

अनजुम कत्याल ने अपनी पुस्तक "Habib Tanvir: Towards an Inclusive Theatre" में तनवीर को उद्धृत किया:“The educated lack the culture which... the villages possess so richly... In the arts they are much more sophisticated…”

तनवीर के लिए साक्षरता से बड़ी चीज़ थी संस्कृति की मौलिकता. वे मानते थे कि गांवों का ‘सांस्कृतिक ज्ञान’ कहीं अधिक गहराई लिए होता है, भले वह लिखित न हो.

Habib Tanvir

क्या हम उन्हें भूल चुके हैं?

तनवीर को जानने के लिए सिर्फ उनका नाम या पुरस्कार गिनाना काफ़ी नहीं, उन्हें पढ़ना, देखना, महसूस करना ज़रूरी है. अफ़सोस की बात है कि आज के समय में जब कला बाजार और ट्रेंड के हिसाब से बिकती है, हबीब तनवीर जैसे कलाकार अप्रासंगिक मान लिए जाते हैं, लेकिन उनकी प्रासंगिकता आज भी गाँव की मिट्टी, नुक्कड़ की बोली, और असली भारत की धड़कन में ज़िंदा है.

 

आज जब थियेटर को नई पीढ़ी के लिए सहेजने की बात होती है, तब हबीब तनवीर का नाम सबसे पहले आता है — एक ऐसा नाम, जो नाटक को नाटक से आगे ले गया।