आवाज द वाॅयस /नई दिल्ली
तमिलनाडु के सलेम जिले की कलवरायन पहाड़ियों की एक आदिवासी लड़की राजेश्वरी ने अपने दिवंगत पिता का सपना साकार करते हुए एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की है.राजेश्वरी, जो मलयाली (अनुसूचित जनजाति) समुदाय से हैं, ने जेईई एडवांस्ड परीक्षा में सफलता पाकर आईआईटी में प्रवेश के लिए पात्रता प्राप्त की है.यह सफलता न केवल व्यक्तिगत विजय है, बल्कि पूरे आदिवासी समाज के लिए प्रेरणा की मिसाल भी बन गई है.
सलेम से लगभग 65 किलोमीटर दूर स्थित करुमंथुराई गाँव, जहां की 90%आबादी आदिवासी है, वहां शिक्षा एक दूर की चीज़ मानी जाती है.अधिकतर लोग आठवीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ देते हैं क्योंकि गरीबी, पलायन और संसाधनों की कमी उन्हें आगे बढ़ने नहीं देती.
लेकिन राजेश्वरी के पिता एंडी ने इस चलन को तोड़ने का बीड़ा उठाया था.दर्जी का काम करते हुए उन्होंने अपने चार बच्चों को शिक्षित करने का सपना देखा और उस सपने को साकार करने के लिए दिन-रात मेहनत की.उनकी पत्नी कविता ने भी मजदूरी कर इस सपने में योगदान दिया.
दुखद रूप से, 2024 में एंडी का कैंसर से निधन हो गया.वे अपनी बेटी को आईआईटी जाते देखने का सपना अपने दिल में लिए ही दुनिया से चले गए.लेकिन उनकी बेटी ने हार नहीं मानी — बल्कि जेईई एडवांस्ड में एसटी कैटेगरी में ऑल इंडिया रैंक 417लाकर अपने पिता की अधूरी इच्छा को पूरा कर दिखाया.
राजेश्वरी ने 10 वीं कक्षा में 500 में से 438 अंक, और 12 वीं में 600 में से 521 अंक प्राप्त किए.वह सरकारी आदिवासी आवासीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय, करुमंथुराई की छात्रा हैं.उन्होंने गणित-बायोलॉजी स्ट्रीम चुना और विशेष रूप से रसायन विज्ञान व गणित में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया.
राज्य सरकार द्वारा चलाए जा रहे जेईई कोचिंग कार्यक्रम के तहत उन्हें इरोड जिले के पेरुंदुरई में प्रशिक्षण मिला.उनके शिक्षकों ने उन्हें जेईई पैटर्न से परिचित कराया और लगातार मार्गदर्शन दिया.राजेश्वरी को आईआईटी मद्रास में दाखिले की पूरी उम्मीद है.
यद्यपि कंप्यूटर साइंस या इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग जैसे उच्च मांग वाले कोर्स में सीट मिलना कठिन हो सकता है, लेकिन इस उपलब्धि का प्रतीकात्मक और सामाजिक महत्व बहुत बड़ा है.तमिलनाडु के आदि द्रविड़ और आदिवासी कल्याण विभाग (ADTW) के अधिकारियों और शिक्षकों का कहना है कि वह सरकारी आदिवासी बोर्डिंग स्कूल से आईआईटी में पहुंचने वाली पहली छात्रा बन सकती हैं.
वर्तमान में राजेश्वरी कुमिझी स्थित एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय में एक विशेष तैयारी कार्यक्रम में भाग ले रही हैं, जहाँ उन्हें अंग्रेज़ी भाषा, सॉफ्ट स्किल्स और आईआईटी के माहौल के अनुकूल ढलने का प्रशिक्षण दिया जा रहा है.
पिता की मृत्यु के बाद राजेश्वरी के बड़े भाई श्रीगणेश ने सिलाई का काम संभाल लिया ताकि परिवार का पालन-पोषण हो सके.उनकी मां आज भी दिहाड़ी पर काम करती हैं.इस संघर्षपूर्ण पारिवारिक पृष्ठभूमि से निकलकर आईआईटी तक का सफर तय करना एक असाधारण उपलब्धि है.
राजेश्वरी कहती हैं,“मेरे भाई-बहन भी पढ़ाई में अच्छे थे, लेकिन उन्हें जेईई जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के बारे में जानकारी नहीं थी.मेरे शिक्षकों ने मेरा साथ दिया और मुझे दिशा दिखाई.”
राजेश्वरी बनेगी नई पीढ़ी की प्रेरणा
ADTW विभाग के अधिकारी विजयन बताते हैं कि सरकार के प्रयास — जैसे मुफ्त आवेदन, माता-पिता की काउंसलिंग, निःशुल्क कोचिंग और रहन-सहन की व्यवस्था — ने राजेश्वरी को इस मुकाम तक पहुंचने में मदद की.राजेश्वरी ने आत्मविश्वास से कहा:“मेरी यह उपलब्धि आने वाले समय में कई आदिवासी छात्रों को बड़े सपने देखने और उन्हें हासिल करने की प्रेरणा देगी.”
एक सपना, एक संघर्ष, एक इतिहास
राजेश्वरी की कहानी केवल एक छात्रा की सफलता की नहीं, बल्कि यह एक पिता के सपने, एक माँ की मेहनत, एक भाई के त्याग और पूरे समाज के सामूहिक प्रयास की गाथा है.यह कहानी बताती है कि अगर अवसर मिले, तो पहाड़ों के पीछे से भी सूरज उग सकता है.