हरजिंदर
उत्तराखंड की गिनती हमेशा से देश के उन प्रदेशों में होती रही है तो तमाम तरह की समस्याओं से जूझते हुए भी शांत रहते हैं. अभी कुछ ही समय पहले तक इस प्रदेश में सांप्रदायिक तनाव की बात सोची भी नहीं जा सकती थी, लेकिन बाकी देश में इन दिनों जिस तरह का माहौल है उस आंधी से कोई शांत प्रदेश भी अपने आप को कब तक बचाए रख सकता है.
हालांकि इससे भी बड़ी समस्या यह है कि इस प्रदेश के उत्तरकाशी जिले से जिस तरह की खबरें आ रही हैं और फिर देश बौद्धिक वर्ग जिस तरह से उन्हें या तो नजरंदाज कर रहा है यहा फिर आग में घी डालने का काम कर रहा है. यह सब ज्यादा चिंताजनक है.
बात जिले एक छोटे से कस्बे पुरोला में हुए एक अपहरण से शुरू हुई जिसे बहुत जल्द ही सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. रातो-रात देवभूमि रक्षा अभियान नाम का एक संगठन बना और उसने 15 जून तक मुसलमानों को जिले से चले जाने की चेतावनी भी दे दी.
मकान मालिकों को चेतावनी दी गई कि अगर उनका किराएदार मुसलमान हैं तो उसे घर खाली करवा लें. किसी मुसलमान को किराए पर घर न दिया जाए.इतना ही नहीं जिले से मुसलमानों का पलायन भी शुरू हो गया. खबरों में यह बताया गया है कि यह पलायन शुरू में धीमा था,
लेकिन जब भाजपा के जिला अल्पसंख्यक मोर्चा के अध्यक्ष ही अपने पूरे परिवार के साथ वहां से चले गए तो समुदाय के बाकी लोगों ने भी वहां से जाने में खैर समझी. यहा कहा जाने लगा कि जब भाजपा के लोग ही सुरक्षित नहीं ,तो बाकी का क्या होगा ?
राज्य सरकार ने कड़ी कार्रवाई की बात की है. मुमकिन है कि कुछ कार्रवाई हो भी. यह भी हो सकता है कि जो लोग पलायन करके चले गए हैं, उनमें से बहुत से लोग माहौल बदलने पर लौट भी आएं. हो सकता है कि फिर से पहले जैसी सद्भावना भी बन जाए, लेकिन क्या ऐसे इंतजाम नहीं हो सकते हैं कि ये नौबत ही न आए.
उत्तरकाशी सिर्फ एक उदाहरण है. ऐसे छोटे-मोटे विस्फोट इन दिनों देश भर में जगह-जगह हो रहे हैं. कहीं भी इन्हें रोकने की कोशिश होती नहीं दिखाई देती.दुनिया के जितने भी आधुनिक शहर और कस्बे हैं, उन सबमें एक व्यवस्था जरूर होती है कि अगर कहीं भी आग लगे तो उसे बुझाने के लिए फायर बिग्रेड के दमकल दस्ते हमेशा तैयार रहें.
अब ऐसी ही व्यवस्था की जरूरत हमारे समाज को हर जगह है.इन दिनों हर दूसरी जगह पर आग लग रही है या उसका माहौल बनाया जा रहा है.हालांकि हमारे पास इसका एक बहुत अच्छा उदाहरण भी है.
याद कीजिए जब नोआखली में दंगे हो रहे थे तो महात्मा गांधी सब कुछ छोड़ कर वहां जाकर जम गए थे. यह ऐलान कर दिया था कि जब तक दंगे खत्म नहीं होंगे वे यहां से नहीं जाएंगे. दंगे खत्म हों इसके लिए उनके साथ गए कार्यकर्ताओं ने जमीनी स्तर पर काफी काम भी किया. आखिर में दंगे खत्म भी हुए.
देश को इस समय इसी तरह की भूमिका निभाने वालों की जरूरत है.इस समय जो समस्या है वह भले ही उस तरह से बड़ी न हो लेकिन उसका दायरा लगातार बड़ा होता जा रहा है. अब जो हालात हैं उनमें कईं महात्मा गांधी की जरूरत पड़ सकती है. एक महात्मा गांधी से हमारा काम चलने वाला नहीं है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )