अंधेरे के पार उजाले की तलाश

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 18-10-2025
Seeking light beyond the darkness
Seeking light beyond the darkness

 

अनिता

बीकानेर के लूंकरणसर ब्लॉक के गाँवों में शाम होते ही सन्नाटा उतर आता है. सिर्फ इसलिए नहीं कि दिन ढल रहा है, बल्कि इसलिए भी कि बिजली कब जाएगी. इसका कोई भरोसा नहीं होता. अचानक बुझ जाने वाले बल्ब और बंद होते पंखे इस इलाके के लोगों के रोजमर्रा का हिस्सा बन चुके हैं. यहाँ अंधेरा सिर्फ रात का नहीं है, यह जीवन की हर दिशा में फैला हुआ है. बच्चों की पढ़ाई, महिलाओं का काम, किसानों की मेहनत, यहाँ तक कि लोगों की सेहत तक इस कटौती का असर दिखता है. लूणकरणसर के ग्रामीणों के लिए बिजली एक अधिकार नहीं, बल्कि एक इंतज़ार बन गई है. एक ऐसी रौशनी जिसका आना-जाना उनकी साँसों की लय तय करता है.

बिजली कटौती का असर सबसे गहराई से महिलाओं और किशोरियों पर पड़ता है. घर के भीतर का सारा बोझ उन्हीं के कंधों पर होता है. जब रात में बिजली चली जाती है, तो वे रसोई में अंधेरे में खाना बनाने, मिट्टी के तेल या मोबाइल की रोशनी में पानी भरने और बच्चों को सुलाने का संघर्ष करती हैं.

गर्मियों में जब लूणकरणसर की हवाएँ झुलसा देने वाली होती हैं, तब बंद पंखों और बुझी लाइटों के बीच बच्चों का रोना, बुजुर्गों की बेचैनी और घर की घुटन बढ़ जाती है. किशोरियाँ, जो दिन में स्कूल से लौटकर शाम को पढ़ाई करना चाहती हैं.

उन्हें टॉर्च या मोमबत्ती की हल्की लौ में आंखें चौंधियाते हुए किताबों पर झुकना पड़ता है. कई बार यह भी देखा गया है कि अंधेरे के कारण घर से बाहर निकलना उनके लिए असुरक्षित हो जाता है, जिससे उनकी आज़ादी और सीमित हो जाती है.

इस कटौती का सबसे बड़ा झटका किसानों को लगता है. खेतों में सिंचाई करने वाली मोटर अक्सर बिजली के अभाव में बंद रहती हैं. कई बार किसान रात के अंधेरे में तब तक खेतों में जागते हैं, जब तक बिजली न आ जाए.

कई किसानों ने बताया कि फसलें सूख जाती हैं क्योंकि तय समय पर पानी नहीं मिल पाता। खासकर गर्मियों और सूखे के मौसम में बिजली कटौती खेती की लागत और चिंता दोनों बढ़ा देती है. खेतों में सौर पंप और बैटरी सिस्टम कुछ राहत देते हैं, लेकिन हर किसान इनकी लागत नहीं उठा सकता.

लूणकरणसर के स्वास्थ्य केंद्रों में भी यह समस्या कम नहीं है। कई बार टीकाकरण या दवाओं को ठंडा रखने के लिए जरूरी फ्रिज या उपकरण काम नहीं कर पाते. रात में मरीजों के इलाज के दौरान अंधेरा फैल जाने पर नर्स और स्वास्थ्यकर्मी टॉर्च या मोबाइल की रोशनी का सहारा लेते हैं.

यह स्थिति उस मानवीय असमानता को उजागर करती है जिसमें बुनियादी सुविधा के अभाव से ग्रामीणों का स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन-गुणवत्ता प्रभावित होती है.राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली की स्थिति पर नज़र डालें तो, 2024 के एक अध्ययन बताया गया है कि राज्य के लगभग 30 प्रतिशत ग्रामीण घरों को प्रतिदिन 12 घंटे से कम बिजली मिलती है.

कई क्षेत्रों में शिकायत के बाद भी बिजली बहाल होने में छह घंटे से ज़्यादा समय लगता है. बिजली की गुणवत्ता भी चिंता का विषय है. इसमें वोल्टेज में बार-बार उतार-चढ़ाव के कारण उपकरण खराब हो जाते हैं.

हालांकि, राज्य सरकार के प्रयासों से राज्य के लगभग सभी गाँवों में बिजली का कनेक्शन पहुँच चुका है, लेकिन निरंतर आपूर्ति अभी भी चुनौती है। यह अंतर बिजली पहुँच और बिजली उपलब्धता के बीच की खाई को उजागर करता है.

बिजली कटौती का असर सिर्फ कामकाज या उपकरणों पर नहीं, बल्कि लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है. किशोरियाँ बार-बार कहती हैं कि अंधेरे में पढ़ाई करना आंखों और मन दोनों को थका देता है.

कई बार वे अपनी पढ़ाई छोड़कर घरेलू कामों में लग जाती हैं. महिलाएं कहती हैं कि अंधेरे में घर संभालना, बच्चों को पढ़ाना और सुरक्षा की चिंता करना, यह सब उन्हें दोहरी थकान देता है। लूंकरणसर के कई गाँवों में महिलाएँ बताती हैं कि जब बिजली नहीं रहती, तो वे बाहर जाकर पानी भरने या शौच के लिए जाने से डरती हैं। इस अंधेरे में डर सिर्फ सांप-बिच्छू का नहीं होता, बल्कि असुरक्षा का भी होता है.

फिर भी, इन अंधेरों के बीच लोग उम्मीद का दिया जलाए रखते हैं। कई परिवार अब सोलर लैंप और इन्वर्टर का इस्तेमाल करने लगे हैं. कुछ गाँवों में सामुदायिक प्रयासों से स्कूलों और आंगनबाड़ियों में सौर पैनल लगाए गए हैं. यह छोटे-छोटे कदम हैं, लेकिन ये दिखाते हैं कि लोग सिर्फ समस्या से जूझ नहीं रहे बल्कि समाधान की दिशा में बढ़ रहे हैं. राज्य में चल रही PM-KUSUM और अन्य सौर ऊर्जा योजना ग्रामीण किसानों के लिए नई राह खोल रही हैं, जिनसे खेती और घर दोनों में स्थायी ऊर्जा उपलब्ध हो सके.

लूणकरणसर के लोग जानते हैं कि हर रात के बाद सुबह आती है और शायद एक दिन यह सुबह बिना कटौती के, स्थायी रोशनी लेकर आएगी. लेकिन तब तक, वे अपने भीतर के उजाले को बुझने नहीं देते.

किशोरियाँ टॉर्च की हल्की रोशनी में अपने भविष्य को गढ़ती हैं, महिलाएं मिट्टी के तेल के दीये में उम्मीद जलाए रखती हैं, और किसान खेतों में बिजली का इंतज़ार करते हुए भी धरती से मोह नहीं छोड़ते. यह जंग सिर्फ बिजली के तारों की नहीं, बल्कि इंसानी धैर्य और हिम्मत की भी है जहाँ हर अंधेरा किसी नई रोशनी की चाह लेकर आता है.

(यह लेखिका के निजी विचार हैं)