अनीता
अनीता “धनतेरस” संस्कृत शब्द “धन” और “तेरस (त्रयोदशी)” से मिलकर बना है. इसका अर्थ है - त्रयोदशी तिथि को धन-संबंधी पूजा. इसे “धनत्रयोदशी” भी कहा जाता है, क्योंकि यह कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है. धनतेरस दिवाली पर्व की शुरुआत का प्रतीक माना जाता है. इस दिन से दिवाली की आरंभिक तैयारियाँ शुरू होती हैं. इस दिन भगवान धन्वंतरि (चिकित्सा के देवता), माता लक्ष्मी (धन-समृद्धि की देवी) और भगवान कुबेर (धन के स्वामी) की पूजा होती है. इसे “राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस” के रूप में भी मनाने का प्रस्ताव है, क्योंकि धन्वंतरि को आयुर्वेद के जनक माना जाता है. धनतेरस के समारोह के पीछे कई धार्मिक, पौराणिक एवं सांस्कृतिक कारण हैं.
पुराणों के अनुसार, जब देव और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब अमृत कलश सहित भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए. उन्होंने अमृत कलश लेकर प्रकट होकर संसार को स्वास्थ्य, जीवन और चिकित्सा का वरदान दिया. इस महत्वपूर्ण घटना ने पवित्रता प्राप्त की और इसी दिन को धनतेरस के रूप में पूजा जाने लगा. धन्वंतरि को विष्णु के अवतार का अंश माना जाता है, और उन्हें आयुर्वेद का जनक कहा जाता है. इस घटना को पूज्य बनाने के लिए इस तिथि को विशेष महत्व दिया गया. धन्वंतरि को चिकित्सा और स्वास्थ्य का देवता माना जाता है. इस कारण इस पर्व को स्वास्थ्य, आरोग्य और उन्नति का प्रतीक भी माना जाता है. चूंकि धनतेरस नाम से धन का संबंध है, लोग इस दिन सोना, चांदी, धातु के बर्तन आदि खरीदते हैं. यह माना जाता है कि इस तरह की खरीदारी से घर में धन-समृद्धि बनी रहती है. इसके अलावा घर की सफाई, दीपावली की तैयारियाँ आदि करके यह संकेत दिया जाता है कि पुनीत वातावरण में देवी लक्ष्मी का स्वागत हो.
वामन अवतार एवं बलि की कथा
धनतेरस से जुड़ी एक अन्य कथा वामन अवतार से जुड़ी है. कहा जाता है कि कार्तिक कृष्ण त्रयोदशी के दिन भगवान विष्णु ने वामन रूप धारण किया और महाराज बलि से तीन पग भूमि मांगी. बलि ने दान दिया. इस घटना में असुरों से छीन ली गई संपत्ति देवताओं को वापस मिल गई. इस घटना को स्मरण करते हुए धनतेरस का पर्व मनाया जाता है. हालांकि यह कथा पुराणों में नहीं मिलती है, लेकिन लोक मान्यता में इसे जोड़ा गया है.
जैन धर्म में धन्य तेरस
जैन धर्म में इस दिन को “धन्य तेरस” या “ध्यान तेरस” कहा जाता है. कहा जाता है कि इसी दिन भगवान महावीर ने तीसरे और चौथे ध्यान में प्रवेश किया. इसके चलते इस दिन को धर्म एवं तप का दिवस माना जाता है.
संरक्षण और सुरक्षा की कामना
इस दिन पूजा-उपासना एवं विधि-विधान करना यह भी दर्शाता है कि व्यक्ति अपने परिवार, स्वास्थ्य एवं सदा सुरक्षा की वरदायिनी शक्तियों से आशीर्वाद चाहता है. अतः, धनतेरस केवल भौतिक समृद्धि से नहीं, वरन् आंतरिक शांति, स्वास्थ्य, सुरक्षा आदि आयामों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है.
पूजा मुहूर्त
धनतेरस का पर्व हर वर्ष उस तिथि पर निर्भर करता है जब कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी आती है. इस वर्ष धनतेरस का पर्व ’’18 अक्टूबर 2025, शनिवार’’ को मनाया जाएगा. त्रयोदशी तिथि 18 अक्टूबर को दोपहर 12.18 बजे प्रारंभ होगी और 19 अक्टूबर को दोपहर 1.51 बजे समाप्त होगी.
धनतेरस के दिन पूजन के लिए शुभ मुहूर्त प्रदोष काल यानी 07 बजकर 16 मिनट से लेकर 08 बजकर 20 मिनट तक है. पूजा की शुरुआत प्रदोष काल में की जाती है. वृषभ काल में पूजा करना विशेष हितकर माना जाता है. सोना-चांदी आदि खरीदने का शुभ समय “अमृत काल” आदि विशिष्ट मुहूर्तों में माना जाता है. शहर विशेष में समय कुछ मिनटों का बदलाव हो सकता है. इसलिए स्थानीय पंचांग अवश्य देखें.
शहर अनुसार मुहूर्त:
नई दिल्ली - शाम 7.16 से 8.20 बजे तक
गुड़गांव - शाम 7.17 से 8.20 बजे तक
जयपुर - शाम 7.24 से 8.26 बजे तक
कोलकाता - शाम 6.41 से 7.38 बजे तक
पुणे - शाम 7.46 से 8.38 बजे तक
चेन्नई - शाम 7.28 से 8.15 बजे तक
नोएडा - शाम 7.15 से 8.19 बजे तक
अहमदाबाद - शाम 7.44 से 8.41 बजे तक
बेंगलुरु - शाम 7.39 से 8.25 बजे तक
मुंबई - शाम 7.49 से 8.41 बजे तक
चंडीगढ़ - शाम 7.14 से 8.20 बजे तक
हैदराबाद - शाम 7.29 से 8.20 बजे तक
लखनऊ - शाम 07.05 बजे से रात 08.08 बजे तक.
पूजन सामग्री
- साफ कपड़ा (लाल या पीला)
- चौकी (छोटी मेजध्पाट)
- कलश (ताम्बा, मिट्टी या अन्य धातु)
- गंगाजल ध् स्वच्छ जल
- आम के पत्ते
- नारियल
- दीपक एवं घी/सरसों तेल
- अगरबत्ती
- पुष्प (कमल, जूही, गुलाब आदि)
- अक्षत (चावल)
- हल्दी,ानउानउ, रोली
- विधि अनुसार प्रसाद (मिष्ठान, फल, नैवेद्य)
- लोहा / तांबा / पीतल आदि धातु की वस्तुएँ (यदि नए बर्तन या आभूषण लाएँ)
- लक्ष्मी, धन्वंतरि, कुबेर और गणेश की मूर्ति या चित्र
- कपड़ा या लाल वस्त्र (पूजा के लिए)
- शंख, घंटी आदि पूजा उपकरण
पूजा-विधि
- पूजा से पहले घर और पूजा स्थल को अच्छी तरह से साफ करें. मुख्य द्वार पर सजावट, रंगोली आदि करें. दीपक लगाएँ ताकि सकारात्मक ऊर्जा बने. उत्तर-पूर्व (ईशान) या घर के शिविर योग्य कोने में पूजा चौकी रखें. लाल या पीले रंग का साफ कपड़ा बिछाएँ.
- कलश में गंगा जल / स्वच्छ जल भरें. उसमें आम के पत्ते डालें और ऊपर नारियल रखें. यह शुभता और समृद्धि का प्रतीक बनता है. लक्ष्मी, धन्वंतरि, कुबेर और गणेश जी की मूर्तियाँ या चित्र स्थापित करें. अगर नए बर्तन या आभूषण हों तो उन्हें भी पूजा स्थल की ओर रखें.
- प्रदोष काल में दीपक जलाई जाए. यमदेव के नाम पर दक्षिण दिशा में दीया जलाएँ (यह यम दीप कहलाता है). कुल 13 दीप जलाने की परंपरा है.
- सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें. फिर धन्वंतरि, लक्ष्मी, कुबेर की पूजा करें. मंत्र जाप जैसे “ॐ श्रीं महालक्ष्म्यै नमः” आदि किया जाता है. आप चाहें तो अन्य मंत्रों का भी जाप कर सकते हैं. फल, मिठाई, रोली, अक्षत आदि अर्पित करें. पूजा के अंत में आरती करें. शंखनाद, घंटी बजाएँ. सामूहिक आरती करें. प्रसाद को अंत में सभी को बाँटें.
- पूजा की शुरुआत ’’प्रदोष काल’’ में करनी चाहिए. ’’वृषभ काल’’ में पूजा करना विशेष शुभ माना जाता है. यदि मुहूर्त नहीं हो पा रहा हो, तो व्यस्त समय से बचें. ’’कर्ज या उधार’’ देने से बचें. ऐसा कहा जाता है कि उस दिन दी गई वस्तु शुभता छोड़ देती है. दिन बेहतर वस्तुएँ खरीदने का होता है (सोना, चांदी, धातु बर्तन आदि).’’तेल, काले कपड़े, कांच आदि’’ वस्तुएँ इस दिन न खरीदी जाएँ. इनसे अशुभता हो सकती है. पूजा स्थल में सकारात्मक भाव और श्रद्धा होनी चाहिए.
- इस दिन की गई पूजा, दान और पूजा-विधि से स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और सुरक्षा की प्राप्ति होती है. यदि किसी रोगी हैं, तो धन्वंतरि की विशेष पूजा से स्वास्थ्य लाभ की कल्पना की जाती है. जो वस्तुएँ खरीदी जाती हैं, उन्हें पूजा में शामिल करने से उनका मूल्य और शुभता बढ़ती है. यमदीपदान से मृत्यु से सुरक्षा की कामना होती है. परिवार में सौहार्द और सकारात्मक ऊर्जा बनी रहती है
धनतेरस का सांस्कृतिक महत्व
प्राचीन समय से ही भारत में त्रयोदशी तिथि को विशेष महत्व रहा है. कार्तिक मास को पवित्र माना जाता था और उस मास की तिथियों पर विविध अनुष्ठान होते थे. मध्यकालीन धार्मिक ग्रंथों एवं धर्मशास्त्रों में धनतेरस के महत्व का वर्णन मिलता है. विभिन्न राजवंशों ने इसे स्थानीय रीति-रिवाजों के अनुसार मनाया.
आज धनतेरस सिर्फ धार्मिक पर्व ही नहीं रहा, बल्कि आर्थिक एवं सामाजिक पर्व बन गया है. लोग इस दिन शुभ वस्तुएँ खरीदते हैं, दुकानों पर विशेष ऑफर होते हैं, दीपावली की शुरुआत होती है. साथ ही, स्वास्थ्य और फार्मास्यूटिकल क्षेत्र में भी धन्वंतरि की महिमा को ध्यान में रखते हुए आयुर्वेद से संबंधित कार्यक्रम आयोजित होते हैं. भारत के अधिकांश हिस्सों में, चाहे वह उत्तर भारत हो, दक्षिण भारत, पश्चिमी भारत या पूर्वी भारत, हर जगह धनतेरस मनाया जाता है. कुछ राज्यों में विशेष रीति-रिवाज जोड़े गए हैं.
आधुनिक जीवनशैली, व्यापार और बाजारों की भागीदारी के कारण धनतेरस का स्वरूप भी बदल गया है; यह धार्मिक अनुष्ठान के साथ-साथ खरीदारी पर्व भी बन गया है. इस प्रकार, धनतेरस की कथा, इतिहास और महत्व समय के साथ विकसित हुए हैं, लेकिन मूल भाव आज भी समृद्धि, स्वास्थ्य, सुरक्षा एवं देवी-देवताओं का आशीर्वाद है.
धनतेरस का स्वरूप समय के साथ बदलता गया है. आधुनिक युग में यह न केवल धार्मिक पर्व है, बल्कि आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक घटना भी बन गया है.
आजकल धनतेरस को उपहार, सोना-चांदी खरीदने, इलेक्ट्रॉनिक सामान आदि खरीदने का पर्व माना जाता है. दुकानदार विशेष ऑफर्स देते हैं, बाजारों में रौनक होती है. पूजन समारोह बड़े स्तर पर मंदिरों और समुदायों में आयोजित होते हैं. धार्मिक कार्यक्रम, प्रवचन, स्वास्थ्य शिविर आदि होते हैं. कुछ स्थानों में विशेष पूजा, विशेष लोकगीत, संध्याकालीन झांकियाँ आदि होती हैं.
धनतेरस सिर्फ एक त्योहार नहीं, बल्कि ’’समृद्धि, स्वास्थ्य, सुरक्षा और आशीर्वाद की कामना’’ का दिन है. धन केवल बाहरी समृद्धि नहीं है कृ स्वास्थ्य और जीवन की रक्षा भी महत्वपूर्ण है. श्रद्धा, संयम, धार्मिक आचरण और सकारात्मक भाव ही पूजा को सार्थक बनाते हैं. आज के आधुनिक जीवन में भी हमें अपनी परंपराओं से जोड़ना चाहिए, लेकिन उन्हीं रूपों में, जो समय के अनुरूप हों. यह पर्व हमें यह सिखाता है कि ’’धन’’ और ’’स्वास्थ्य’’ दोनों की रक्षा करना चाहिए.