मलिक असगर हाशमी/ नई दिल्ली
अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (AMU) के संस्थापक सर सैयद अहमद खान के संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए एक अनोखा अभियान शुरू किया गया है. उनके अंतिम संदेश को देशवासियों तक पहुँचाने के लिए एएमयू प्रबंधन ने सोशल मीडिया और विश्वविद्यालय के छात्रों को माध्यम बनाया है. दरअसल, यह वह संदेश है जिसके माध्यम से यूनिवर्सिटी उन आरोपों का खंडन और उनकी छवि को स्पष्ट करने की कोशिश कर रही है जिनके आधार पर सर सैयद की आलोचना की जाती रही है.
सर सैयद अहमद खान के विरोधी आज तक उनके खिलाफ यह कहकर अभियान चलाते हैं कि वह द्विराष्ट्र सिद्धांत के समर्थक थे. वहीं, एक अन्य गुट उन पर पिछड़े तबके के मुसलमानों के विरोधी होने का आरोप लगाता है. आलोचकों का मानना है कि आज भी उनके नक्शेकदम पर चलते हुए केवल पैसे वाले मुसलमानों के बच्चों को एएमयू में तरजीह दी जाती है.
उनके विरोधी कुछ तथाकथित तथ्यों का हवाला देते हुए यहाँ तक आरोप लगाते हैं कि सर सैयद अहमद खान अंग्रेजों के हिमायती थे, इसीलिए ब्रिटिश हुक्मरानों ने उन्हें 'सर' का खिताब दिया था.
एएमयू जिसे सर सैयद का अंतिम संदेश बता रहा है, उसमें इन आरोपों का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, पर संदेश के भाव में उन आरोपों का अप्रत्यक्ष खंडन स्पष्ट रूप से झलकता है.
सर सैयद अहमद खान ने एएमयू के छात्रों को संबोधित करते हुए अपने संदेश में कहा था: ‘‘हे मेरे प्यारे बच्चों, तुम एक खास मुकाम पर पहुँच गए हो, और एक बात याद रखना। जब मैंने यह काम शुरू किया था, तो चारों तरफ मेरी आलोचना हो रही थी. मुझे गालियाँ दी जा रही थीं, और ज़िंदगी मेरे लिए इतनी मुश्किल हो गई थी कि मैं अपनी उम्र से पहले ही बूढ़ा हो गया. मेरे बाल चले गए, मेरी आँखों की रोशनी चली गई, लेकिन मेरी दृष्टि नहीं। मेरी दृष्टि कभी कम नहीं हुई. मेरा दृढ़ संकल्प कभी कम नहीं हुआ. मैंने यह संस्थान तुम्हारे लिए बनाया है, और मुझे यकीन है कि तुम इस संस्थान का प्रकाश दूर-दूर तक तब तक फैलाओगे जब तक चारों तरफ से अंधेरा गायब नहीं हो जाता.’’
इस अंतिम संदेश को जन-जन तक पहुँचाने के लिए सर सैयद अहमद खान की तस्वीरों के साथ एक पोस्ट बनाया गया है. यह उनकी 17 अक्टूबर की जयंती की याद दिलाते हुए इस अंतिम संदेश को पोस्टर की शक्ल में जारी किया गया है.
इस पोस्टर को एएमयू ने अपने आधिकारिक सोशल मीडिया हैंडल पर जारी किया है. साथ ही यूनिवर्सिटी के तमाम छात्रों से अपील की गई है कि वे इसे अपने सोशल मीडिया स्टेटस पर लगाएँ ताकि देश-दुनिया के लोग भी इसे देख सकें.
एएमयू प्रबंधन ने छात्रों से कहा है: "कृपया सर सैयद के अंतिम संदेश को अपने सोशल मीडिया स्टेटस के रूप में इस्तेमाल करें. सर सैयद के अंतिम संदेश को याद करते हुए - 'अपने राष्ट्र के लिए कुछ करो.' अब उस व्यक्ति को कुछ वापस देने का समय आ गया है जिसने हमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय दिया. 17 अक्टूबर को सर सैयद अहमद खान की 208वीं जयंती मनाते हुए, आइए हर अलीगढ़वासी सर सैयद के सपने - ज्ञान, सुधार और एकता के माध्यम से नेतृत्व - के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराएँ. आइए, उनके दृष्टिकोण का सम्मान करें और अलीगढ़ की सच्ची भावना के साथ उनकी विरासत को कायम रखें."
हालांकि, यह देखना दिलचस्प होगा कि इस संदेश का उनके विरोधियों पर क्या प्रभाव पड़ता है जिन्होंने उनकी मुखालफत में कई किताबें लिख दी हैं. वहीं, आवाज द वॉयस के एक इंटरव्यू में सर सैयद पर उल्लेखनीय किताब लिखने वाले प्रो. शफी किदवई ने कहा कि अब यह लगभग प्रमाणित हो चुका है कि सर सैयद के भाषणों का गलत अनुवाद किए जाने की वजह से उनके देश के बँटवारे के नजरिए को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया.
ALSO READ सर सैयद और दो राष्ट्र सिद्धांत: एक ऐतिहासिक और भाषाई विश्लेषण