हरजिंदर
बाढ़ एक प्राकृतिक आपदा है और ऐसी आपदाएं सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं पशु-पक्षियों, बड़े-बड़े दरख्तों और लहलहाती फसलों के लिए आफत बन जाती हैं. बाढ़ किसी का मजहब नहीं देखती, औरत-मर्द नहीं देखती, अमीर गरीब का फर्क नहीं देखती. यह भी नहीं देखती कि कहां कौन सी किस पार्टी की सरकार है. बाढ़ किसी में कोई भेदभाव नहीं करतीं, लेकिन हमारे समाज की दिक्कत यह है कि हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में यह भेदभाव करते हैं.
दुर्भाग्य से बाढ़ जैसी आपदा में भी हमारा यह नजरिया सबको परेशान करने आ खड़ा होता है.पिछले दिनों यमुना नदी में उफान के कारण यमुना में बाढ़ आई तो दिल्ली का एक हिस्सा पानी में डूब गया. जिस समय प्रभावित लोगों तक राहत पहुंचाने पर ध्यान दिया जाना चाहिए था, उस समय दलगत राजनीति शुरू हो गई.
दिल्ली की सरकार और आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि यह सब हरियाणा की भाजपा सरकार की वजह से हो रहा है. एक तरह से यह कहा गया कि हरियाणा ने दिल्ली को डुबो दिया. जबकि एक दूसरा सच यह था कि जिस ताजेवाला बैराज के गेट खोलने से दिल्ली में बाढ़ आई, उसी पानी की वजह से हरियाणा का एक हिस्सा भी बाढ़ की चपेट में था.
दिल्ली में यमुना खतरे के निशान से नीचे जाने लगी तो इस राजनीति का पानी भी उतार पर चला गया, लेकिन इस बीच असम में जो हुआ वह कहीं ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण था.अगर हम दिल्ली के मुकाबले देखें तो असम की बाढ़ ज्यादा भयानक थी.
इस राज्य के 20 जिले बाढ़ की चपेट में थे .पांच लाख से ज्यादा लोग बाढ़ से प्रभावित थे. इतने लोगों को प्रभावित क्षेत्रों से निकालना और उनके लिए राहत का काम एक बड़ी चुनौती था. यह काम हुआ भी. भले ही कहीं कुछ कसर रह गई हो या कुछ लोगों या क्षेत्रों में यह संतोषजनक न रहा हो.
लेकिन इस बीच वहां जो नया विवाद शुरू हुआ वह ज्यादा परेशान करने वाला है. बाढ़ की वजह से विस्थापित हुए लोग एक जगह वन विभाग की जमीन पर जाकर रहने लगे. वन विभाग ने उनको वहां से हटाने की कोशिश की. इस कोशिश में जो तनाव हुआ उसमें फाॅरेस्ट गार्ड को गोली चलानी पड़ी. गोली लगने की वजह से रहीमा खातून नाम की एक महिला की जान चली गई, जबकि एक और व्यक्ति घायल हुआ.
इसके बाद बाढ़ राहत को पूरी तरह से सांप्रदायिक रंग दे दिया गया. कहा गया कि सरकार बाढ़ राहत में भी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार कर रही है. यह भी कहा गया कि बाढ़ राहत सामग्री सभी समुदायों तक ठीक से नहीं पहंुच रही है. इसे लेकर वह राजनीति शुरू हो गई जो शायद अल्पसंख्यकों और बहुसंख्यकों किसी के लिए भी अच्छी नहीं है. इससे दोनों ही तरफ के कुछ लोगों की राजनीति जरूरी चमक सकती है.
असम के मामले में यह ज्यादा चिंताजनक है. यह एक ऐसे राज्य की बात है जहां टमाटर महंगे होने तक को एक समुदाय विशेष से जोड़ दिया गया. जबकि टमाटर सिर्फ असम में ही नहीं पूरे देश में ही महंगे हुए थे और जिस समुदाय पर आरोप लगाया गया वह सिर्फ असम में ही रहता है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )