ऑपरेशन सिंदूर: भारतीय योजनाकारों की कुशलता की गवाही

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 15-05-2025
Operation Sindoor: Testimony to the skill of Indian planners
Operation Sindoor: Testimony to the skill of Indian planners

 

 

 

jkजे.के. त्रिपाठी

22 अप्रैल को पूरी दुनिया ने भय और स्तब्धता के साथ देखा कि पाकिस्तान द्वारा प्रशिक्षित और प्रायोजित चार आतंकवादियों ने 26 निर्दोष भारतीय पर्यटकों की नृशंस हत्या कर दी. इस जघन्य अपराध की जिम्मेदारी “द रेजिस्टेंस फोर्स (TRF)” ने ली, जो कि एक प्रसिद्ध आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) की शाखा है. यह संगठन अब भी पाकिस्तान से संचालित होता है, भले ही इसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित घोषित किया गया हो.

भारत की जनता, चाहे वह किसी भी धर्म या पंथ की हो, इस कायराना और अमानवीय कृत्य के खिलाफ एकजुट हो गई और सरकार से कठोर कार्रवाई की मांग की.

भारत सरकार ने न केवल अपराधियों को सजा देने का संकल्प लिया, बल्कि यह भी तय किया कि उनके आकाओं को, चाहे वे दुनिया के किसी भी कोने में हों, ढूंढकर समाप्त किया जाएगा. इस जवाबी कार्रवाई को “ऑपरेशन सिंदूर” नाम दिया गया — उन हिंदू महिलाओं के सिंदूर के प्रतीक के रूप में, जिनके पति इस हमले में मारे गए.

तत्काल कदमों के रूप में भारत सरकार ने:

  • 1960 की सिंधु जल संधि को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित कर दिया,

  • पाकिस्तानी नागरिकों को सभी प्रकार के वीजा देना बंद कर दिया,

  • भारत में पाकिस्तान के राजनयिक मिशन को और कम करने को कहा,

  • पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों को “अवांछित व्यक्ति (persona non grata)” घोषित किया.

सरकार के दृढ़ संकल्प के अनुसार, भारतीय सशस्त्र बलों ने एकीकृत, समन्वित और त्वरित कार्रवाई के तहत पाकिस्तान में स्थित नौ आतंकी प्रशिक्षण शिविरों पर हमला कर उन्हें पूरी तरह नष्ट कर दिया.

इस कार्रवाई में न तो किसी नागरिक प्रतिष्ठान को निशाना बनाया गया और न ही किसी सैन्य संस्थान को. लेकिन बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के नागरिक और सैन्य ठिकानों पर हमला कर युद्ध को आगे बढ़ा दिया.

भारत की वायु रक्षा प्रणाली, जिसमें S-400 और स्वदेशी विकसित ‘आकाश प्रणाली’ शामिल थी, ने इन पाकिस्तानी हमलों को नाकाम कर दिया।

अंततः पाकिस्तान की समझ में बात आ गई और उसने युद्धविराम के लिए अनुरोध किया, जिसे भारत ने “उदारता” के साथ स्वीकार कर लिया.

हालांकि अमेरिका के राष्ट्रपति इस युद्धविराम का श्रेय स्वयं ले रहे हैं, परंतु हम जानते हैं कि यह सब हमारे रक्षा बलों की दृढ़ता और हमारे योजनाकारों की दूरदृष्टि के कारण संभव हो पाया, जिन्होंने हालात का सूक्ष्म विश्लेषण कर, सभी विकल्पों का मूल्यांकन किया और सबसे प्रभावी, कम जोखिम वाला उपाय अपनाया.

इन रणनीतिक योजनाओं में मुख्य भूमिका निभाने वाले कौन थे?

तीनों सेनाओं के प्रमुखों और प्रमुख रक्षा अध्यक्ष (CDS) के अलावा रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल, और विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर वे प्रमुख चेहरे थे, जो प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई बैठकों में नियमित रूप से उपस्थित रहते थे और उन्हें सलाह देते थे.

विशेष रूप से, एनएसए अजित डोभाल ने इस पूरे घटनाक्रम में केंद्रीय भूमिका निभाई. पाकिस्तान के विशेषज्ञ के रूप में डोभाल को यह विशिष्ट पहचान प्राप्त है कि उन्होंने पाकिस्तान में गुप्त रूप से लंबे समय तक काम किया है, जिससे वे पाकिस्तान की कार्यशैली को गहराई से समझते हैं.

चाहे वह 2016 हो, 2019 या वर्तमान स्थिति — डोभाल हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे हैं — भारत की सुरक्षा नीति को आकार देने और उसे क्रियान्वित करने में.

डोभाल की रणनीतिक सोच ने भारत की प्रतिक्रिया को आकार देने और इस संवेदनशील कूटनीतिक संकट से उबारने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई. चाहे अमेरिका हो, पाकिस्तान, ईरान या चीन — डोभाल ने आवश्यकता पड़ने पर अपने समकक्षों से संपर्क साधा.

उन्होंने पहलगाम में निर्दोष लोगों की हत्या और बाद में पाकिस्तानी हमले के जवाब की प्रक्रिया, स्तर और विस्तार पर सरकार को सलाह दी.2025 के भारत-पाकिस्तान संघर्ष में डोभाल की रणनीति और नेतृत्व ने यह स्पष्ट कर दिया कि वे एक दूरदर्शी रणनीतिकार हैं, जो उत्तर में एक अहंकारी पड़ोसी, पश्चिम में लगातार चिढ़ाने वाले पाकिस्तान, दक्षिण में अस्थिर मालदीव और पूर्व में अब दुश्मन बने बांग्लादेश जैसी जटिल चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपट सकते हैं.

डॉ. एस. जयशंकर के साथ मिलकर, डोभाल ने सैन्य ताकत और कूटनीतिक चतुराई का ऐसा समन्वय प्रस्तुत किया, जो भारत की रणनीतिक प्रतिक्रिया को विश्व पटल पर प्रभावशाली रूप से प्रस्तुत करता है.

संघर्ष ने जहां भारत-पाक संबंधों की नाजुकता को उजागर किया, वहीं प्रभावी नेतृत्व और रणनीतिक योजना की महत्ता को भी रेखांकित किया.ऑपरेशन सिंदूर की योजना और निष्पादन में डोभाल की रणनीतिक दृष्टि प्रमुख रही.

इसका सटीक और सीमित दायरे में क्रियान्वयन यह दर्शाता है कि यह एक सोच-समझकर की गई कार्रवाई थी, जिसका उद्देश्य आतंकवादी खतरे को समाप्त करना था, न कि पूर्ण युद्ध छेड़ना.

इस संघर्ष के दौरान, डोभाल ने प्रधानमंत्री मोदी और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ निरंतर समन्वय बनाए रखा, ताकि निर्णय-निर्माण की प्रक्रिया में सभी पक्ष एक ही मंच पर रहें और एक स्वर में बात करें.

तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को भारत द्वारा सिरे से खारिज करना, डोभाल की कूटनीतिक क्षमता का प्रमाण है. इससे दुनिया को और विशेषकर पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश गया कि कश्मीर एक द्विपक्षीय मुद्दा है, जिस पर केवल भारत और पाकिस्तान ही चर्चा करेंगे. यह रुख तब भी नहीं बदला, जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप सहित कई देशों ने मध्यस्थता की पेशकश की.

 यह स्पष्ट हो गया है कि जब तक अजीत डोभाल और डॉ. एस. जयशंकर जैसे रणनीतिकार और कूटनीतिज्ञ प्रधानमंत्री के मार्गदर्शक बने रहेंगे, तब तक भारत को बाहरी खतरों से डरने की आवश्यकता नहीं है.

(लेखक भारत के कई देशों में राजदूत रहे हैं)