ऑपरेशन सिंदूर में उजागर हुआ एनएसए डोभाल का नया फॉर्मूला: डोजियर बाद में, दवा पहले

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 12-05-2025
Doval's new formula exposed in Operation Sindoor: Dossier later, medicine first
Doval's new formula exposed in Operation Sindoor: Dossier later, medicine first

 

 भारत ने जिस सटीकता के साथ पाकिस्तान स्थित आतंकवादी शिविरों को मिट्टी में मिलाया है, वह बताता है कि हमारे पास कितनी पुख्ता जानकारी थी

अरविंद

जासूसी की दुनिया पर एक बहुचर्चित पुस्तक है ‘गिडियन्स स्पाइजः दि सीक्रेट हिस्ट्री ऑफ दि मोसाद’. इसके लेखक हैं गॉर्डन थॉमस. गॉर्डन ने बीबीसी पर प्रसारित डॉक्यूमेंट्री ‘दि मोसादः इजरायल्स सीक्रेट वॉरियर्स’ में म्यूनिख ओलंपिक हमले के बाद के मिशन का उल्लेख करते हुए कहा है- “सूचना ही वह हथियार है जो युद्ध का फैसला करती है”.

यह कोई गूढ़ नहीं, एक आम समझ की बात है. लेकिन कोई आम बात खास व्यक्ति के मुंह से निकलकर ‘खास’ हो जाती है. तो इस सूत्र वाक्य को ध्यान में रखकर ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को देखें. बेशक, सीढ़ी-दर-सीढ़ी चढ़ते हुए ऑपरेशन की जद में सैन्य ठिकाने भी आ गए, लेकिन इस ऑपरेशन का मुख्य उद्देश्य क्या था?

पाकिस्तान के आतंकवादी शिविरों को नष्ट करना जिसमें हमें शत प्रतिशत सफलता मिली और यह संभव हो सका क्योंकि हमारे पास सटीक  सूचना थी. जाहिर सी बात है कि यह कमाल हमारे सुरक्षा सलाहकार और भारत के ‘जेम्स बॉण्ड’ अजित दोभाल का है जिन्होंने खास तौर पर आतंकवाद से निपटने के मामले में भारत की रीति-नीति को बिल्कुल पलट दिया है. 

भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम के बाद 11 मई को शाम प्रेस कांफ्रेंस की गई जिसमें थल सेना की ओर से डीजीएमओ लिफ्टिनेंट जनरल राजीव घई, वायु सेना की ओर से डीजीएओ (एयर ऑपरेशंस) एयर मार्शल ए.के. भारती और नौसेना की ओर से डीजीएनओ (नेवल ऑपरेशंस) वाइस एडमिरल ए.एन. प्रमोद के अलावा मेजर जनरल एस.एस. शारदा भी थे.

इसमें साफ बताया गया कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का निशाना पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे आतंकवादी शिविर थे और भारत ने 6-7 मई की रात को ऐसे नौ ठिकानों को सटीक हमले में नेस्तनाबूद कर दिया. 
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पक्की जानकारी से बनी बात

प्रेस कांफ्रेंस में बताया गया कि भारत के पास ऐसे काफी सारे आतंकवादी शिविरों की जानकारी थी और यह भी पता था कि पहलगाम हमले के बाद उनमें से कुछ को आतंकवादियों ने हमले की आशंका में खाली कर दिया था.

इसलिए केवल उन्हीं नौ को हमले के लिए चुना गया जहां आतंकवादियों के होने की संभावना सबसे ज्यादा थी. इससे दो बातें साफ होती हैं. एक, अजित डोभाल के नेतृत्व में भारत का खुफिया सूचना इकट्ठा करने का तंत्र, जिसमें इंसानी और तकनीकी दोनों तरह के संसाधन लगे हुए हैं.

इतना सशक्त है कि वह ठोस कार्रवाई के लिए पर्याप्त सूचना उपलब्ध कराने की स्थिति में है. और दो, यह तंत्र लगातार सक्रिय रहता है. अगर ऐसा नहीं होता तो पहलगाम हमले के चंद दिनों के भीतर ही इतनी सटीक और सफल कार्रवाई क्या संभव होती? 

‘ऑपरेशन सिंदूर’ के अंतर्गत जैश-ए-मोहम्मद के चार, लश्कर-ए-तैयबा के तीन और हिजबुल मुजाहिदीन के दो शिविरों को निशाना बनाया गया. इनमें बहावलपुर स्थित जैश का प्रमुख प्रशिक्षण केंद्र ‘मरकज सुभान अल्लाह’, मुरीदके स्थित लश्कर का प्रमुख केंद्र ‘मरकज तैयबा’ जहां मुंबई हमलों को अंजाम देने वाले अजमल कसाब और डेविड हेडली को ट्रेनिंग दी गई, तहरा कलां स्थित जैश का ‘सरजल’ शिविर जहां पुलवामा विस्फोट के आतंकियों को प्रशिक्षण मिला, सियालकोट स्थित हिजबुल का मेहमूना जोया शिविर जहां पठानकोट एयरबेस हमले की साजिश रची गई, फिदायीन हमलावर तैयार करने के लिए जाने जाने वाला जैश का ‘मरकज अब्बास’ शिविर, मुजफ्फराबाद स्थित लश्कर का शावई नाला कैंप जहां पहलगाम के हमलावरों को ट्रेनिंग मिली, शामिल हैं.

बहावलपुर का ‘सुभान अल्लाह’ कैंप खास तौर पर इस बात का उदाहरण है कि भारत के पास कितनी सटीक जानकारी थी। इस कैंप पर हुए हमले में मौलाना मसूद अजहर के परिवार के 10 लोग मारे गए.
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लश्कर के जनाज़े में पाकिस्तान सरकार की हाजिरी—भारत ने दिखाए सबूत

बड़े आतंकी मारे गए

भारत की इस कार्रवाई में लगभग सौ आतंकवादी मारे गए जिनमें अजमल कसाब और डेविड हेडली को ट्रेनिंग देने वाला लश्कर का अबू जुंदाल उर्फ मुदस्सर; आईसी-814 विमान अपहरण का मास्टरमाइंड जैश का यूसुफ अजहर;  जैश के बहावलपुर शिविर का प्रमुख और मसूद अजहर का साला हाफिज मोहम्मद जमील; जम्मू-कश्मीर में हमलों और अफगानिस्तान से हथियारों की तस्करी में शामिल लश्कर का खालिद उर्फ अबू आकाश; पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में जैश का ऑपरेशन कमांडर मोहम्मद हसन खान और कई हमलों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला लश्कर का अब्दुल मलिक रऊफ भी था. 

इस बात की पूरी-पूरी संभावना है कि इस हमले में और भी बड़े आतंकवादी मारे गए हैं. हो सकता है कि इनमें से कई के नाम बाहर आने में सालों लग जाएं या ‘नुकसान’ की ठीक-ठीक जानकारी कभी मिल ही न सके, लेकिन आतंकवाद को हर तरह के हितों को पूरा करने का साधन मानने वाले पाकिस्तान की प्रतिक्रिया जैसी रही है, वह बताती है कि उसे ऐसी जगह पर मार पड़ी है कि बताना भी है मुश्किल और छिपाना भी है मुश्किल. 
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डोभाल की कार्यशैली

सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल की देखरेख में आतंकवाद से निपटने के मामले में भारत की नीति अब यह हो गई है कि डोजियर जब देंगे, तब देंगे, दवा की डोज तो हाथों-हाथ दे देंगे.

2016 में पाकिस्तानी आतंकवादियों द्वारा उरी के सैन्य कैंप पर हमले के बाद पाकिस्तान अधिक्रांत कश्मीर में घुसकर की गई सेना की सर्जिकल स्ट्राइक हो, 2019 में पुलवामा में सैन्य काफिले पर किए गए हमले के खिलाफ बालाकोट में जैश के प्रशिक्षण शिविर पर वायुसेना की एयर स्ट्राइक हो या फिर पहलगाम हमले के बाद अधिक्रांत कश्मीर से लेकर पाकिस्तान की जमीन पर चल रहे आतंकवादी शिविरों को तबाह करने का हालिया वाकया हो, भारत ने अपने ऐक्शन से यह साफ कर दिया है कि उसने ईंट का जवाब पत्थर से देने की नीति अपना ली है और हर आतंकी हमले के साथ  पाकिस्तान के लिए उसकी कीमत बढ़ती चला जाएगी. 

जब रोग के लक्षण पता हों तो इलाज करने में आसानी होती है. सालों तक अंडरकवर एजेंट के रूप में पाकिस्तान में काम करने वाले और कहुटा में चल रहे परमाणु कार्यक्रम का अपनी असाधरण सूझ-बूझ से पता लगाने वाले डोभाल ने अपने अनुभवों से जाना है कि पाकिस्तान में सत्ता प्रतिष्ठान और आतंकवाद के गठजोड़ का काम करने का तौर-तरीका क्या है. इसलिए उनकी देखरेख में आतंकवाद से निपटने का जो तरीका भारत ने निकाला है, वह खासा कामयाब रहा है.

कूटनीति, रणनीति और युद्धनीति की गहरी समझ रखने वाले डोभाल ने आतंकवादियों के आकाओं के लिए इसकी कीमत काफी बढ़ा दी है.1988 में ऑपरेशन ब्लैक थंडर के अंतर्गत खालिस्तानी आतंकवादियों के खिलाफ सफल अभियान का नेतृत्व करने वाले, 1999 में कांधार विमान अपहरण कांड में मुख्य वार्ताकार की भूमिका निभाने वाले , 2014 में इराक से 546 भारतीय नर्सों की सुरक्षित वापसी के ऑपरेशन को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले, 2015 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड के उग्रवादियों के खिलाफ म्यांमार में सफल ऑपरेशन चलाने वाले और 2017 में चीनी सेना द्वारा डोकलाम में घुसपैठ के बाद कूटनीतिक वाोर्ता की कमान अपने हाथ में लेकर चीन को पीछे हटने के लिए मजबूर करने वाले डोभाल के बारे में पब्लिक डोमेन में इस तरह की जितनी भी जानकारी हैं, उनसे कहीं अधिक रोमांचक बातें होंगी जो शायद कभी बाहर नहीं आएंगी.

इतना तय है कि पहलगाम के पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवादी हमले के बदले आतंक के अड्डों पर धावा बोलकर भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि इस्लामाबाद अपनी इस सोच को बदल ले कि आतंकवादी घटना को अंजाम देकर वह बच सकता है.

इसके पीछे अजित डोभाल की सैन्य, खुफिया, रणनीतिक स्तर पर एकीकृत ‘आक्रामक सुरक्षात्मक’ रणनीति एक अहम कारक है.शायद यह कभी पता न चल पाए कि तीन दिन चले ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के दौरान डोभाल हर रोज कितने घंटे सोए या सोए भी कि नहीं, लेकिन आतंकिस्तान को जरूर यह पता चल गया होगा कि अब किसी भी आतंकवादी घटना के बाद इससे जुड़े लोगों के हमेशा-हमेशा के लिए सो जाने की संभावनाएं बहुत बढ़ गई हैं.

( लेखक पाकिस्तान और बलूचिस्तान मामलों के एक्सपर्ट हैं.)

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