राम कुमार कौशिक
सैन्य क्षमताओं और रणनीतिक स्पष्टता का प्रदर्शन करते हुए भारत ने पाकिस्तान पर अभूतपूर्व हवाई दबदबा स्थापित कर दिया है, जिससे क्षेत्रीय सुरक्षा समीकरण ही बदल गया है. भारतीय वायुसेना (IAF) ने पाकिस्तान की वायुसेना (PAF) के कई ठिकानों और आतंकवादी ढांचों पर सटीक हमले किए, जिससे इस्लामाबाद की सैन्य व्यवस्था में हलचल मच गई और पाकिस्तान की तथाकथित "परमाणु ढाल" की नाजुकता उजागर हो गई.
सरकारी सूत्रों के अनुसार, IAF के ये हमले केवल प्रतिशोध नहीं थे, बल्कि एक सुव्यवस्थित योजना का हिस्सा थे, जिसका उद्देश्य वायु प्रभुत्व स्थापित करना और पाकिस्तान की रणनीतिक गहराई को खत्म करना था.
एक अधिकारी ने कहा, “IAF के हमलों ने पाकिस्तान के रणनीतिक तंत्र को बुरी तरह झकझोर दिया है. कई ठिकानों पर भारी नुकसान हुआ है. पाकिस्तान पूरी तरह से भारतीय वायुसेना की दया पर था.”
यह भारत की सैन्य सोच में एक बड़ा बदलाव है, जो यह संकेत देता है कि अब पाकिस्तान से होने वाला कोई भी आतंकवादी हमला सीधे युद्ध की कार्यवाही माना जाएगा.
नई दिल्ली से लेकर लाहौर तक, भारतीय हमलों ने 10 वायुसेना अड्डों को निष्क्रिय किया, जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तैयबा जैसे संगठनों के मुख्य अड्डों को तबाह किया और 100 से अधिक आतंकवादियों को खत्म कर दिया.
ये हमले सिर्फ नियंत्रण रेखा (LoC) या पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर (PoK) तक सीमित नहीं थे, बल्कि पाकिस्तान की मुख्य भूमि तक पहुंच गए.
इस अभियान का सबसे अहम पहलू यह रहा कि इसने पाकिस्तान के लंबे समय से चले आ रहे परमाणु प्रतिरोधक क्षमता के मिथक को तोड़ दिया. अंतरराष्ट्रीय समुदाय की इस उम्मीद के विपरीत कि परमाणु युद्ध की आशंका भारत को रोकेगी, भारत ने पूरी स्पष्टता और दृढ़ता से तनाव की सीढ़ी चढ़ी.
अमेरिका ने पाकिस्तान के लिए "ऑफ-रैम्प" यानी तनाव से निकलने का रास्ता तलाशा, लेकिन The New York Times के अनुसार, “मोदी ने पाकिस्तान को ऑफ-रैम्प नहीं दिया.” भारत अपने रुख पर अडिग रहा और पाकिस्तान को अपने कृत्यों की कीमत चुकाने के लिए मजबूर किया..
रणनीतिक विशेषज्ञों के अनुसार, IAF ने किरणा हिल्स पर हमला किया—एक ऐसा स्थल जिसे लंबे समय से पाकिस्तान के परमाणु भंडारण से जोड़ा जाता रहा है. यह स्थल सर्गोधा एयरबेस (F-16 का अड्डा) से मात्र 10 किमी दूर और खुशाब न्यूक्लियर प्लांट से 50 किमी के भीतर है. इस पर हमला यह दर्शाता है कि भारत उच्च-मूल्य वाले परमाणु ठिकानों को भी निशाना बना सकता है—अगर उकसाया गया..
भारत ने इस समय का उपयोग सिंधु जल पर नियंत्रण जताने के लिए भी किया है. एक रणनीतिक आर्थिक कदम के तहत भारत ने स्पष्ट संकेत दिए कि सिंधु जल संधि अब पाकिस्तान के व्यवहार पर निर्भर होगी.
लंबे समय से लंबित जल परियोजनाओं और बांध निर्माण को तेजी से आगे बढ़ाया जाएगा. एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, “पाकिस्तान कुछ नहीं कर सकता. वह पूरी तरह बेबस है.”
कूटनीतिक मोर्चे पर भी भारत ने किसी भी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता को ठुकरा दिया. एक सरकारी सूत्र ने स्पष्ट किया, “जब तक आतंक के खिलाफ भारत की लड़ाई जारी है, पाकिस्तान से किसी तीसरे देश में बातचीत नहीं होगी.” अमेरिका द्वारा मध्यस्थता की खबरों को भी भारत ने खारिज कर दिया और फिर दोहराया कि आतंकवाद और बातचीत साथ-साथ नहीं चल सकते.
विश्लेषकों का कहना है कि भारत का सैन्य अभियान पाकिस्तान के चीनी सैन्य उपकरणों की भी परीक्षा थी. एक रक्षा विशेषज्ञ के अनुसार, “हम केवल पाकिस्तान से नहीं लड़ रहे थे, बल्कि चीनी हथियार प्रणालियों से भी लड़ रहे थे. यह अनुभव चीन के साथ जारी तनाव में हमारे लिए बेहद अहम है.”
इन हमलों ने पाकिस्तान की वायु रक्षा प्रणाली और सैन्य तैयारियों की कमजोरियों को उजागर कर दिया. ड्रोन से बड़े शहरों में घुसपैठ, सटीक बमबारी और जवाबी ड्रोन व मिसाइलों को निष्क्रिय करना—ये सब पाकिस्तान की कमजोरी के प्रमाण हैं.
एक सेवानिवृत्त भारतीय सेना अधिकारी ने कहा, “अगर पाकिस्तान के घमंडी जनरल पंजाब तक की रक्षा नहीं कर सकते—जो उनकी सेना का भर्ती केंद्र है—तो उन्हें राष्ट्रीय जीवन में इतनी अहमियत क्यों दी जाए?”
भारत ने अब एक नया मानक स्थापित किया है. इन हमलों ने उपमहाद्वीप में रणनीतिक समीकरणों को फिर से परिभाषित कर दिया है. पाकिस्तान द्वारा लंबे समय से आतंकवादियों को रणनीतिक संपत्ति के रूप में इस्तेमाल करने की नीति का अब भारत ने सीधा और निर्णायक जवाब दिया है. अब कोई प्रोपेगैंडा, कूटनीतिक सुरक्षा या परमाणु झांकी पाकिस्तान को भारत की कार्रवाई से नहीं बचा सकता.
ऑपरेशन सिंदूर के ज़रिए भारत ने न केवल आतंकवाद का जवाब दिया, बल्कि क्षेत्रीय टकराव के नियम ही बदल डाले हैं—अब यह “सटीक प्रतिकार + राजनीतिक संकल्प = निर्णायक दबदबा” का नया सिद्धांत है.