अब्दुल्लाह मंसूर
जब सीमा पर युद्ध के बादल मंडरा रहे हों, तब भी भारत के आंगन में बुद्ध पूर्णिमा की शांति और करुणा की रोशनी फैलती है. यह विरोधाभास नहीं, बल्कि भारत की आत्मा का परिचायक है. मैं जब-जब भारत की महानता के बारे में सोचता हूं, तो मुझे गर्व होता है कि मैं उस देश का हिस्सा हूं, जिसने हमेशा नैतिकता, सहिष्णुता और करुणा को अपने जीवन का आधार बनाया है. भारत, जिसे विश्व की आध्यात्मिक राजधानी कहा जाता है, अपनी सांस्कृतिक और नैतिक विरासत के लिए जाना जाता है.
यहाँ की आत्मा में विविधता, सहिष्णुता और अहिंसा जैसे मूल्य बसे हैं. बुद्ध पूर्णिमा का यह अवसर हमें न केवल बुद्ध के संदेश को याद करने का मौका देता है, बल्कि भारत की उस आत्मा को भी उजागर करता है, जो युद्ध की परिस्थितियों में भी शांति और नैतिकता का मार्ग चुनती है.
किसी भी समाज का भविष्य उसके द्वारा चुने गए नायकों पर निर्भर करता है. भारत और पाकिस्तान, जो कभी एक ही संस्कृति का हिस्सा थे, आज अपने नायकों के चयन में स्पष्ट रूप से भिन्न हैं. पाकिस्तान में मोहम्मद बिन कासिम जैसे आक्रमणकारी को नायक के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिनका इतिहास युद्ध और हिंसा से भरा है.
दूसरी ओर, भारत ने गौतम बुद्ध, महात्मा गांधी, गुरु नानक जैसे व्यक्तित्वों को अपने आदर्श बनाया है. बुद्ध ने अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाया, गांधी ने सत्य और अहिंसा से स्वतंत्रता हासिल की, नानक ने मानवता की शिक्षा दी. ये नायक भारत की उस सोच को दर्शाते हैं, जो हिंसा के बजाय शांति, करुणा और नैतिकता को महत्व देती है. नायकों का यह चयन समाज की दिशा को आकार देता है और भारत की शांतिपूर्ण पहचान को मजबूत करता है.
भारत की महानता उसकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में छिपी है. यहाँ की विविधता विश्व में अनूठी है. विभिन्न धर्म, भाषाएं, परंपराएं और संस्कृतियाँ यहाँ एक साथ फलती-फूलती हैं. भारत ने सहिष्णुता को अपना आधार बनाया है, जहाँ हर धर्म और विचार को सम्मान दिया जाता है. 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना भारत की उस सोच को दर्शाती है, जो पूरे विश्व को एक परिवार मानती है. इसी तरह, 'अहिंसा परमो धर्मः' का सिद्धांत भारत के नैतिक दर्शन का मूल है. चाहे वह बौद्ध धर्म की करुणा हो, जैन धर्म की अहिंसा हो, सिख धर्म की सेवा हो या हिंदू धर्म की उदारता, भारत ने सभी को अपनाकर एक समावेशी संस्कृति बनाई है. यह विविधता और सहिष्णुता ही भारत को विश्व में एक विशेष स्थान दिलाती है और उसकी महानता का आधार है.
बुद्ध पूर्णिमा का पर्व गौतम बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं का उत्सव है. बुद्ध ने छठी शताब्दी ईसा पूर्व में उस समय जन्म लिया, जब समाज कर्मकांड, जातिवाद और अंधविश्वासों में जकड़ा हुआ था. उन्होंने इन बंधनों को तोड़ा और अहिंसा, करुणा और आत्मचिंतन पर आधारित एक नया मार्ग दिखाया.
उनके चार आर्य सत्य—दुख, दुख का कारण, दुख का निवारण और निवारण का मार्ग—जीवन की सच्चाइयों को समझने का रास्ता बताते हैं. अष्टांग मार्ग के माध्यम से बुद्ध ने सही दृष्टि, विचार, वाणी, कर्म, आजीविका, प्रयास, स्मृति और समाधि का महत्व बताया. बुद्ध की शिक्षाएं जीवन को गहराई से देखने की कोशिश हैं.
उन्होंने धर्म को किसी ईश्वर, आत्मा या चमत्कार से नहीं जोड़ा, बल्कि उसे एक व्यावहारिक और नैतिक जीवन जीने की प्रक्रिया माना.आज की दुनिया, जो हिंसा, असहिष्णुता और मानसिक तनाव से ग्रस्त है, के लिए बुद्ध का यह संदेश पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है. युद्ध और संघर्ष के बीच बुद्ध पूर्णिमा हमें सिखाती है कि शांति और करुणा ही सच्ची शक्ति है.
बुद्ध ने मध्यम मार्ग की वकालत की – यानी न तो अत्यधिक भोग और न ही कठोर तपस्या. यह मार्ग तटस्थता, संतुलन और आत्मबोध का मार्ग था.अग्नि उपमा सूत्र' (Fire Sermon) में गौतम बुद्ध अपने शिष्यों को समझाते हैं कि यह दुनिया और उसमें होने वाले सारे अनुभव जैसे कि देखना, महसूस करना, सोचना — सब कुछ मानो जल रहा है. यह जलना किसी बाहरी आग में नहीं, बल्कि हमारी अंदर की इच्छाओं, लालच और मोह की आग में है.
हमारी आँखें, उनसे देखी चीजें और उन चीजों से जुड़ी हमारी भावनाएँ — सुख, दुख या तटस्थता — सब इस अग्नि में जल रहे हैं. बुद्ध कहते हैं कि जन्म से लेकर मृत्यु तक हम इसी आग में जलते हैं, और यही हमारे दुख का कारण है. जब तक हम इन भावनाओं और इच्छाओं से बंधे रहेंगे, तब तक हम भीतर से शांत नहीं हो पाएंगे. इसलिए इस जलन को पहचानना और उससे मुक्त होना ही सच्चे सुख और शांति की राह है.
बुद्ध पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि यह याद दिलाती है कि भारत की असली ताकत उसकी नैतिकता और करुणा में है. युद्ध की परिस्थिति में भी भारत ने कभी अपनी नैतिकता नहीं छोड़ी. हमने हमेशा शांति की पहल की, लेकिन जब-जब देश पर संकट आया, हमने अपनी सुरक्षा के लिए भी दृढ़ता दिखाई.
यही संतुलन भारत को महान बनाता है-जहां एक ओर युद्ध की चुनौती है, वहीं दूसरी ओर करुणा और अहिंसा का संदेश भी. आज जब हम बुद्ध पूर्णिमा मना रहे हैं, तो यह समय है आत्मचिंतन का-कि हम किस दिशा में जा रहे हैं, हमारे समाज के नायक कौन हैं, और हम किन मूल्यों को आगे बढ़ा रहे हैं.
भारत की महानता उसकी विविधता, सहिष्णुता और नैतिकता में है. यही वह संदेश है, जिसे आज पूरी दुनिया को अपनाने की जरूरत है.
भारत ने हमेशा शांति को प्राथमिकता दी है, लेकिन आत्मरक्षा के लिए दृढ़ता भी दिखाई है. प्राचीन काल में सम्राट अशोक ने कलिंग युद्ध के बाद हिंसा का त्याग कर बौद्ध धर्म को अपनाया और शांति का संदेश विश्व भर में फैलाया.
आधुनिक समय में भी भारत ने वैश्विक मंच पर शांति की वकालत की है, लेकिन जब देश की सुरक्षा की बात आई, तो उसने कभी समझौता नहीं किया. राष्ट्रकवि दिनकर जी ने भी बहुत खूब लिखा है- रुग्ण होना चाहता कोई नहीं/रोग लेकिन आ गया जब पास हो/तिक्त ओषधि के सिवा उपचार क्या?/शमित होगा वह नहीं मिष्टान्न से.
युद्ध की परिस्थितियों में भी भारत ने नैतिकता और मानवीय मूल्यों का पालन करने का प्रयास किया है. बुद्ध की शिक्षाओं से प्रेरित भारत की यह नीति शक्ति और करुणा का अनूठा संतुलन दर्शाती है. यह नीति भारत को विश्व में एक जिम्मेदार और नैतिक शक्ति के रूप में स्थापित करती है.
भारत की सच्ची महानता उसकी सैन्य शक्ति या आर्थिक प्रगति में नहीं, बल्कि उसके मूल्यों—अहिंसा, करुणा, सहिष्णुता और नैतिकता—में है. बुद्ध पूर्णिमा का अवसर हमें इन मूल्यों की ओर लौटने का मौका देता है. आज जब विश्व हिंसा, विभाजन और तनाव से जूझ रहा है, बुद्ध की शिक्षाएं एक मार्गदर्शक प्रकाश की तरह हैं.
यह समय है कि हम आत्मचिंतन करें, अपने भीतर शांति और करुणा को जागृत करें और एक ऐसी दुनिया का निर्माण करें, जहाँ प्रेम, एकता और समानता सर्वोपरि हों. बुद्ध पूर्णिमा हमें सिखाती है कि सच्ची जीत वही है, जो मन को शांति और आत्मा को संतुष्टि दे. भारत की यह आध्यात्मिक विरासत विश्व को एक बेहतर भविष्य की ओर ले जा सकती है.
(लेखक पसमांदा मामलों के एक्सपर्ट हैं)