पसमांदा को लेकर मायावती की राजनीति

Story by  हरजिंदर साहनी | Published by  [email protected] | Date 03-07-2023
पसमांदा को लेकर मायावती की राजनीति
पसमांदा को लेकर मायावती की राजनीति

 

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बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की खिंचाई के बहाने अपना चुनावी पासा भी उछाल दिया है.अभी चंद रोज पहले ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब भोपाल में भाजपा कार्यकर्ताओं के एक सम्मेलन में बोल रहे थे तो उन्होंने कहा था कि भारत में रहने वाले 80 फीसदी मुसलमान पसमांदा यानी पिछड़े हैं. मायावती ने मोदी की इसी लाइन को पकड़कर तंज किया है कि भाजपा को अब पसमांदा मुसलामनों को आरक्षण देने का विरोध छोड़ देना चाहिए.

हालांकि मायावती भी अच्छी तरह से जानती हैं कि भाजपा हमेशा से ही धर्म के आधार पर आरक्षण दिए जाने का विरोध करती रही है. कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले तो पार्टी ने वहां दिए जाने वाले मुस्लिम आरक्षण का खत्म करने का ऐलान तक कर दिया था.
 
यह बात अलग है कि अदालत ने इस पर रोक लगा दी और फिर भी भाजपा के तमाम बड़े नेता यही कहते रहे कि वे इस आरक्षण को खत्म करके ही दम लेंगे. यह बात अलग है कि पार्टी चुनाव हार गई और यह पूरा मामला वहीं खत्म हो गया.
 
मायावती दरअसल इस तरह का बयान देकर एक बार फिर उस समीकरण को गांठना चाहती हैं जिसने उन्हें एक बार पूरे बहुमत के साथ उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया था. उस चुनाव में दलित पूरी तरह उनके साथ थे और उत्तर प्रदेश के मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा भी उनके साथ जुड़ गया था. इसके अलावा वे ब्राह्मण मतदाताओं को भी अपने साथ जोड़ने में कामयाब रहीं थीं.
 
वैसे उत्तर प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में भी बहुजन समाज पार्टी ने उसी प्रयोग को दोहराने की कोशिश की थी, लेकिन मुस्लिम और ब्राह्मण मतदाताओं का जुड़ पाना तो दूर उनके दलित आधार का एक हिस्सा भी उनके दूर छिटक गया.
 
भाजपा बसपा के कईं दलित मतदाताओं को अपने साथ जोड़ने में कामयाब रही. बसपा उत्तर प्रदेश में अपने इतिहास के एक सबसे खराब दौर से गुजर रही है. प्रदेश में राजनीति पूरी तरह से बदल गई है और मायावती जिस समीकरण की बात कर रही हैं उसकी मियाद भी अब निकल चुकी है.
 
माना जाता है कि प्रदेश के पिछले विधानसभा चुनाव में जिस पार्टी को मुसलमानों ने सबसे ज्यादा वोट दिए वह समाजवादी पार्टी थी. और इस समय जब तकरीबन हर पार्टी पसमांदा-पसमांदा की रट लगा रही है समाजवाद पार्टी इस पर ज्यादा नहीं बोल रही है. शायद वह यह मान कर चल रही है कि पसमांदा हों या अशराफ, उत्तर प्रदेश के ज्यादातर मुसलमान आगे भी उसी को वोट देंगे. इस तरह के आत्मविश्वास अक्सर पार्टियों को परेशानी में भी डालते रहे हैं.
 
हालांकि इस सारी राजनीति में पसमांदा को लेकर जो गंभीर चर्चा और कोशिश होनी चाहिए वह कहीं दिखाई नहीं दे रही। जो पसंमादा हैं उन्हें आगे कैसे लाया जाए इसे लेकर देश में फिलहाल कोई बड़ा विमर्श नहीं चल रहा.
 
धार्मिक आधार पर आरक्षण गैरवाजिब हो सकता है लेकिन एक बहुत बड़े तबके को इसकी सजा भी नहीं दी जा सकती कि वह एक खास धार्मिक समुदाय से जुड़ा है. इससे यह भी पता चलता है कि इस समय राजनीति में पसमांदा को लेकर जो चर्चा सुनाई दे रही है उसमें वोट की राजनीति के सिवा कुछ नहीं है. 
 
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )