हरजिंदर
पूरे देश में एक समान नागरिक संहिता यानी यूनीफार्म सिविल कोड लागू करने की चर्चा इन दिनों काफी तेजी से हो रही है. एक देश, एक कानून के बहुत सारे फायदे गिनाए और बताए जा रहे हैं. दूसरी तरफ उतनी ही चर्चा इसके खतरों की भी हो रही है. उत्तराखंड से जो खबरे आ रही हैं उनसे लगता है कि इस प्रदेश ने तो जैसे यूनीफार्म सिविल कोड लागू करने के लिए कमर भी कस ली है.
वैसे यह वही राज्य है जो इन दिनों सांप्रदायिक तनाव के लिए भी चर्चा में है.देश में यूनीफार्म सिविल कोड होना चाहिए या नहीं इस पर सबसे बड़ी और अच्छी चर्चा संविधान सभा में हुई थी. सभा के बहुत सारे सदस्य यह मानते थे कि कोड लागू होना चाहिए, लेकिन अभी इसे लागू करने की स्थितियां नहीं हैं.
यहां पर अगर हम सिर्फ पश्चिम बंगाल से संविधान सभा के सदस्य नजीरउद्दीन अहमद की तकरीर को लें तो वे भी यूनीफार्म सिविल कोड के पक्ष में थे. मानते थे कि अभी इसका वक्त नहीं आया है. नज़ीरउद्दीन अहमद सभा में मुस्लिम लीग के प्रतिनिधि थे. उनका तर्क था कि आगे जाकर सभी समुदायों की सहमति से यूनीफार्म सिविल कोड लागू किया जा सकेगा.
आजादी के बाद देश के सभी नेता यह मान कर चल रहे थे भारत एक तरक्कीपसंद मुल्क बनेगा.इसके सभी समुदाय सामाजिक सुधारों के जरिये अतीत की बुराइयों से अपना पीछा छुड़ाएंगे. दुर्भाग्य से ऐसा हुआ नहीं. बाद के दौर में वोट की राजनीति ने इसमें से बहुत सी बुराइयों का फायदा उठाने या उन्हें पूरी तरह नजरंदराज करने की नीति अपनाई.
इसलिए कईं मायनों में यह देश वैसा बन ही नहीं सका जैसी कि संविधान सभा के नेताओं ने कल्पना की थी.यही वजह है कि यूनीफार्म सिविल कोड जैसी चीजें एक राजनीति मुद्दा भले ही बन गईं हों किसी ने उनके लिए जमीन तैयार करने की कोशिश कभी नहीं की. बेशक यह काम बहुत आसान भी नहीं, न ही रातों-रात होने वाला, फिर भी किसी ने इसकी शुरुआत तक नहीं की.
तो क्या इसे अब एकदम से बनाया और लागू किया जा सकता है ? अगर ऐसा कोड आता है तो उसका अच्छा-बुरा असर सभी समुदायों पर पड़ेगा. क्या सभी समुदाय इसके लिए मानसिक तौर पर तैयार हैं ? ऐसा करने के लिए हमें पूरे देश में एक लंबा विमर्श चलाना होगा. क्या इस समय देश में ऐसा विमर्श हो सकता है ?
राजनीति में जो हो रहा है अगर हम उसे छोड़ दें तो समाज के स्तर पर जिस तरह की नफरत इस समय फैल रही है उसमें कोई स्वस्थ विमर्श शायद नहीं हो सकता. अगर हम इस नफरत को मिटाए बिना इस पर चर्चा करना चाहें तो उन्मादी तू-तू मैं-मैं ही हो सकती है, जो अंत में समाज में और ज्यादा फूट ही डालेगी.
शुरू में जब यूनीफार्म सिविल कोड के बारे में सोचा गया था तो यह माना गया था कि इससे भारतीय समाज ज्यादा एकताबद्ध होगा. लेकिन अब जिस समय पर और जिस तरह से इसे लागू करने की बात हो रही है, उसमें इसे लागू करने की कोई भी कोशिश तनाव बढ़ाने की ओर जा सकती है.
यह यूनीफार्म सिविल कोड पर बात करने का समय इसलिए भी नहीं है कि आम चुनाव अब बहुत दूर नहीं हैं. अगले कुछ महीनों तक इसे चुनावी नफे नुकसान के साथ ही देखा जाएगा. समाज की तरक्की के मसलों को चुनावी राजनीति से दूर रखने की जरूरत है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं )