इंदिरा गांधी : हिम्मत और कामयाबी की दास्तां

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 31-10-2022
इंदिरा गांधी : हिम्मत और कामयाबी की दास्तां
इंदिरा गांधी : हिम्मत और कामयाबी की दास्तां

 

firdousफ़िरदौस ख़ान

’लौह महिला’ के नाम से मशहूर इंदिरा गांधी न सिर्फ़ भारतीय राजनीति पर छाई रहीं, बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी सूरज की तरह चमकीं. उनकी ज़िन्दगी संघर्ष, चुनौतियों और कामयाबी का एक ऐसा सफ़रनामा है, जो अदम्य साहस का इतिहास बयां करता है. अपने कार्यकाल में उन्होंने अनेक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों का सामना किया. मामला चाहे कांग्रेस पार्टी की अंदरूनी कलह का हो, अलगाववाद का हो, पाकिस्तान के साथ जंग का हो, बांग्लादेश की आज़ादी का हो, या फिर इसी तरह का कोई और बड़ा मुद्दा हो.

हर मामले में उन्होंने अपनी सूझबूझ और साहस का परिचय दिया. बैंकों के राष्ट्रीयकरण, प्रीवी पर्स का ख़ात्मा, प्रथम पोखरण परमाणु विस्फोट, प्रथम हरित क्रांति जैसे कार्यों के लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा. गुटनिरपेक्ष आंदोलन की अगुवाई और बांग्लादेश की आज़ादी भी उनके साहसिक कार्यों में शामिल है.

देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का जन्म 19नवंबर, 1917को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में हुआ था. उनका पूरा नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी गांधी था. उनके पिता पंडित जवाहरलाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री थे और माता कमला नेहरू थीं.

उन्होंने शुरुआती तालीम इलाहाबाद के स्कूल में ही ली. इसके बाद उन्होंने गुरु रबींद्रनाथ टैगोर के शांति निकेतन स्थित विश्व भारती विश्वविद्यालय में दाख़िला लिया. इसके बाद उन्होंने ब्रिस्टल के बैडमिंटन स्कूल में कुछ महीने बिताए.

फिर साल 1937 में इम्तिहान में कामयाब होने के बाद उन्होंने ऑक्सफ़ोर्ड के सोमरविल कॉलेज में दाख़िला ले लिया. उस दौरान उनकी मुलाक़ात फ़िरोज़ गांधी से हुई, जिन्हें वे इलाहाबाद से जानती थीं. उनकी जान-पहचान मुहब्बत में बदल गई और फिर 16मार्च 1942 को उन्होंने इलाहाबाद के आनंद भवन में  फिरोज़ से विवाह कर लिया. उनके दो बेटे संजय और राजीव हुए. राजीव गांधी बाद में देश के लोकप्रिय प्रधानमंत्री बने.

बचपन से ही इंदिरा गांधी को सियासी माहौल मिला, जिसका उनके किरदार और उनकी ज़िन्दगी पर गहरा असर पड़ा. साल 1941में ऑक्सफ़ोर्ड से स्वदेश वापसी के बाद वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हो गईं. उन्होंने युवाओं के लिए वानर सेना बनाई.

वानर सेना विरोध प्रदर्शन और झंडा जुलूस निकालने के साथ-साथ कांग्रेस नेताओं की भी ख़ूब मदद करती थी.आज़ादी की लड़ाई में इसके काम को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता. 1930की दहाई के शुरू का वाक़िया है, जब इंदिरा गांधी ने पुलिस की निगरानी में रह रहे अपने पिता के घर से एक अहम दस्तावेज़ को अपनी किताबों के बस्ते में छुपाकर गंतव्य तक पहुंचाया था.

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सितम्बर 1942 में उन्हें ब्रिटिश हुकूमत द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया. आख़िर तक़रीबन 243दिन जेल में गुज़ारने के बाद उन्हें 13मई 1943को रिहा किया गया.1950की दहाई में इंदिरा गांधी अपने पिता यानी देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू के निजी सहायक के तौर पर काम कर रही थीं.

साल 1959वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गईं. पार्टी के लिए उन्होंने सराहनीय काम किया. 27मई, 1964को उनके पिता का देहांत हो गया. इसके बाद वे राज्यसभा सदस्य के रूप में चुनी गईं और प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री के मंत्रिमंडल में सूचना और प्रसारण मंत्री बनीं.

साल 1965की भारत-पाकिस्तान जंग के दौरान वे सेना की हौसला अफ़ज़ाई के लिए श्रीनगर सीमा के इलाक़े में गईं. सेना की चेतावनी के बावजूद उन्होंने दिल्ली आना मंज़ूर नहीं किया और सेना का मनोबल बढ़ाती रहीं. उस दौरान लालबहादुर शास्त्री ताशक़ंद गए हुए थे.

इसके बाद 19जनवरी, 1966को इंदिरा गांधी देश की तीसरी प्रधानमंत्री बनीं. उस वक़्त कांग्रेस दो गुटों में बंट चुकी थी. समाजवादी ख़ेमा इंदिरा गांधी के साथ खड़ा था, जबकि दूसरा रूढ़िवादी गुट मोरारजी देसाई का समर्थक था.

मोरारजी देसाई इंदिरा गांधी को ’गूंगी गुड़िया’ कहा करते थे.साल 1967के चुनाव में 545सीटों वाली लोकसभा में कांग्रेस को 297सीटें मिलीं. उन्हें प्रधानमंत्री चुन लिया गया और वे 24मार्च, 1977अपने पद पर बनी रहीं. क़ाबिले-ग़ौर है कि वे 1967में प्रधानमंत्री पद के लिए चुने जाने के बाद आख़िर तक प्रधानमंत्री बनी रहीं, लेकिन 1977से 1980 के बीच उन्हें हुकूमत से बेदख़ल रहना पड़ा.उन्होंने मोरारजी देसाई को देश का उप प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री बनाया. साल 1969में मोरारजी देसाई के साथ अनेक मुद्दों पर मतभेद हुए और आख़िरकार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस बंट गई. उन्होंने समाजवादी और साम्यवादी दलों के समर्थन से हुकूमत की.

साल 1971में जंग के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेश नीति को नई दिशा दी. नतीजतन, जंग में भारत ने शानदार जीत हासिल की. इस दौरान बांग्लादेश को पाकिस्तान से आज़ादी मिली. दरअसल, बांग्लादेश को आज़ाद कराने में इंदिरा गांधी ने बेहद अहम किरदार निभाया था.

इंदिरा गांधी ने  26जून, 1975को देश में आपातकाल लागू किया. इसकी वजह से उनकी पार्टी 1977के आम चुनाव में पहली बार हार गई. उन्हें अक्टूबर 1977और दिसम्बर 1978में जेल तक जाना पड़ा. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और जद्दोजहद करती रहीं.

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फिर 1980में उन्होंने हुकूमत में वापसी की. कांग्रेस को शानदार कामयाबी मिली और 22राज्यों में से 15राज्यों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी. 14जनवरी, 1980को वे फिर से देश की प्रधानमंत्री बनीं और अपनी ज़िन्दगी के आख़िर तक हुकूमत की.

उन दिनों पंजाब में आतंकवाद चरम पर था. उन्होंने पंजाब में अलगाववादियों के ख़िलाफ़ मुहिम शुरू कर दी. इसकी वजह से अलगाववादी उनकी जान के दुश्मन बन गए और 31अक्टूबर, 1984को दिल्ली में उनके अंगरक्षकों ने ही उनका क़त्ल कर दिया.

अटल बिहारी वाजपेयी ने पंडित जवाहरलाल नेहरू से श्रीमती इंदिरा गांधी की तुलना करते हुए कहा था कि अपने पिता के विपरीत इंदिरा गांधी संसद से दूर-दूर रहती थीं. आरंभ में तो वह इतनी चुप रहती थीं कि उन्हें ’गूंगी गुड़िया’ तक कह दिया गया था, किंतु यह उनके साथ अन्याय था.

वह कम बोलने में विश्वास करती थीं. सबकी बातें सुनने के बाद अपना मत स्थिर करती थीं और सबसे अंत में प्रकट करती थीं. उन्होंने चौदह वर्ष तक शासन कर विश्व को चमत्कृत कर दिया और विरोधियों को कई बार पछाड़ा. इंदिरा जी के साथ संसद में कई बार काफी नोक-झोंक होती रहती थी, किंतु राजनीति के मतभेदों को उन्होंने व्यक्तिगत संबंधों में बाधक नहीं बनने दिया.

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दरअसल, सियासत की इस महान और कामयाब शख़्सियत को अपनी निजी ज़िन्दगी में कई ग़म मिले थे. साल 1936में उनकी मां कमला नेहरू तपेदिक से एक लम्बे अरसे तक जूझने के बाद उन्हें अकेला छोड़ गईं. उस वक़्त उनकी उम्र महज़ 18 साल थी. फिर शादीशुदा ज़िन्दगी में भी उन्हें दुख मिले.शादी के बाद उनकी शुरुआती ज़िन्दगी ठीक रही, लेकिन बाद में वे अपने पिता के घर आ नई दिल्ली आ गईं.

देश के पहले आम चुनाव 1951में वे अपने पिता और पति दोनों के लिए चुनाव प्रचार कर रही थीं. चुनाव जीतने के बाद फ़िरोज़ गांधी ने अपने लिए अलग घर चुना. फिर साल 1958में उप-निर्वाचन के कुछ वक़्त बाद फिरोज़ गांधी को दिल का दौरा पड़ा.

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इस दौरान इंदिरा गांधी ने उनकी ख़ूब ख़िदमत की. उनके रिश्ते बेहतर होने लगे, लेकिन 8सितम्बर1960को जब इंदिरा गांधे अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गई थीं, तब फिरोज़ की मौत हो गई. उन्होंने ख़ुद को पार्टी और देश के काम में मसरूफ़ कर लिया.

उन्होंने संजय गांधी को अपना सियासी वारिस चुना, लेकिन 23 जून, 1980 को एक उड़ान हादसे में उनकी मौत हो गई. इसके बाद वे अपने छोटे बेटे राजीव गांधी को सियासत में लेकर आईं.भारत रत्न से सम्मानित इंदिरा गांधी ने कहा था- जीवन का महत्व तभी है, जब वह किसी महान ध्येय के लिए समर्पित हो. यह समर्पण ज्ञान और न्याययुक्त हो. शहादत कुछ ख़त्म नहीं करती, वो महज़ शुरुआत है.

(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं.)