मलिक असगर हाशमी /नई दिल्ली
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के शोर-शराबा से दूर पुराने दस्तरख्वान के शौकीन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में इकट्ठे हुए और दिनभर लजीज खानों पर चर्चा की गई.मौका था डा. तराना हसन खान की पुस्तक ‘ देग टू दस्तरख्वान: किस्सा एवं रेसिपीज फ्रॉम रामपुर.’ इस मौके पर लजीज खानों का दौर भी चला.
पिज्जा, बर्गर के इस दौर में हम शाही, मुगलई और पुराने लजीज खानों को भूलते जा रहे हैं. मगर डॉ तराना हसन खान देश की उन गिनी-चुनी लेखकों में हैं, जिनके लेखन का विषय ही पुराना दस्तरख्वान है. वह खानों पर लिखती हैं, इसके अलावा वह ‘कल्चरल हिस्टोरियन’ भी हैं.
इसकी चर्चित पुस्तक है-द बेगम एंड द दास्तान.अब उनकी नई किताब आई है-‘ देग टू दस्तरख्वान: किस्सा एवं रेसिपीज फ्रॉम रामपुर.
डा. तराना अपनी नई किताब के बारे में कहती हैं-रामपुर के भूले-बिसरे खानों को किताब की शक्ल में समेट में उन्हें तीन साल लगे. इस पुस्तक में चावल और मसालों पर विशेष चर्चा है.
पुस्तक विमोचन समारोह में जाने माने भोजन विद पुष्पेंत पंत भी शरीक हुए. कार्यक्रम की शुरुआत जानकी देवी मेमोरियल कॉलेज की प्रिंसिपल स्वाति पाल के स्वागत भाषण से हुई.
इसके बाद रामपुर के ‘भूले-बिसरे खानों को पुस्तक की शक्ल देने में आई परेशानियों का जिक्र किया गया. इस विषय पर यूसुफ सईद और नसीमा नकवी ने लंबी बातचीत की. इसके बाद डॉ तराना और पुष्पेंत पंत के बीच खानों के इतिहास पर चर्चा हुई.
कार्यक्रम में शरीक होने और लजीज खानों पर चर्चा में शामिल होने के लिए डॉ तराना ने पुष्पेंत पंत का विशेष तौर से आभार व्यक्त किया. उन्होंने ट्वीट कर पुष्पेंतपंत के बारे में लिखा है-जश्न ए रामपुर में एक शानदार लॉन्च. एक विशाल शुक्रिया पुष्पेश पंत जी. अस्वस्थ होने के बावजूद उनके समर्थन मिला. उनकी चर्चा हमेशा की तरह त्रुटिहीन और अंतर्दृष्टि पूर्ण थी. आपको धन्यवाद.
बता दें कि इस पुस्तक का प्रकाशन पेंगुइन ने किया है. कार्यक्रम में नवाब काजिम अली खान (नावेद मियां) भी शामिल हुए.