डॉ. ज़फर दारिक क़ासमी
किसी भी धर्म, दर्शन या सभ्यता को उसकी सच्ची आत्मा में समझने और उसके बारे में प्रामाणिक जानकारी प्राप्त करने का सबसे विश्वसनीय माध्यम वही होता है जो उस परंपरा के भीतर से निकले विद्वान और चिंतक हों. जब हम इस दृष्टिकोण से हिंदू धर्म की ओर देखते हैं, तो हमें अनेक ऐसे भारतीय विचारक दिखाई देते हैं जिन्होंने इस धर्म और उसकी जीवन-दृष्टि को न केवल आत्मसात किया बल्कि वैश्विक मंच पर उसे उजागर भी किया. ऐसे ही एक महान चिंतक थे डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन—जो एक प्रख्यात दार्शनिक, शिक्षाविद और स्वतंत्र भारत के राष्ट्रपति भी रहे.
डॉ. राधाकृष्णन ने धर्म, दर्शन और तुलनात्मक चिंतन के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया. उन्होंने या तो स्वयं लगभग 150 पुस्तकें लिखीं या उनका संपादन किया, जिनमें अनेक अब भी दर्शनशास्त्र के विद्यार्थियों और शोधकर्ताओं के लिए मानक संदर्भ मानी जाती हैं.
उनकी प्रमुख कृतियों में The Hindu View of Life, An Idealist View of Life, Indian Philosophy (Vol. I & II), The Principal Upanishads, The Bhagavad Gita (Translation), Eastern Religions and Western Thought, A Source Book in Indian Philosophy, और The Philosophy of Rabindranath Tagore प्रमुख हैं. इन पुस्तकों के माध्यम से उन्होंने न केवल हिंदू धर्म की जटिलताओं को सरल रूप में प्रस्तुत किया, बल्कि इसे वैश्विक संवाद का विषय भी बनाया.
उनकी रचना The Hindu View of Life हिंदू धर्म और दर्शन की सरल, स्पष्ट और सर्वसमावेशी व्याख्या प्रस्तुत करती है. वहीं, A Source Book in Indian Philosophy में प्राचीन भारतीय दर्शन के मूल ग्रंथों से महत्वपूर्ण अंशों का संग्रह है, जिसमें वेद, उपनिषद और अन्य शास्त्रों के महत्वपूर्ण उद्धरण सम्मिलित हैं.
An Idealist View of Life और Eastern Religions and Western Thought जैसी कृतियाँ पूर्व और पश्चिम के बीच दार्शनिक संवाद को दर्शाती हैं, जबकि Indian Philosophy में वेदांत, बौद्ध दर्शन और अन्य दर्शनों का गहन विवेचन किया गया है. उनकी रचनाओं से यह स्पष्ट होता है कि उन्होंने हिंदू धर्म को केवल एक धार्मिक प्रणाली नहीं, बल्कि एक जीवन-पद्धति, नैतिकता और आत्मिक जागरूकता का दर्शन माना.
डॉ. राधाकृष्णन का मानना था कि धर्म केवल आस्था और अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि वह मनुष्य के आत्मिक रूपांतरण और नैतिक उत्थान का मार्ग है. उनके अनुसार, सच्चा धर्म वह है जो मनुष्य के भीतर परिवर्तन लाए, उसकी चेतना को जागृत करे और उसे सत्य, करुणा, न्याय व सहिष्णुता की ओर प्रेरित करे. वे कहते हैं कि यदि धर्म इन मूल्यों की शिक्षा नहीं देता, तो वह केवल एक खोखला औपचारिक ढांचा बनकर रह जाता है.
उन्होंने धर्म को संकीर्णता से मुक्त कर एक वैश्विक मानवता की भावना से जोड़ने का प्रयास किया.उनके धार्मिक चिंतन के अनुसार, धर्म आत्मा और ब्रह्मांड के बीच एकता की अनुभूति है। वह तर्क और श्रद्धा, दोनों को साथ लेकर चलता है.
वह किसी भी मत या पंथ की सीमाओं से ऊपर होता है और समस्त मानवता के लिए समान रूप से उपयोगी होता है. डॉ. राधाकृष्णन का स्पष्ट मत था कि धर्म और विज्ञान के बीच संघर्ष नहीं होना चाहिए, बल्कि दोनों के बीच संतुलन स्थापित होना चाहिए. उन्होंने कहा कि "धर्म हृदय को आलोकित करता है और विज्ञान मस्तिष्क को; दोनों के सामंजस्य से ही मनुष्य संपूर्ण बनता है."
उनकी दृष्टि में धर्म की वास्तविक समझ केवल ग्रंथों के अध्ययन या कर्मकांडों के पालन से नहीं आती, बल्कि हर व्यक्ति को ईश्वर और परम सत्य का व्यक्तिगत अनुभव होना चाहिए. उन्होंने धार्मिक संकीर्णता और धर्म के राजनीतिक उपयोग की तीव्र आलोचना की.
उनके अनुसार, जब धर्म को सत्ता, राजनीति या पूर्वाग्रह के साधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है, तो वह मानवता के लिए घातक सिद्ध होता है. आज जब हम देखते हैं कि कई स्थानों पर धर्म को राजनीतिक और सत्ता के हथियार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा है, तो डॉ. राधाकृष्णन की चेतावनियाँ और भी प्रासंगिक हो जाती हैं.
डॉ. राधाकृष्णन ने हिंदू धर्म को वैश्विक परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत करते हुए यह दर्शाया कि यह कोई नस्लीय या एकांगी धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह विचारों, भावनाओं और जीवन दृष्टियों की एक समग्र विरासत है, जिसमें भारत के हर समुदाय और वर्ग ने योगदान दिया है.
अपनी पुस्तक Eastern Religions and Western Thought में वे लिखते हैं कि आधुनिक हिंदू धर्म के कई देवी-देवता वैदिक काल से भी पहले के हैं, और उनका उद्गम सिंधु घाटी सभ्यता से जुड़ा हुआ है। वैदिक परंपरा ने द्रविड़ और अन्य प्राचीन परंपराओं को इस प्रकार आत्मसात कर लिया कि आज हिंदू सभ्यता को किसी एक नस्ल या संस्कृति तक सीमित नहीं किया जा सकता.
वे आगे लिखते हैं कि हिंदू धर्म अपनी उदारता, सहिष्णुता और समावेशी प्रकृति के कारण एक ऐसी साझा धार्मिक चेतना बन गया है जो हर तरह के धार्मिक विचारों, भावनाओं और परंपराओं को स्थान देता है. यह धर्म हर व्यक्ति की आंतरिक शांति और आत्मिक तृप्ति के लिए स्थान प्रदान करता है और किसी भी ईश्वर की उस परिकल्पना को अस्वीकार नहीं करता जो मनुष्य को संतोष और शांति दे सके.
डॉ. राधाकृष्णन ने इस बात पर भी बल दिया कि हिंदू धर्म केवल मूर्ति पूजा या कर्मकांड नहीं है, बल्कि यह एक जीवंत आध्यात्मिक अनुभव और परम सत्य की खोज का मार्ग है. उन्होंने वेदांत के सिद्धांत को अपनी आधारशिला माना— "सत्य एक है, ज्ञानी लोग उसे अनेक नामों से पुकारते हैं."
उनके अनुसार, सभी धर्म एक ही सत्य की विविध अभिव्यक्तियाँ हैं, और इसलिए सभी धर्मों के प्रति सम्मान और सहिष्णुता रखना आवश्यक है.अहिंसा, सत्य, करुणा और आत्म-संयम जैसे नैतिक मूल्यों को वे न केवल धार्मिक सिद्धांत मानते थे, बल्कि मानवता की आधारशिला समझते थे.
उनके विचारों के अनुसार, हिंदू धर्म एक गतिशील, सार्वभौमिक और जीवंत दर्शन है, जो आत्ममंथन, सत्य की खोज और अन्य धर्मों के साथ सौहार्दपूर्ण सह-अस्तित्व को प्रोत्साहित करता है.अंततः, डॉ. राधाकृष्णन का समग्र दृष्टिकोण यह था कि धर्म का उद्देश्य न केवल ईश्वर से संबंध जोड़ना है, बल्कि मानवता से प्रेम और सेवा का भाव विकसित करना भी है.
उन्होंने हमें सिखाया कि धर्म को सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता, बल्कि यह वह शक्ति है जो विविधताओं को एकता में बदलने का सामर्थ्य रखती है.