देस-परदेश : भारत को ही चलानी होगी आतंक-विरोधी वैश्विक मुहिम

Story by  मलिक असगर हाशमी | Published by  [email protected] | Date 21-11-2022
देस-परदेश : भारत को ही चलानी होगी आतंक-विरोधी वैश्विक मुहिम
देस-परदेश : भारत को ही चलानी होगी आतंक-विरोधी वैश्विक मुहिम

 

प्रमोद जोशी

वैश्विक-आतंकवाद को लेकर हाल में भारत से जुड़ी कुछ गतिविधियों ने ध्यान खींचा है. भारत ने संरा सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति (सीटीसी) की दिल्ली तथा मुंबई में हुई बैठकों की मेजबानी की. इनके अलावा दिल्ली में गत 18-19 नवंबर को हुआ ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन. दोनों कार्यक्रमों का उद्देश्य आतंकवाद के खिलाफ ढीली पड़ती वैश्विक मुहिम की तरफ दुनिया का ध्यान खींचना था. इनका एक निष्कर्ष यह भी है कि इसे तेज करने के लिए अब भारत को आगे आना होगा.

आगामी 15-16दिसंबर को वैश्विक आतंकवाद विरोधी प्रयासों से जुड़ी चुनौतियों पर संरा सुरक्षा परिषद की एक विशेष ब्रीफिंग की मेजबानी भी भारत करेगा. भारत की पुरजोर कोशिश इस विषय को प्रासंगिक बनाए रखने में होनी चाहिए. बावजूद इसके कि दुनिया ने अब दूसरी तरफ देखना शुरू कर दिया है.

चीन की भूमिका

इस दौरान एक और घटना ऐसी हुई है, जिसपर ध्यान देने की जरूरत है. मुंबई हमले के मास्टरमाइंड हाफिज सईद के बेटे हाफिज तल्हा सईद को संरा सुरक्षा परिषद की प्रतिबंधित आतंकियों की सूची में डालने के प्रस्ताव पर चीन ने फिर रोक लगा दी है.

इस मामले में पाकिस्तान को चीन सुरक्षा-कवच उपलब्ध कराता रहा है. पाकिस्तान से चलने वाले कई चरमपंथी संगठनों के कमांडरों को वैश्विक आतंकवादी ठहराए जाने कोशिशों को चीन ने बार-बार रोका है.

मुंबई हमले के संदर्भ में भारत का अनुभव रहा है कि आतंकवाद जैसे मसलों पर विश्व समुदाय की बातें बड़ी-बड़ी होती हैं, पर कार्रवाई करने का मौका जब आता है, तब सब हाथ खींच लेते हैं. काउंटर-टेरर संस्थाएं नख-दंत विहीन साबित हुई हैं. हाल में भारत ने इस बात को रेखांकित करने के लिए जो पहल की हैं, उनपर ध्यान देने की जरूरत है.

modi

‘नो मनी फॉर टेरर’

दिल्ली में हुए ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि जो देश आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं, उन्हें इसकी क़ीमत चुकानी चाहिए. गृहमंत्री अमित शाह ने कहा कि अपनी पहचान छिपाने और कट्टरपंथी सामग्री फैलाने के लिए आतंकवादी डार्क नेट का इस्तेमाल कर रहे हैं. क्रिप्टोकरेंसी जैसी आभासी संपत्ति का उपयोग भी बढ़ रहा है.

‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन पहली बार 2018 में पेरिस में हुआ था. उसके बाद 2019 में ऑस्ट्रेलिया में आयोजित किया गया था. भारत को इसकी मेजबानी 2020में करनी थी, लेकिन महामारी के कारण इसे स्थगित कर दिया गया था. इस समूह का कोई स्थायी कार्यालय नहीं है. इसका सचिवालय भी भारत में स्थापित करने का प्रयास किया जा रहा है.

यह समूह मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी वित्तपोषण से निपटने के लिए विशेषज्ञता एवं वित्तीय खुफिया जानकारी के सुरक्षित आदान-प्रदान के लिए मंच प्रदान करता है. दिल्ली में हुए सम्मेलन में 78के 450प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया. सम्मेलन में पाकिस्तान और अफगानिस्तान को बुलाया नहीं गया था. चीन को बुलाया गया था, पर उसके प्रतिनिधि नहीं आए और न चीन की कोई प्रतिक्रिया आई.

राजनीतिक इस्तेमाल

सम्मेलन में विदेशमंत्री एस जयशंकर ने कहा कि कुछ देश आतंकवाद का प्रशासनिक-कला के रूप में इस्तेमाल करते हैं. उन्होंने चीन और पाकिस्तान का नाम लिए बग़ैर कहा कि आतंकवाद, आतंकवाद होता है. कोई राजनीतिक विचारधारा इसे न्यायोचित नहीं ठहरा सकती.

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की आतंकवाद-रोधी समिति (सीटीसी) की बैठक की मेजबानी करने का भारत का फैसला दो कारणों से महत्वपूर्ण था. एक तो, यूक्रेन-युद्ध के कारण दुनिया का ध्यान इस तरफ से हट गया है.

पिछले साल अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी के बाद से अमेरिका और यूरोप के देशों की दिलचस्पी अब दूसरे मसलों पर है. हाल में पाकिस्तान को एफएटीएफ की ‘ग्रे लिस्ट’ से छुटकारा मिल जाने के कारण पाकिस्तान और चीन के राजनीतिक सहयोग को बल मिला है.

सुरक्षा परिषद में भारत की सदस्यता का दो वर्षीय-कार्यकाल पूरा होने वाला है. अगले महीने भारत को इसकी अध्यक्षता का एक और अवसर मिलेगा. ऐसे में भारत वैश्विक आतंकवाद की संरचना पर एक विशेष ब्रीफिंग की अध्यक्षता करेगा.

terrorist

दुनिया की चुप्पी

दिसंबर 1999 में जब इंडियन एयरलाइंस की फ्लाइट आईसी-814 का अपहरण करके कंधार ले जाया गया था और मसूद अज़हर समेत कुछ आतंकियों को रिहा कराया गया था, तब विश्व समुदाय ने खामोशी से सब कुछ देखा. उसके बाद 26 नवंबर 2008 को मुंबई हमले के समय भी विश्व-समुदाय निंदा से ज्यादा कुछ नहीं कर पाया.

पाकिस्तान को अलग-अलग कारणों से अमेरिका और चीन दोनों का प्रश्रय मिला. पिछले अक्तूबर में पाकिस्तान को ‘ग्रे लिस्ट’ से छुटकारा मिल जाने के बाद स्पष्ट है कि पश्चिमी देशों की दिलचस्पी पाकिस्तान पर दबाव डालने की नहीं है.

सुरक्षा परिषद में 1267 प्रतिबंध व्यवस्था के अंतर्गत आतंकियों को प्रतिबंधित किया जाता है. इसके तहत लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज तल्हा सईद को वैश्विक आतंकी की सूची में डालने के लिए भारत और अमेरिका ने गत 19 अक्तूबर को प्रस्ताव रखा था. चीन ने इस प्रस्ताव को रोक दिया.

चीन ने ऐसा पहली बार नहीं किया है. इसके पहले जैशे मोहम्मद के प्रमुख मसूद अज़हर के मामले में काफी लंबे समय तक चीन ने रोक लगाकर रखी थी. पाकिस्तान को इस मामले में चीन का राजनीतिक-समर्थन मिलता है. भारत में हुए ‘नो मनी फॉर टेरर’ सम्मेलन में दोनों देश शामिल नहीं हुए.

आतंकवाद की परिभाषा

वैश्विक आतंकवाद पर बड़ी ताकतों का पाखंड आतंकवाद की परिभाषा को लेकर भी है. पिछले कई साल से संयुक्त राष्ट्र में ‘कांप्रिहैंसिव कन्वेंशन ऑन इंटरनेशनल टेररिज्म’ को लेकर विमर्श चल रहा है, पर टेररिज्म की परिभाषा को लेकर सारा मामला अटका हुआ है.

इस संधि का प्रस्ताव 1996 में भारत ने किया था. तब से अब तक बार-बार कहा जाता है कि जब तक ऐसी संधि नहीं होगी, तब तक आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई लड़ी नहीं जा सकेगी. हम साबित नहीं कर पाएंगे कि भारत के कश्मीर या दूसरे इलाकों में चल रहे आतंकवाद का चरित्र क्या है.

terrorist

हाइब्रिड वॉर

अब हाइब्रिड वॉर का ज़माना है, जिसमें लड़ाई परोक्ष तरीके से चलाई जा रही हैं. हमारी लोकतांत्रिक-संस्थाओं की आड़ में भी आतंकी गतिविधियों का संचालन हो रहा है. पिछले साल 26जनवरी को लाल किले पर हुए हमले की दुनिया ने अनदेखी कर दी.

अब तो तकनीक का विकास भी हो गया है. आतंकी संगठन सोशल मीडिया से लेकर ड्रोन और आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस तक से लैस हैं. सरकारें उनकी मदद करती हैं और राजनीतिक संरक्षण प्रदान करती हैं.

सीटीसी की मुंबई और दिल्ली में हुई बैठकों में 26/11का हमला चर्चा के केंद्र में रहा। इस मामले को आगे बढ़ाने और एकमात्र जीवित हमलावर, अजमल कसाब पर मुकदमा चलाने और सजा दिलाने के लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग पाने में खासी मशक्कत करनी पड़ी.

पाकिस्तानी नाटक

पाकिस्तान ने लश्कर-ए-तैयबा के कमांडरों हाफिज सईद, जकी-उर-रहमान लखवी और दूसरे लोगों पर मुकदमा चलाने का नाटक किया और फिर हाथ खींच लिए। संरा समिति की बैठक के दौरान, उपस्थित लोगों ने इन हमलों के पीड़ितों की आपबीती सुनी.

भारत से बहुत से मामलों में सहयोग करने वाले अमेरिका ने इन हमलों के सिलसिले में डेविड हेडली और तहव्वुर राना को दोषी तो ठहराया, लेकिन उन्हें प्रत्यर्पित नहीं किया.

दिल्ली की बैठक में ऑनलाइन माध्यमों से कट्टरपंथी और आतंकी गतिविधियों को चलाने, हिंसक गतिविधियों के लिए भरती और क्रिप्टो-करेंसी तथा वर्चुअल परिसंपत्तियों के मार्फत आतंकवाद का वित्तपोषण करने और आतंकी हमलों एवं ड्रग्स तथा हथियारों की सप्लाई के लिए ड्रोन सहित मानव रहित विमानों के इस्तेमाल पर बातचीत की गई.

इन दोनों कार्यक्रमों के बाद अब अगले महीने की ब्रीफिंग का उद्देश्य खामोश बैठी दुनिया को चेताना है कि वैश्विक-आतंकवाद का खतरा समाप्त नहीं हुआ है. उसकी अनदेखी की जाएगी, तो फिर किसी दिन कोई बड़ी घटना हो सकती है.

( लेखक दैनिक हिन्दुस्तान के संपादक रहे हैं )

ALSO READ कुंठित पाकिस्तान के जख्मों पर क्रिकेट की सफलता ने मरहम लगाया