साहित्यः सुमन केशरी के नए कविता संग्रह का निमित्त नहीं!! : महाभारत की स्त्रियों की गाथा का हुआ लोकार्पण

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] • 1 Years ago
निमित्त नहीं!! : महाभारत की स्त्रियों की गाथा का हुआ लोकार्पण
निमित्त नहीं!! : महाभारत की स्त्रियों की गाथा का हुआ लोकार्पण

 

मंजीत ठाकुर/ नई दिल्ली

वाणी प्रकाशन ग्रुप से प्रकाशित कवि-कथानटी सुमन केशरी का नया कविता संग्रह ‘निमित्त नहीं!! : महाभारत की स्त्रियों की गाथा’ का लोकार्पण किया गया. कार्यक्रम की अध्यक्षा वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग थीं और मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ कवयित्री अनामिका और वरिष्ठ कवि मदन कश्यप भी मौजूद थे.

लोकार्पण के मामले में मृदुला गर्ग ने कहा, “हर स्त्री की दृष्टि अलग है. सुमन केशरी की कविताएं इसका प्रमाण हैं. इन कविताओं में सुमन की हर स्त्री के प्रति 'एम्पेथी' का भाव है जो 'सिम्पेथि' के भाव से कोसों दूर है."

क्रम को बढ़ाते हुए उन्होंने कहा, “जो कहा जाता है वह 'कहन' होता है और जो नहीं कहा जाता वह कहानी होती है, सुमन की ये कविताएँ 'कहानी' भी हैं."

कवयित्री अनामिका ने कहा, “सुमन केशरी का 'निमित्त नहीं!!' खण्ड काव्य हमारे साहित्य की रिक्त स्थानों की पूर्ति के रूप में हैं. 'निमित्त नहीं!!' मिथकों के नये भाष्य की आवश्यकता है. सुमन की कविताओं में उन चिन्ताओं को उठाया गया है जो आज की सभी माँओं की चिन्ता है." अनामिका के वक्तव्य ने पुस्तक के शिल्प, रस और प्रस्तुत विमर्शों पर प्रकाश डाला.

वरिष्ठ कवि मदन कश्यप ने कहा, “'निमित्त नहीं!!' बहुत जटिल बातों को सरल शब्दों में कहने का प्रयास है. महाकाव्यों की परम्परा से अलग ‘केन्द्रित काव्य श्रृंखला’ आज के साहित्य की ज़रूरत है, यह संग्रह वही है. सुमन केशरी की कविताएँ स्त्री विमर्श की सामूहिकता को सौन्दर्य के रूप में दिखाती है." उन्होंने कहा कि, जिस प्रकार 'सोलिलोकी' और 'ड्रामैटिक मोनोलॉग' में चिन्तन कि विषय-वस्तु परिवर्तित होती है, उसी प्रकार 'निम्मित नहीं!!' हमारी चेतना को नये आयाम देती है.

पुस्तक की लेखिका सुमन केशरी ने कहा, “न्याय और करुणा के खिलाफ़ निर्धारित ‘निम्मित’ में झोंकी गयी स्त्रियों की ध्वनि है 'निमित्त नहीं!!'. स्त्री मातृत्व, सौन्दर्य और भोग-विलास से इतर ईर्ष्या और दुःख का प्रतिबिम्ब भी है. यह सत्य स्त्री के बारे में सामान्य जातीय अवधारणा में सम्मिलित नहीं पाया जाता है. मेरी कविताएँ स्त्री-पक्ष के इस सत्य के साथ भी खड़ी है. मेरा पाठक मेरे कविता पाठ का सह-प्रसोता भी हैं."