सेराज अनवर/पटना
प्यार की खुश्बू न थी, हसरत न थी, रंगत न थी
इस जहां में कुछ नहीं था जब तलक औरत न थी
जब तलक औरत नहीं थी इश्क की दौलत न थी
इस जहां में कुछ नहीं था जब तलक औरत न थी...
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर बिहार की राजधानी पटना में मुशायरा की अनोखी महफ़िल सजी,जिसमें सिर्फ़ महिला शायरों को ही दावत ए सुख़न दिया गया.जिसमें सबीना अदीब,लता हया,नुसरत मेहंदी,हिना रिजवी हैदर,सपना मूलचंदानी,तारा इकबाल,फौजिया रबाब,प्रेरणा प्रताप,आइशा फरहान आदी ने रौनक़ बख्शी.
इस महफ़िल ए मुशायरा की यह भी खूबी रही कि संचालन से लेकर अध्यक्षता और ऐंकरिंग सब महिलाओं ने ही किया.ख़ास बात यह भी रही कि औरत की अज़मत में शायरी पढ़ी गयी.अज़ीमाबाद की अदबी सरज़मीं पर महिला मुशायरा की तारीख़ पटना लिट्रेरी फेस्टिवल (पीएलएफ) ने रक़म की.इस कार्यक्रम के रूह ए रवां पीएलएफ के संस्थापक और सचिव खुर्शीद अहमद ने कहा कि महिलाओं के बगैर पुरुषों की जीवन अधूरा है.
शबीना अदीब ने लूटी महफ़िल
खमुश् लब हैं झुकी हैं पलकें
दिलों में उल्फत नई नई है
अभी तकल्लुफ है गुफ्तगु में
अभी मुहब्बत नई-नई है
नामचीन शायरा शबीना अदीब ने जैसे ही अपना कलाम सुनाना शुरू किया तो रवीन्द्र भवन का हॉल तालियों से गूंज उठा.सबीना अदीब पढ़ती गयीं और औरत की अज़मत परवान चढ़ती रही.
प्यार की खुश्बू न थी
हसरत न थी, रंगत न थी
इस जहां में कुछ नहीं था
जब तलक औरत न थी
जब तलक औरत नहीं थी
इश्क की दौलत न थी
इस जहां में कुछ नहीं था
जब तलक औरत न थी...
शबीना अदीब ने जब यह कलाम तरन्नुम लहजे में सुनाया तो ऐसा मालूम पड़ा कि देश की नामचीन शायरा पाटलिपुत्र को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के सम्मान का संकल्प दिला कर दम लेगी.इस पर हिना रिजवी हैदर ने भी रंग ओ रोग़न लगा दिया.
अंधेरों को ये गुमां है कि बुझा देंगी चिराग
और चिरागों को यह जिद है कि उजाला हो जाए
टूट सकता है किसी पल भी समंदर का गरूर
मुंह अगर मोड़ लें दरिया तो ये प्यासा हो जाए
ख़ुर्शीद अहमद ने क्या कहा?
पीएलएफ के संस्थापक सचिव खुर्शीद अहमद ने
कहा कि इस कार्यक्रम का आयोजन कराने के लिए 6 माह पहले से सोंच थी जो आज पुरा हो रहा है. उन्होंने कहा कि महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के बराबर की होती है. जैसा कि बिहार सरकार भी इसको महत्व दे रही है.
इसी को देखते हुए इस कार्यक्रम का आयोजन किया गया है.कार्यक्रम का उद्घाटन रूबन मेमोरियल अस्पताल के एमडी डा. सत्यजीत सिंह, निदेशक विभा सिंह,शीतल बिल्डटेक के डायरेक्टर यासिर इमाम और डा. आयशा फातिमा ने दीप जलाकर किया.डॉ. आशीष सिंह, शिल्पी सिंह और पूर्व चीफ जस्टिस झारखंड रवि रंजन व अन्य मौजूद थे.
13 महिलाआ शायर एक मंच पर देश में आधी आबादी की रौनक से रूबरू कराने के लिए हाजिर हुई.स्वावलम्बन,स्वाभिमान,सम्मान को संबल देती शायरी ने देर रात शून्य से शिखर तक महिलाओं के जज्बे का जिक्र किया.लता हया ने इसी मौक़े से कहा;
औरत हूं आईना नहीं टूट जाऊंगी
इन पत्थरों से और किसी को डराइये
अशार तो होते ही सुनाने के लिए हैं,
लेकिन 'हया' के इन्हें गुनगुनायिए
मां की मोहब्बत की भी चर्चा रही
नाम तेरे सब शहद से मीठे
अम्मा अम्मी माई मां..
रचना पढ़कर शायरा प्रेरणा प्रताप ने मां की ममता और समर्पण का भाव प्रस्तुत किया.फौजिया रबाब ने भी पढ़ा.
जिस्म मिट्टी है,जान औरत है
धूप में साहिबान औरत है
आदमी कुछ नहीं बिना इसके
आदमी की उड़ान औरत है
इस पर डॉक्टर नुसरत मेहंदी ने कहा
आप शायद भूल बैठे हैं यहां मैं भी तो हूँ
इस जमीन और आसमां के दरम्यां में भी तो हूँ
आज इस अंदाज से तुमने मुझे आवाज दी
यकायक मुझको ख्याल आया कि हां मैं भी तो हूं
सपना मूलचंदानी ने सुनाया
दर्द दिल का उभर नहीं आता
जब तलक वह नजर नहीं आता
जिसके हिस्से में हो सफरनामे
उसके हिस्से में घर नहीं आता
प्रेरणा प्रताप ने पढ़ डाला
मैंने सीखा नहीं डर जाना
हारकर हौसले बिखर जाना
हादसों ने सिखा दिया
जिस तरफ खौफ हो उधर जाना
अलीना इतरत ने क्या ख़ूब पढ़ा
अभी तो चाक पे जारी है रक्श मिट्टी का
अभी कुम्हार की नियत बदल सकती है
प्रस्तुतियों में अगला नंबर तारा इकबाल का आया,उन्होंने पढ़ा
हम जो आ जाते है यू रोज मनाने तुमको,
बेबसी है इसे कमजोरी ना समझा जाए
कुछ दूर तलक तो मेरे हमराह चलो तुम
कुछ दूर तलक तो मुझे होने का गुमा हो
आयशा फरहान ने पढ़ा
तुम अपने साख का सिक्का उछालते रहना
तमाम नेकियां दरिया में डाल आए हो
चलो गुनाह तिजोरियों में डालते रहना
मुशायरे का संचालन डॉक्टर शगुफ्ता यासमीन ने किया जबकि अध्यक्षता मशहूर शायरा तारा इकबाल ने की.कार्यक्रम का संचालन दूरदर्शन दिल्ली की एंकर तपस्या ने किया.महिला दिवस पर औरतों का यह मुशायरा लम्बे अर्से तक याद किया जायेगा.