फैजान खान/ आगरा
पिछले कई दिनों से प्रदेशभर में रामलीला का मंचन रहा है. आगरा में भी कई ऐतिहासिक रामलीला हो रही हैं, जो पिछले कई दशकों से चल रही हैं. उन्हीं में है आगरा कैंट के अंटाघर की रामलीला.
इस रामलीला की सबसे बड़ी खासियत ये है कि इस भगवान श्रीराम की लीला को अल्लाह के बंदे करते हैं. इस रामलीला में राजा जनक, श्रवण कुमार के पिता जैसे किरदार निभाने वाले निजामुद्दीन कहते हैं, “वैसे ही दुनिया में बहुत परेशानी हैं, आप हिंदू-मुस्लिम की बात क्यों करते हो. आप गंगा-जमुनी तहजीब की बात क्यों नहीं करते जिसमें राम और रहीम एक ही हैं.”
वे कहते हैं, “हम कलाकर हैं और कला और कलाकार सभी मजहबों का होता है.”
पिछले 15 साल से कैंट रेलवे स्टेशन के अंटाघर में होने वाली रामलीला में शांतनु, राजा जनक, सुषेण वैद्य, मारीच जैसे किरदार निभाने वाले निजामुद्दीन कहते हैं कि बड़ा अच्छा लगता है जब रामलीला में मंचन करते हैं. इसमें मजहब को बीच में लेकर नहीं आना चाहिए.
उन्होंने कहा कि जिस तरह से अल्लाह ने हमारे नबी-ए-करीब सल्लाहुअलैय वस्सलम को दुनिया में रहमतुल लिल आलिमीन बनाकर भेजा वैसे ही भगवान श्रीराम को मर्यादा पुरुषोत्तम बनाकर भेजा, यानी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ.
पहले हुआ था विरोध, अब नहीं
निजामुद्दीन ने कहा कि जब आज से 15 साल पहले रामलीला में मंचन करना शुरू किया तो बहुत से लोगों ने विरोध किया. लोगों ने कहा, तुम मुस्लिम होकर रामलीला करते हो. इसे छोड़ दो.लेकिन निजामुद्दीन ने उनकी बातों पर कान नहीं दिया. नतीजा यह है कि आज कोई उनको राजा जनक कहता है तो कोई शांतनु.
परिवार ने कभी विरोध नहीं किया
निजामुद्दीन कहते हैं कि रामलीला का मंचन जब से शुरू किया है तब से लेकर आज तक परिजनों ने कभी विरोध नहीं किया. वे तो बड़े खुश होते हैं. कहते हैं कि आप कलाकर हैं जो भी रोल मिले, उसे शानदार तरीके से करो. वैसे भी हम तो थियेटर के आदमी हैं, जो भी रोल मिलेगा उसे जीवंत करने की कोशिश करते हैं.
अब तो पोता भी जाने लगा रामलीला में
निजामुदीन को देखकर उनका 12 साल का पोता अमन भी रामलीला में मंचन करने जाने लगा है. उसे बाल कलाकार के रोल मिल रहे हैं. लेकिन वह भी पूरी शिद्दत से अपने रोल करता है. दोनों दादा-पोते साथ-साथ मंच पर अपनी-अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं.
गुरुजी ने किया प्रेरित
निजामुउद्दीन करते हैं कि थियेटर तो मैं करता था लेकिन रम लीला करने के लिए मुझे मेरे गुरु मनोज सिंह ने प्रेरित किया. उन्होंने कहा कि तुम इतनी अच्छी अदाकारी कर लेते हो तो रामलीला क्यों नहीं कर लेते. बस, गुरुजी ने कहा और मैंने रामलीला का मंचन करना शुरू कर दिया.
इस रामलीला के आयोजक राकेश कन्नौजिया कहते हैं, “रामलीला में हमेशा से ही मुस्लिम कलाकारों ने अपनी कला का प्रदर्शन किया है. पहले दो-तीन कलाकार मुस्लिम हुआ करते थे लेकिन रोजी-रोटी कमाने के लिए वे बाहर चले गए तो निजामुद्दीन और उनका पोता अमन ही मंचन करता है. कभी कोई भेदभाव नहीं करता. वे सारे रामलीला के सभी धार्मिक कार्यक्रमों में हिस्सा लेते हैं.”
कलाकार मनोज सिंह कहते हैं कि इन दिनों देश में कई संवेदनशील मुद्दों को लेकर विषाक्त वातावरण बना हुआ है. स्वार्थी तत्वों द्वारा सांप्रदायिक वातावरण खराब करने के प्रयासों के बावजूद देश में लोगों का एक-दूसरे के प्रति व्यवहार बार.बार गवाही दे रहा है कि, हमारे भाईचारे के बंधन अटूट हैं. ऐसे दौर में आगरा कैंट स्थित अंटाघर की रामलीला हिंदू-मुस्लिम एकता की न सिर्फ मिसाल है बल्कि आपसी भाइचारे का गवाही भी दे रही है.