शंकर-शाद का 54 वां मुशायरामुनव्वर राना, गौहर रजा की शायरी से गुलजार, ' हौंसला रखो रात बीतेगी, देखना रोशनी ही जीतेगी '

Story by  मोहम्मद अकरम | Published by  [email protected] | Date 12-03-2023
शंकर-शाद का 54 वां मुशायरा: मुनव्वर राना, गौहर रजा की शायरी से रहा गुलजार
शंकर-शाद का 54 वां मुशायरा: मुनव्वर राना, गौहर रजा की शायरी से रहा गुलजार

 

मोहम्मद अकरम / नई दिल्ली

राजधानी दिल्ली के बाराखंबा स्थित मॉर्डन पब्लिक स्कूल में कोरोना काल के बाद मशहूर ‘’शंकर-शाद“ 54 वार्षिक मुशायरा की महफिल सजी. जिसमें देश के जाने माने शायरों ने शिरकत की.  उर्दू शायरी सुनने के लिए लोग उमड़ पड़े. 

कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाएं सुना कर श्रोताओं की दाद वसूली. इससे पहले मुशायरे की शुरुआत पारंपरिक शमा जला कर की गई. शमा रोशन में मुख्य अतिथि के तौर पर हिन्दी साहित्य के प्रमुख साहित्यकार, पूर्व प्रशासनिक अधिकारी अशोक वाजपेयी और पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी समेत कई लोग मौजूद रहे.
 
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इस अवसर पर अशोक वाजपेयी ने कहा कि उर्दू शायरी उम्मीद की शमा है. उर्दू उम्मीद और ख्वाब भी देता है. ये नायाब जबान है. मगर इस समय उर्दू जबान को खतरा है. नफरत के बाजार को हवा दी जा रही है, जिससे उर्दू को बचाना हम सब की जिम्मेदारी है.
 
हमें उर्दू बोलना है. उर्दू का दायरा जिंदगी नामा बनाता है. बड़ा शायर वह होता है जो अपने वक्त से आगे निकल कर चला जाता है. कविता और शायरी की शमा सदियों तक  जलती है.ग़ालिब और उर्दू शायरी के हवाले से अशोक वाजपेयी ने कहा कि उर्दू शायरी ज्यादातर निजामों पर की गई है. उर्दू जबान से ही ग़ज़ल गोई है. उन्होंने ग़ालिब का शेर पढ़ा.
 
ऐ पर तू ख़ुर्शीद ए जहां ताब इधर भी
साये की तरह हम पे अजब वक्त पड़ा है

शंकर-शाद मुशायरे की पारंम्परा को आगे बढ़ाते हुए मुशायरे की शुरुआत इम्तेयाज अहमद ने शंकर लाल शंकर और मुरलीधर शाद के पंक्ति को पेश की. उन्होंने ने शंकर लाल शंकर को पढ़ा:
 
इश्क को कोमयाब होना था
आपको बेनकाब होना था

इसके बाद मुशायरे कि महफिल को आगे बढ़ाते हुए संचालक  इकबाल अशहर ने वैज्ञानिक और शायर गौहर रजा को आवाज दी तो श्रोताओं ने तालियों से उनका स्वागत किया. गौहर रजा ने कहा, अदब समाज का आइना है उर्दू .अदब ये काम बखूबी कर रहा है. उन्होंने अपनी मशहूर रचना से शायरी शुरु की.
 
धर्म में लिपटी वतनपरस्ती क्या-क्या स्वांग रचाएगी, मसली कलियां झुलसा गुलशन ज़र्द खिजां दिखलाएगी
यूरोप जिस वहशत से अब भी सहमा-सहमा रहता है, खतरा है वो वहशत मेरे मुल्क में आग लगाएगी

जर्मन गैसकदों से अब तक खून की बदबू आती है, अंधी वतन परस्ती हमको उस रस्ते ले जाएगी

गौहर रजा ने मौजूदा समय को अपनी शायरी में जगह देते हुए पंक्ति पेश की:
 
ये मत खाओ वह मत पहनों इश्क तो बिल्कुल करना मत, देशद्ररोह की छाप तुम्हारे उपर भी लग जाएगी
ये मत भूलो अगली नस्ले रोशन शोला होती हैं, आग कूरेदोगे चिंगारी दामन तक आएगी

दिल्ली की रहने वाली युवा महिला कवित्रि पूनम यादव ने माइक थामते ही अपनी सुरेली आवाज में गीत और गज़ले पढ़ कर तालियां बटोरी:
 
तंहाई के इस आलम में आओ बादल, तू रोओ तो हम को साथ रुलाओ बादल
 
lighting lamp in mushayra
 
इसके बाद मां को शायरी में महबूब बनाने वाले और मां पर अब तक सबसे ज्यादा शेर कहने वाले मुनव्वर राना का नाम जैसे ही पुकारा गया तालियों की घगघड़ाहट से कुछ देर  महफिल गुंजता रही. लोगों ने उनसे उनकी मशहूर नज्म “मुहाजिर नामा” भी सुना. उन्होंने पढ़ा:
 
दुश्वार काम था खुद को समेटना, मैं खुद को बांधने में कई बार टूट गया
ये आंगन था मेरे घर का न जाने कितनी मुद्दत से, बुर्जुगों के गुजरते ही यहां कमरे निकल आए

तेरी आवाज पर जी चाहता है पलटने को, मगर ऐ जिंदगी अब हम बहुत आगे निकल आए।
 
“उर्दू है मेरा नाम मैं खुसरो की पहले” पढ़ कर शायरी की दुनिया में अलग मकाम पैदा करने वाले और कवि सम्मेलन के संचालक, दिल्ली अदबी रिवायतों के अमीर इकबाल अशहर ने गीत पेश की:
 
हौंसला रखो रात बीतेगी, देखना रोशनी ही जितेगी.
किसी को कांटों से चोट पहुंची किसी को फूलों ने मार डाला, जो इस मुसिबत से बच गए थे उन्हें उसूलों ने मार डाला.
मैं उठ गया हूं मोसल्ले से कुछ भी मांगे बगैर, मुझे लगा कि ये आंसू दुआ से बेहतर है

कई फिल्मों में गीत लिखने वाले युवाओं के दिलों की धड़कन अजहर इकबाल ने अपने अलग शायरी के अंदाज में पंक्तियां पेश की:
 
अपनी मर्यादों का गुणगान करते रह गए, देश हित में देश का नुकसान करते हर गए
परिंदों का शजर अच्छा लगा है, बहुत दिन बाद घर अच्छा लगा है.

तेरी कुर्बत की ख्वाहिश तो नहीं थी, तेरा मिलना तो अच्छा लगा है
 
“तारे जमीं पर” जैसी फिल्म लिखने वाले प्रशून जोशी ने पढ़ा:
 
खुल कर मुस्कुराले तो दर्द को शर्माने दे, बूंद को धरती पर साज बजाने दे

अपने दिल की आवाज को शायरी का हूनर बनाने वाली, भोपाल से तशरीफ लाई कवित्रि नुसरत मेहदी ने पढ़ी:
 
अक्ल को भूल जा कुछ देर तो नादानी कर, मसलहत छोड़ जरा इश्क में असानी कर
 
mushayra
 
पंजाब से तशरीफ लाए खुशबीर सिंह शाद ने पढ़ा:
 
सबब यही है मुझे पामाल करने का, के मैंने जुर्म किया है सवाल करने का
यहां थी सिर्फ इजाजत कसीदा ख्वानी की, कसूरवार हूं मैं यहां अर्ज हाल करने का

उनके अलावा राजस्थान से पहुंचे सरेंदा नेजाम, हास्य कवि पापूलर मेरठी, नुमान शौक, मीनू बख्शी, मेनू समेत कई शायरों ने देर रात तर अपनी पंक्तियां पेश का श्रोताओं के तालियां और वाह वाह बटोरी.