समी और वत्सलाः अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए,जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए

Story by  मुकुंद मिश्रा | Published by  [email protected] | Date 11-08-2022
समी आगाई को राखी बांधती वत्सला प्रभाकर
समी आगाई को राखी बांधती वत्सला प्रभाकर

 

फैजान खान /आगरा

रिश्ते केवल खून के नहीं होतेे. कई रिश्ते जमीन और हालात के बीच उभरते हैं, जो बाद में खूनी के रिश्तों को भी मात दे देते हैं. कुछ ऐसा ही रिश्ता  विख्यात कवि और मेरा नाम जोकर, मिली जैसी कई चर्चित फिल्मों के गीत लेखक गोपाली दास नीरज की बहू वत्सला प्रभाकर और आगरा के समाज सेवक समी आगाई का है.पिछले 14 वर्षों से वे एक दूसरे के न केवल मुंह बोले भाई-बहन हैं. एक दूसरे के सुख-दुुख के साथ भी हैं.

2008 में इनकी पहली मुलाकात पुलिस लाइन के परिवार परामर्श केंद्र पर हुई थी. बातचीत हुई. फिर बातचीत का यह सिलसिला ऐसा चला कि दोनों भाई-बहन एक दूसरे के काम आने के लिए हमेशा तैयार रहने लगे.
 
महाकवि गोपाल दास नीरज की बहू वत्सला प्रभाकर आगरा के बलकेश्वर में रहती हैं. वत्सला प्रभाकर के पति अरस्तू प्रभाकर एपैक्स बैंक के एमडी हैं और बेटा डॉ ओशो विश्व मोहन फिरोजाबाद जिला अस्पताल में तैनात हैं.
 
ओशो समी आगाई को मामा और आगाई के बच्चे वत्सला प्रभाकर कोबुआ से संबोधित करते हैं. इनके बच्चों में भी सगे भाई-बहन जैसा प्यार है.
 
वत्सला प्रभाकर बताती हैं कि हमारा रिश्ता किसी स्वार्थ के लिए नहीं, हकीकत मंे भाई-बहन वाला है. हमारे परिवारों में बड़ी मुहब्बत है. आवाज द वॉयस से बातचीत में वह कहती हैं- रिश्ते केवल खून के नहीं,  इंसानियत के भी बहुत गहरे और मजबूत रिश्ते होते हैं.
 
बताती हैं-जब रक्षा बंधन आता है, या तो मैं समी भाई के घर चली जाती हूं या वो घर आ जाते हैं. वह उसी तरह हमारे परिवार को इज्जत देते हैं, जैसे एक बहन और बहन के ससुरालीजनों को देते हैं. 
 
वत्सला प्रभाकर ने बताया समी भाई मुसीबत में भी हर दम परिवार के लिए खड़े रहते हैं. इसकी मिसाल देते हुए उन्होंने एक घटना सुनाई. बोलीं-चार साल पहले मेरे पति की तबियत अचानक बिगड़ गई.
 
उन्हें अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा. मैं बहुत परेशान थी.समी आगाई को पता चला तो वह मिलने आए. फिर निरंतर खैरियात लेने के लिए अस्पताल आने लगे. इस बीच उन्होंने पति की सेहत में सुधार के लिए जगह-जगह कुरआन की तिलावत करवाई.
 
कई जगहों से पानी पढ़वाकर लाए.   उनकी दुओं और डॉक्टर की दवा दोनों ने ऐसा काम किया कि आज मेरे पति बिल्कुल सेहतमंद हैं. उन्होंने कहा कि हमारे परिवार में हमारे पिता यानी ससुर साहब महाकवि गोपाल दास नीरज ने कभी ये शिक्षा  नहीं कि कौन हिंदू और कौन मुस्लिम.
 
सिर्फ ये सिखाया कि इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है. आज भी मैं समी आगाई के अलावा सैयद इरफान सलीम, डॉ सिराज और बुंदन मियां को अपने भाई जैसा इज्जत देती हूं. वे भी मुझे दीदी कहते नहीं थकते. इनके रिश्तों पर महाकवि नीरज का यह शेर बेह मौजू है-
 
औरों का धन सोना-चांदी,अपना धन तो प्यार रहा !

दिल से जो दिल का होता है,वो अपना व्यापार रहा !!
 
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एक पारिवारिक कार्यक्रम में महिला उद्यमी रंजना बंसल के साथ समी आगाई व गोपाल दास नीरज के बड़े बेटे अरस्तू प्रभाकर (पीछे पीले स्वेटर में) तो शशांक प्रभाकर (आगे काले कोट में)

बहस ने बना दिया भाई-बहन

डॉक्टर वत्सला प्रभाकर को पिछले 14 सालों से राखी बांध रहे समी आगाई ने बताया कि ये जरूरी नहीं कि आपके रिश्ते सिर्फ खूनी के ही हों. इंसानियत और मुहब्बत भी अपने रिश्ते बना लेता है.
 
उन्होंने बताया कि हमारी मुलाकात पुलिस लाइन में परिवार परामर्श केंद्र पर हुई थी. हम दोनों काउंसलर थे. एक दिन कुछ लोगों ने हिंदू-मुस्लिम की बहस छेड़ दी, जिस पर दीदी वत्सला प्रभाकर ने कहा कि मैं इन बातों को नहीं मानती.
 
मेरे लिए जितने हिंदू प्यारे हैं, उतने मुस्लिम. सबसे बड़ा मजहब इंसानियत का है. बस, वहीं से उनसे प्रभावित हुआ और काउंसर से दोनों में भाई-बहन का रिश्ता बन गया.
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गोपाल दास नीरज के पार्थि शरीर के पास खड़े आगाई

मुझे बहुत इज्जत के साथ प्यार भी देती हैं. मैं उनके घर के सदस्य जैसा हूं. हम पिछले 14 सालों से राखी बांधते आ रहे हैं. हर तीज-त्योहार पर एक-दूसरे के घर आना जाना है.
 
सुखदुख में दोनों का परिवार एक साथ खड़ा रहता है.19 जुलाई 2018 को जब महाकवि नीरज इस दुनिया से सदा के लिए कूच कर गए तब भी उनके अंतिम संस्कार में मैंन खड़ा रहा.
 
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गोपालदास नीरज की पुण्यतिथि पर वत्सला प्रभाकर के निवास पर आयोजित कवि सम्मेलन के आयोजन में भी आगाई आगे-आगे रहे. महाकवि नीरज की चर्चित पंक्तियां हैं-
 
अब तो मजहब कोई ऐसा भी चलाया जाए,

जिस में इंसान को इंसान बनाया जाए