ओवैसी खानदान की देश में है अलग पहचान

Story by  एटीवी | Published by  [email protected] | Date 03-12-2021
पूर्व प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने एमआईएम दारुस्सलाम हैदराबाद का दौरा किया था. उस मौके पर सलाहुद्दीन ओवैसी भी मौजूद थे.
पूर्व प्रधानमंत्री  इंदिरा गांधी ने एमआईएम दारुस्सलाम हैदराबाद का दौरा किया था. उस मौके पर सलाहुद्दीन ओवैसी भी मौजूद थे.

 

विशेष संवाददाता / हैदराबाद

भारत में ओवैसी परिवार किसी परिचय का मोहताज नहीं. इस परिवार ने हमेशा देश और मुसलमानों के उत्थान के लिए काम किया है. मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी और उनके बेटे अल्हाज सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी, वरिष्ठ सांसद और ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन के पूर्व अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी और परिवार के बाकी सदस्य आज भी इसी काम में दिल-ओ-जान से जुटे हैं.

ओवैसी परिवार 60 वर्षों से राजनीतिक दल ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन का नेतृत्व कर रहा है.ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन के मुख्यालय को दारुस्सलाम कहा जाता है, जो हैदराबाद के आगापुरा में स्थित है.ओवैसी परिवार की सेवाएं हैदराबाद के लोगों के लिए आदर्श हैं. इसे कभी भुलाया नहीं जा सकता.

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ओवैसी परिवार

मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी ने दक्कन के मुसलमानों में दृढ़ संकल्प पैदा किया, जबकि सालार मिल्लत ने एक राजनीतिक केंद्र के बैनर तले मुसलमानों को एकजुट किया. मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी और सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी का जीवन निरंतर संघर्ष भरा रहा है.

उन्होंने अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा के लिए बहुत कुछ किया और इसको लेकर अभी भी परिवार का हर फर्द सक्रिय है. इस मिशन का नेतृत्व परिवार के सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी के तीन होनहार बेटे कर रहे हैं.

इनमें एक हैं बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी, जिन्हें ‘नकीब मिल्लत‘ कहा जाता है. वह ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन के अध्यक्ष और हैदराबाद से सांसद हैं.उनके बाद तेलंगाना विधानसभा के सदस्य अकबरुद्दीन ओवैसी हैं. हालांकि यह अपने विवादास्पद बयानों के लिए भी जाने जाते हैं.


तीसरे बेटे बुरहानुद्दीन ओवैसी हैं, जो उर्दू दैनिक एतमाद के प्रधान संपादक हैं. वह बड़े करीने से अखबार को आगे बढ़ा रहे हैं.बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी को पूरे देश में निडर और लोकप्रिय नेता के रूप में जाना जाता है.


उनके नेतृत्व में मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुसलमीन की राजनीतिक शक्ति और लोकप्रियता निरंतर बढ़ रही है.मजलिस के प्रतिनिधि महाराष्ट्र और बिहार की विधानसभाओं में मौजूद हैं.

गुजरा सहित कई प्रदेशों के निकाय चुनावों में भी पार्टी को कामयाबी मिली है.

पार्टी की ओर से

लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व औरंगाबाद से इम्तियाज जलील करते हैं. तेलंगाना विधानसभा में सात सदस्य हैं, जबकि विधान परिषद में दो हैं.मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी एक साहसी व्यक्तित्व रहे हैं.

वह न्यायविद थे. जामिया निजामिया से स्नातक होने के बाद, इस्लामी शिक्षाओं में पारंगत हुए .उन्होंने 1958में बहुत ही महत्वपूर्ण और कठिन समय में मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन का गठन किया.

देश विभाजन और हैदराबाद स्टेट के पतन के बाद मुसलमानों की स्थिति अत्यंत अराजक हो गई थी. मुसलमान भय और हीन भावना से ग्रस्त था.ऐसे हालात में लोगों को निराशा से बाहर निकालने का श्रेय मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी को जाता है.

उन्होंने अपने भाषणों के माध्यम से मुसलमानों में दृढ़ संकल्प और उत्साह पैदा किया. मुसलमान मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी की राजनीतिक ताकत के लिए उनके ऋणी रहे हैं.मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी के भाषणों को देश लोग खूब सराहते थे. हालांकि परिवार का मौजूदा जनरेशन भी वाक्पटु माना जाता है.

आजादी के बाद जब परिवार का सब कुछ खत्म हो गया था. ऐसे परेशान और कठिन समय में, वाहिद ओवैसी ने नेतृत्व की बागडोर संभाली. मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी ने राष्ट्र से बिना किसी डर या खतरे के एकजुट होने का आह्वान किया. तब देश को निराशा से बाहर निकालना और उन्हें एकजुट करना किसी चुनौती से कम नहीं था.


इस दौरान उन्हें तरह-तरह की साजिशों, विरोधों और समस्याओं का सामना करना पड़ा. मगर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी. इसके विपरीत वह दिन-रात साहस और जोश के साथ काम करते रहे. उन्हें 11महीने सलाखों के पीछे भी बिताए. लेकिन दृढ़ संकल्प और उत्साह में किसी कोई कमीनहीं आई. मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी नेकानूनी लड़ाई से दारूस्सलाम हासिल किया.


दरअसल, 1969में अलग तेलंगाना के लिए आंदोलन जोरों पर था. मजलिस का मुख्यालय दारुस्सलाम, सरकार के कब्जे में चला गया था. इससे संबंधित मामला सिटी सियोल कोर्ट में लंबित था.

उन्होंने खुद मामले को आगे बढ़ाया. लंबी कानूनी लड़ाई के बाद, कोर्ट ने  दारुस्सलाम को लेकर मजलिस के पक्ष में फैसला सुनाया.

मौत की त्रासदी

जब मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी ने 1975में हज की पूरी तैयारी की हुई थी.रिश्तेदारों और दोस्तों मिल रहे थे. वह हिम्मत नगर स्थित अपने आवास से हज के लिए निकलने वाले ही थे कि दिल का दौरा पड़ने से देहांत हो गया. अगले दिन उनके पार्थिव शरीर के दर्शन को दारुस्सालम में लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी.

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सालार मिल्लत सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी

मौलवी अब्दुल वाहिद ओवैसी की मृत्यु के बाद, उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने मजलिस-ए-इत्तेहाद-ए-मुस्लिमीन की अध्यक्षता संभाली. अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए, उन्होंने राष्ट्र की अद्वितीय सेवा की.सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी मजलिस को निगम से लेकर देश की विधानसभा और संसद तक ले गए.


सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी का करीब 60साल का राजनीतिक और सार्वजनिक जीवन इतिहास रच रहा है.सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी को भारत के प्रमुख राजनेताओं में से एक माना जाता है. हैदराबाद शहर में शैक्षिक क्रांति के अग्रदूत के रूप में, उनके द्वारा किए गए उल्लेखनीय कार्यों को भुलाया नहीं जा सकता. दक्कन मेडिकल कॉलेज और बड़े पैमाने पर शैक्षणिक संस्थान की स्थापना सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी एक बड़ी उपलब्धि है.


एकता और सद्भाव

सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी एक सार्वभौमिक व्यक्तित्व थे. वह हमेशा राष्ट्र में एकता और सद्भाव के लिए चिंतित रहे.इसीलिए जिलों में भी मजलिस की बड़े पैमाने पर शाखाएं स्थापित की गईं. वे एक दृढ़ निश्चयी और उत्साही नेता रहे हैं.

हैदराबादी कहते हैं कि उन्होंने सिर पर नहीं, बल्कि लोगों के दिलों पर राज किया, इसलिए उन्हें ‘सालार मिल्लत‘ की उपाधि दी गई.उन्होंने धर्म की परवाह किए बिना मानवता की सेवा की.वे सभी वर्गों के साथ आगे बढ़ने में विश्वास रखते थे.

उन्होंने प्रकाश राव, सत्य नारायण और आलम पाली पोचिया को हैदराबाद के मेयर की प्रतिष्ठित सीट के लिए चुना. तथ्य यह है कि उन्होंने लोगों की आशाओं और सपनों को व्यक्त किया. वे एक लोकप्रिय नेता थे.

शैक्षणिक एवं चिकित्सा संस्थानों की स्थापना

सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी मुसलमानों को एकजुट करना और उन्हें शिक्षा देना चाहते थे. इसीलिए उन्होंने एक व्यवस्थित और नियोजित रणनीति के साथ काम किया. हैदराबाद शहर में बड़े पैमाने पर शिक्षण संस्थानों की स्थापना की.

डेक्कन मेडिकल कॉलेज, डेक्कन इंजीनियरिंग कॉलेज, डेक्कन फार्मेसी कॉलेज, नर्सिंग कॉलेज, एमसीए, एमबीए कॉलेज और अन्य शैक्षणिक संस्थानों की शानदार इमारतें उनकी महान शैक्षिक सेवाओं के साक्षी हैं. इन महाविद्यालयों से आज हजारों छात्र लाभान्वित हो रहे हैं.

दारुस्सलाम एजुकेशनल ट्रस्ट के तहत काम करने वाले जाने-माने ओवैसी ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स को किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है.ओवैसी अस्पताल और अनुसंधान केंद्र, कंचन बाग, संतोष नगर, हैदराबाद और राजकुमारी इसरा अस्पताल, शाह अली बांदा चिकित्सा क्षेत्र में क्रांति के अग्रदूत हैं. ओवैसी अस्पताल एशिया के सबसे बड़े फार्मेसियों में से एक है.

राजनीतिक जीवन

सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी का राजनीतिक जीवन बहुत लंबा है.वह पहले नगर निगम के लिए चुने गए थे. बाद में वे पांच बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए.सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी पहली बार 1984 में लोकसभा के लिए चुने गए और 1999 तक सफल रहे.उन्होंने हैदराबाद के लोकसभा क्षेत्र का लगातार छह बार प्रतिनिधित्व किया.

वह उर्दू में अपने विचार व्यक्त करते थे. अपने राजनीतिक जीवन के दौरान, उन्होंने चुनावों में कई प्रमुख राजनीतिक नेताओं को हराया. जनता उन्हें बहुत प्यार करती थी.

सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी की मृत्यु

सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी का 77 वर्ष की आयु में निधन हो गया.इस प्रकार, भारत के राजनीतिक क्षितिज पर, पिछले 60वर्षों से उज्ज्वल सूरज, अपने पूरे वातावरण के साथ, 29 रमजान, 2008 को हमेशा के लिए अस्त हो गया. रमजान के 30 वें दिन,  दारुस्सलाम के विशाल चैक  पर नमाज-ए-जनाजा  अदा की गई. जिसमें प्रमुख राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक नेताओं के अलावा, हजारों लोगों ने भाग लिया.

हजारों मातम मनाने वालों की मौजूदगी में अघापुरा के हजरत अबुल अलाई दरगाह के प्रांगण में सालार मिल्लत के शव को गीली आंखों से दफना दिया गया. सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी के कार्य अविस्मरणीय हैं.वह अब दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका नाम और कार्य हमेशा याद किया जाएगा.

बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी

बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी का जन्म 1969में हैदराबाद में हुआ था. उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा हैदराबाद में प्राप्त की. बाद में वे उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए यूनाइटेड किंगडम चले गए, जहां उन्होंने बैरिस्टर की डिग्री प्राप्त की.बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की शादी 1996में हुई थी.


उनकी पांच बेटियां और एक बेटा 11वर्षीय मास्टर सलाहुद्दीन ओवैसी है. बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी की सबसे बड़ी बेटी की शादी नवाब अहमद आलम खान के बेटे नवाब बरकत आलम खान से हुई है. दूसरी लड़की की शादी डॉ. मजहरुद्दीन अली खान के बेटे डॉ. आबिद अली खान से हुई है.


अपने पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी की मृत्यु के बाद, बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी एआईएमआईएम के  अध्यक्ष बने. हाल के दिनों में ओवैसी ने अपनी सियासत का दायरा बढ़ाया है. उन प्रदेशों में भी सियासी हाथ-पैर मार रहे हैं, जहां उनकी पार्टी का धरातल पर कुछ भी है.

असदुद्दीन ओवैसी ने अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत 1994में की थी. वह पहली बार चारमीनार निर्वाचन क्षेत्र से चुने गए थे. 1999 में उन्होंने फिर से उसी निर्वाचन क्षेत्र से भारी बहुमत से जीत हासिल की.

2004 में बैरिस्टर ओवैसी ने हैदराबाद के लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की.तब से वह लोकसभा क्षेत्र में हैदराबाद निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.दलित-मुस्लिम एकता के लिए सक्रिय रहे बैरिस्टर ओवैसी, देश में जहां कहीं भी जुल्म होता है, सबसे पहले दलितों के पक्ष में आवाज उठाते हैं.

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सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी के नक्शेकदम पर


बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी ने निस्संदेह अपने पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी के नक्शेकदम पर चलने वाले लोगों के लिए खुद को समर्पित कर दिया है.बैरिस्टर ओवैसी की अध्यक्षता में मजलिस की लोकप्रियता लगातार बढ़ रही है.असद ओवैसी ने देश के अन्य राज्यों में मजलिस की गतिविधियों का विस्तार किया.

महाराष्ट्र और बिहार विधानसभाओं में मजलिस प्रतिनिधियों की उपस्थिति बैरिस्टर ओवैसी की कड़ी मेहनत और प्रयासों का परिणाम है.

वे मुसलमानों को राजनीतिक रूप से सशक्त देखना चाहते हैं. बैरिस्टर ओवैसी जय भीम और जय मीम के नारों के साथ आगे बढ़ रहे हैं. हालांकि उत्तर प्रदेश के लिए उन्हांेने जिस दलित पार्टी से समझौता किया था वह आईएमआईएम को छोड़कर सपा के साथ चली गई है. ओवैसी पर बीजेपी के बी टीम होने का भी आरोप लगता रहा है.

 अकबरुद्दीन ओवैसी

बैरिस्टर असदुद्दीन ओवैसी के छोटे भाई अकबरुद्दीन ओवैसी हैं, लेकिन वह अपने बयानों को लेकर अक्सर सुर्खियों में रहे हैं.फिर भी, मजलिस के शैक्षणिक संस्थानों के विकास और प्रचार के लिए अकबर ओवैसी की सेवाएं अविस्मरणीय हैं.

अकबर ओवैसी का राजनीतिक जीवन 1999 में शुरू हुआ. अकबर ओवैसी ने पहली बार चंद्रैन गुट्टा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा और शानदार जीत हासिल की.तब से आज तक वह विधानसभा क्षेत्र में चंद्रायन गुट्टा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.अकबरुद्दीन ओवैसी अपनी दरियादिली और दरियादिली के लिए जाने जाते हैं. चाहे बाढ़ हो या कोई अन्य आपदा, कोरोना का संकट हो या दंगे, वे तुरंत पीड़ितों तक पहुंचते हैं.


अकबरुद्दीन ओवैसी जरूरतमंदों की मदद करते हैं. कोरोना लॉकडाउन के दौरान, जरूरतमंदों के बीच करोड़ों रुपये वितरित किए. इसके अलावा, अकबर ओवैसी ने हैदराबाद के बाढ़ पीड़ितों की भी उदारता से मदद की. के-लॉकडाउन से परेशान शिक्षकों और वीडियोग्राफरों ने धर्म और राष्ट्रीयता की परवाह किए बिना सभी जरूरतमंदों की मदद की.


अकबरुद्दीन ओवैसी ने हैदराबाद में विभिन्न स्थानों पर ओवैसी स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की स्थापना की है.स्कूलों में विशाल और ऊंचे और शानदार भवन हैं, जहां गरीब छात्रों को कॉर्पोरेट शैली की शिक्षा मुफ्त प्रदान की जाती है.स्कूलों पर करोड़ों रुपये खर्च किए जा चुके हैं.

ओवैसी स्कूल ऑफ एक्सीलेंस में 20,000 से अधिक छात्र मुफ्त गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं.विभिन्न तकनीकी पाठ्यक्रमों के छात्रों के लिए एक निःशुल्क प्रशिक्षण पाठ्यक्रम भी है.

अकबरुद्दीन ओवैसी ने छात्रों को ज्ञान और कौशल के आभूषणों से अलंकृत करने का कार्य किया है और दिन-रात सेवा करने का उत्कृष्ट रिकॉर्ड है.अकबरुद्दीन ओवैसी के बेटे नूरुद्दीन ओवैसी एक डॉक्टर हैं, जबकि उनकी बेटी यूके में कानून की उच्च शिक्षा प्राप्त कर रही है.

हैदराबाद में ओवैसी परिवार की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति को कोई नकार नहीं सकता. अब, जिस तरह से असदुद्दीन ओवैसी ने राष्ट्रीय राजनीति में अपनी पहचान बनाई है और अपनी योग्यता साबित की है, उसने उनके विरोधियों को भी उनकी योग्यता और योग्यता को स्वीकार करने के लिए मजबूर कर दिया है.