मुस्लिम कारीगर बना रहे कांवड़, बनीं कांवड़ियों के कंधों की रौनक

Story by  राकेश चौरासिया | Published by  [email protected] | Date 16-07-2022
मुस्लिम कारीगर बना रहे कांवड़, बनीं कांवड़ियों के कंधों की रौनक
मुस्लिम कारीगर बना रहे कांवड़, बनीं कांवड़ियों के कंधों की रौनक

 

हरिद्वार.

शिव भक्तों का सबसे बड़ा पर्व शुरू हो गया है, लाखों-करोड़ों श्रद्धालुओं का सफर शुरू हो गया है. इस त्योहार के पीछे एक बड़ी कहानी यह है कि कांवड़ को बनाने वाले 90 प्रतिषत कारीगर मुसलमान हैं. जिनके लिए कांवड़ बनाना रोजगार का सबसे बड़ा जरिया है.

इस धार्मिक यात्रा के शुरू होने के कई महीने पहले से ही कांवड़ की तैयारियां शुरू हो जाती हैं और यात्रा शुरू होने के बाद इन कारीगरों की खुशी खत्म नहीं होती है. ये कारीगर कहते हैं कि कांवड़ तीर्थयात्रा वास्तव में उनके लिए रोजगार देती है, जो उनके जीवन की प्रमुख समस्याओं को हल करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है.

कांवड़ का यह त्योहार हिंदू-मुस्लिम एकता, भाईचारे और सद्भाव का संदेश भी देता है. त्योहार के दौरान बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय त्योहार से पहले शिव भक्तों के लिए कांवड़ तैयार कर रहे हैं.

कांवड़ बनाने का हुनर मुस्लिम परिवारों के बच्चों को विरासत में मिला है. घर के बड़े-बुजुर्गों से लेकर महिलाएं और बच्चे भी महीनों पहले दिन-रात काम करते हैं. कांवड़ियों के कंधों पर जो कांवड़ दिखाई दे रही है, इन्हें बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा बनाया और बेचा जाता है. हरिद्वार में ये मुस्लिम परिवार पिछले कई दशकों से कांवड़ बना रहे हैं.

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कांवड़िया सावन शुरू होने से कुछ दिन पहले ही तीर्थ यात्रा की तैयारी करते हैं, लेकिन मुसलमान इस तीर्थयात्रा की तैयारी महीनों पहले से शुरू कर देते हैं. कांविड़या मुस्लिम समुदाय द्वारा बनाए गई कांवड़ों में हरिद्वार से गंगा जल भर कर अपने घरों को भोले बाबा के भजन गाते हुए रवाना होते हैं और सावन के सोमवार को अपने गांव-मोहल्ले के मंदिरों में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं. 

दो साल तक कोरोना महामारी का असर अन्य कारोबारों के साथ-साथ कांवड़ के कारोबार पर भी बहुत गहरा रहा, लेकिन इस बार इस कारोबार से जुड़े मुस्लिम समुदाय के लोगों को न सिर्फ इस त्योहार से काफी उम्मीदें थीं, बल्कि उनका मानना है कि इस बार कांवड़ का काम पिछले वर्षों की तुलना में बेहतर होगा. मांग में भी उल्लेखनीय वृद्धि हुई है. कांवड़ का उत्पादन उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, दिल्ली समेत कई राज्यों में होता है और बिक्री के लिए हरिद्वार आता है.

हरिद्वार के ज्वालापुर इलाके में करीब 450 मुस्लिम परिवार हैं, जो कांवड़ कारोबार से जुड़े हैं. इन परिवारों के बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक लगभग पूरे साल कांवड़ की की तैयारी में काम करते हैं. करीब एक महीने पहले ज्वालापुर में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने कांवड़ बनाने की तैयारी शुरू कर दी थी.

यहां ज्वालापुर की लाल मंदिर कॉलोनी निवासी सिकंदर और उसका भाई वर्षों से कंवर बना रहे थे. सिकंदर के परिवार के अलावा, सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, बिजनौर और मेरठ के साथ-साथ कई अन्य जिलों के मुस्लिम कारीगर हरिद्वार पहुंचे और कांवड़ बनाने लगे. अब उनकी मेहनत कांवड़ तीर्थयात्रियों के कंधों पर देखी जा रही है.

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देश का माहौल कैसा भी हो, लेकिन कांवड़यात्रा के जज्बे पर इसका कोई असर नहीं है. धर्मनगरी हमेशा से गंगा-जमुनी सभ्यता के लिए प्रसिद्ध रही है. हरिद्वार में हिंदू आस्था का ऐसा कोई त्योहार नहीं है, जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल नहीं होते हैं. अब सावन की कांवड़ यात्रा शुरू हो गई है, तो मुस्लिम कारीगर कावंड़ तैयार कर रहे हैं. 14 जुलाई से शुरू हुई कांवड़ यात्रा को लेकर शिव भक्तों में जितना उत्साह है, उतना मुस्लिम समुदाय के लोगों में भी है.

तीसरी पीढ़ी का रोजगार

साल के बाकी दिनों में दिहाड़ी पर काम करने वाले मजदूर सुबह से शाम तक कांवड़ बना रहे थे. सिकंदर अहमद ने बताया कि उनके पिता सादी हुसैन ने करीब पचास साल पहले कांवड़ बनाने का काम शुरू किया था. जबकि उससे पहले उनके दादा भी यही काम करते थे. डेढ़ साल पहले पिता की मौत हो गई. अब वह और उसके भाई नईम प्रधान, बबलू, राशिद, साजिद और महबूब यह काम कर रहे हैं.

कोई भेदभाव नहीं

सिकंदर ने जुवालापुर में कांवड़ बनाने के बाद हरिद्वार के कांवड़ बाजार में दुकान लगाई है. सिकंदर का कहना है कि साढ़े तीन दशक में कोई भेदभाव नहीं देखा गया. कांवड़ खरीदने वाले भी कभी धर्म नहीं पूछते.

इसी तरह पिछले 20 साल से कांवड़ बना रहे कारीगर मोहम्मद फरमान का कहना है कि हरिद्वार में ज्यादातर कांवड़ उत्तर प्रदेश से आते हैं. कभी किसी तरह का रहस्य महसूस नहीं हुआ.

मुझे सम्मान मिला. इस बार जब मुख्यमंत्री योगी का बयान आया कि इस बार कांवड़ यात्रा चलेगी, तो उन्हें काफी राहत मिली, जिसके बाद हमने परिवार के साथ कंवर बनाना शुरू किया.

कांवड़ बनाने वाले लोगों का मानना है कि इस बार चार महीने की देरी हुई, जिसके कारण अब उन्हें कांवड़ बनाने के लिए दिन-रात मेहनत करनी पड़ रही है. इन कांवड़ बनाने वाले परिवारों में जैसे ही बच्चा बड़ा होता है, 

वह किसी न किसी रूप में कांवड़ बनाना शुरू कर देता है. यही कारण है कि जब वह बड़ा होता है, तो एक अच्छा कारीगर बन जाता है. उन्होंने कहा कि यह हमारी पारिवारिक कला है और भविष्य भी.