-फ़िरदौस ख़ान
ईश निन्दा की ख़बरें अकसर सुनने को मिलती रहती हैं. इस्लाम और अल्लाह के आख़िरी नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की शान में ग़ुस्ताख़ी करने पर मज़हब के कुछ अलमबरदार मुल्ज़िम का सिर क़लम कर देने का फ़रमान सुना देते हैं और ऐसा करने वाले को ईनाम देने का भी ऐलान किया जाता है. क्या यही इस्लाम है ? बेशक नहीं. यह इस्लाम क़तई नहीं है, लेकिन ग़ैर मुस्लिम तो इसे ही इस्लाम या इस्लाम का हिस्सा मानेंगे.
दरअसल ऐसे लोग जानते ही नहीं हैं कि इस्लाम क्या है और अल्लाह का हुक्म क्या है, अल्लाह के नबी हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम का पैग़ाम क्या है? वे तो महज़ अपने ज़ाती फ़ायदे के लिए मज़हब के नाम का इस्तेमाल करना ही जानते हैं.
क़ुरआन करीम में अल्लाह तआला फ़रमाता है- “जिसने किसी को बग़ैर क़सास के यानी जान के बदले में जान और ज़मीन में फ़साद फैलाने की सज़ा के बग़ैर नाहक़ क़त्ल कर दिया, तो गोया उसने सब लोगों को क़त्ल कर दिया. और जिसने उसे नाहक़ क़त्ल होने से बचाकर ज़िन्दा रखा, तो गोया उसने सब लोगों को ज़िन्दा रखा.(क़ुरआन 5:32)
हक़ीक़त में अल्लाह के रसूल हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम सरापा रहमत हैं. आपकी ज़िन्दगी इसकी मिसाल है. ऐसे बहुत से वाक़ियात हैं, जब आपने अपने दुश्मनों तक को माफ़ कर दिया. हिन्दा ने आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के चहीते चचा हज़रत हमज़ा रज़ियल्लाहु अन्हु का कलेजा चबा लिया था.
इसी हिन्दा को आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने माफ़ कर दिया था. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को भी इसकी तरग़ीब दिया करते थे. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अगर झुक जाने से तुम्हारी इज़्ज़त कम होती है, तो क़यामत के दिन मुझसे ले लेना.”(सही मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने दुश्मनों और विरोधियों का भी बुरा नहीं चाहते थे. हज़रत अबू हुरैरह रज़ियल्लाहु अन्हु फ़रमाते हैं कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से मुशरिकों के लिए बद्दुआ करने की दरख़्वास्त की गई, तो आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने इरशाद फ़रमाया- “मुझे लानत करने वाला बनाकर नहीं भेजा गया, मुझे सिर्फ़ रहमत बनाकर भेजा गया है.”(सही मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने रिश्तेदारों की तरह ही अपने पड़ौसियों का भी बेहद ख़्याल रखा करते थे. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया है कि अगर पड़ौसी तुम्हें अपनी मदद के लिए पुकारे तो उसकी मदद को पहुंचो, उधार मांगे तो उसे उधार दे दो, ज़रूरतमंद हो तो उसकी ज़रूरत को पूरा करो, उसे कोई ख़ुशी नसीब हो तो उसे मुबारकबाद दो, वह बीमार हो जाए तो उसे देखने जाओ, कोई ग़म या मुसीबत आन पड़े तो उसे तसल्ली दो.
अगर उसकी मौत हो जाए तो उसकी मैयत में शामिल हो और अपने घर की दीवारें इतनी ऊंची न करो कि उसके घर में धूप और हवा जाना बंद हो जाए, जब तक कि वह इजाज़त न दे दे. अगर तुम कोई फल ख़रीद कर लाओ, तो कुछ फल उसके यहां भी भिजवा दो. और अगर ऐसा नहीं कर सकते हो, तो फिर उन्हें छिपाकर अपने घर में ले जाओ और तुम्हारे बच्चे उन्हें बाहर लेकर न निकलें, ताकि उसके बच्चों को अफ़सोस न हो और अपने ख़ुशबूदार खानों से उसे दुखी न करो. उसमें से कुछ उसके घर भी भिजवा दो. (बेहरुल अनवार)
अबूज़र ग़फ़्फ़ारी रज़ियल्लाहु अन्हु का बयान है कि आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने उन्हें नसीहत दी कि अबूज़र शोरबा पकाओ, तो उसमें पानी बढ़ा दिया करो और उससे अपने हमसायों यानी पड़ौसियों की ख़बरगिरी करते रहो यानी उसमें से अपने हमसाये को भी कुछ दे दिया करो. (सही मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को मेहनतकशों से भी बहुत हमदर्दी थी. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “मज़दूर की मज़दूरी उसका पसीना सूखने से पहले दे दो.” (सही मुस्लिम)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “आदमी के गुनाहगार होने के लिए यही काफ़ी है कि वह अपने मातहतों की रोज़ी रोक कर रखे.” (सुनन इब्ने माजा)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया - “मैं क़यामत के दिन उस शख़्स के मुक़ाबिल रहूंगा, जो मज़दूर से पूरा काम ले और उसकी मज़दूरी न दे.” (सही बुख़ारी)
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के दिल में यतीमों और मिस्कीनों के लिए बहुत रहम था. एक बार का वाक़िया है कि एक यतीम लड़का आपके पास आया और शिकायत की कि सहाबा अबू लुबाबा रज़ियल्लाहु अन्हु ने उसका ताड़ का दरख़्त उससे छीन लिया है.
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को सहाबा बहुत अज़ीज़ थे. आपने तफ़तीश कराने के बाद पाया कि यह दरख़्त तो सहाबा का ही है और आपने सहाबा के हक़ में फ़ैसला सुना दिया. यह दरख़्त लड़के के लिए सबकुछ था. आपने सहाबा से गुज़ारिश की कि वे यह दरख़्त लड़के को वापस कर दें. इस तरह आपने इंसाफ़ भी किया और साथ में यतीम की मदद भी की.
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम लोगों को उन कामों से रोकते थे, जिससे किसी को तकलीफ़ पहुंचे. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “किसी का पानी कभी न रोको, क्योंकि ये गुनाह है.”आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अगर तुम्हारे पास सिर्फ़ वुज़ू करने के लिए पानी है और तुम्हारे सामने एक प्यासा कुत्ता हो, तो वह पानी उसे पिला दो.”
आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया- “अगर कोई शख़्स रेगिस्तान में कुआं खोदता है, तो उसे इसका हक़ हरगिज़ नहीं कि वह उस कुएं से किसी जानवर को पानी पीने से रोक दे’’आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम अपने वादे के सच्चे थे.
एक बार का वाक़िया है कि एक ईसाई शख़्स ने आपसे कहा कि आप यहीं खड़े रहें, मैं अभी आता हूं. वह शख़्स घर जाकर भूल गया. आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम तीन दिन और तीन रातों तक उसका इंतज़ार करते रहे. तीन बाद किसी काम से वह वहां से गुज़रा तो आपको वहीं खड़ा हुआ पाया. उसे अपनी भूल का अहसास हुआ और उसने आपसे माफ़ी मांगी.
इस्लाम के आलोचक अकसर आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के कई विवाह करने पर सवाल उठाते हैं. बिना सच जाने विरोध करने का मतलब सिर्फ़ ‘विरोध के लिए विरोध करना’ ही होता है. आप आप सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने पहला निकाह ख़ुद से तक़रीबन दोगुनी उम्र की हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने किया था.
वे दो बार की विधवा थीं. निकाह का पैग़ाम हज़रत ख़दीजा रज़ियल्लाहु अन्हा ने ही भेजा था, जिसे आपने क़ुबूल कर लिया. आपने बाक़ी के निकाह 55साल की उम्र के बाद किए. आपकी बीवियों में सिर्फ़ हज़रत आयशा रज़ियल्लाहु अन्हा ही कुंआरी थीं, बाक़ी बीवियां विधवा और तलाक़शुदा थीं.
आपके अनेक निकाह करने की कई वजहें थीं. इनमें से एक वजह यह भी थी कि आपने समाज में विधवाओं और तलाक़शुदा महिलाओं के फिर से घर बसाने और इज़्ज़त की ज़िन्दगी बसर करने को बढ़ावा दिया. हक़ीक़त तो यही है कि इस्लाम सलामती का मज़हब है, अमन का मज़हब है और हज़रत मुहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम कुल कायनात के लिए रहमत हैं.
(लेखिका आलिमा हैं. उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)