नई दिल्ली. देश-दुनिया में चैत्र नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की आराधना की गई. मंदिरों, संस्थानों और घरों में लोगों ने मां ब्रह्मचारिणी का विधानपूर्वक पूजन किया और उपवास रखा.
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के हाथों में अक्षमाला और कमंडल सुसज्जित हैं. इन्हें चमेली का पुष्प प्रिय है. बिना सवार के ही मां नंगे पैर विचरण करती हैं. माता ब्रह्मचारिणी ने शिव का पति रूप में वरण करने के लिए कठोर तप किया था. इसलिए उनका नाम ब्रह्मचारिणी कहलाया. मां यह स्वरूप जनसामान्य को ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए प्रेरित करता है.
पौराणिक कथाओं के अनुसार, राजा हिमालय के घर एक सुंदर कन्या ने जन्म लिया था. वह कन्या भगवान शिव को अपने पति के रूप में स्वीकारना चाहती थी, इसीलिए नारद जी ने उसे कठोर तप करने का सलाह दिया. नारद मुनि की बात मानकर वह कन्या कठोर तप करने लगी, जिसके कारण उसका नाम ब्रह्मचारिणी या तपश्चारिणी रखा गया. कहा जाता है कि इस कड़ी तपस्या के चलते मां ब्रह्मचारिणी ने हजारों साल तक सिर्फ फल-फूल का सेवन किया था. इतना ही नहीं साग खाकर वह सौ साल तक जीवित रही थीं और भगवान शिव को पाने की तपस्या कर रही थीं. उनका तप देखकर सभी देवी-देवता अचरज में पड़ गए थे. सभी देवी-देवताओं ने उन्हें वरदान दिया कि उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी होंगी और ठीक वैसा ही हुआ.
मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय गुड़हल और कमल का फूल उन्हें अवश्य अर्पित करें. मां ब्रह्मचारिणी को चीनी, मिश्री और पंचामृत का भोग अवश्य लगाना चाहिए. अगर आप मां ब्रह्मचारिणी को प्रसन्न करना चाहते हैं तो उन्हें दूध और दूध से बने व्यंजन जरूर अर्पित करें. अगर आप लंबी आयु और सौभाग्य प्राप्त करना चाहते हैं, तो मां ब्रह्मचारिणी व्रत पर इन सभी चीजों का दान अवश्य करेंआज नवरात्रि का दूसरा दिन है. नवरात्रि के नौ दिनों में मां के नौ रूपों की पूजा-अर्चना की जाती है. नवरात्रि के दूसरे दिन मां के द्वितीय रूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मां के इस स्वरूप की अराधना करने से तप, त्याग, सदाचार, संयम आदि की वृद्दि होती है. मां का आर्शीवाद प्राप्त करने के लिए इस दिन मां ब्रह्मचारिणी की आरती जरूर करें.
मां ब्रह्मचारिणी अत्यंत कल्याणकारी हैं और उनकी आराधना करने से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. नवरात्रि के दूसरे दिन साधना की जाती है, ताकि कुंडलिनी शक्तियों को जागृत किया जा सके. कहा जाता है कि मां ब्रह्मचारिणी अपने भक्तों के सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं तथा भक्तों और सिद्धों के लिए उनकी पूजा करना अनंत फलदायक होता है. पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो भक्त मां ब्रह्मचारिणी के लिए तपस्या करता है उसके अंदर संयम, त्याग, वैराग्य और सदाचार की उन्नति होती है.
ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥
देवी ब्रह्मचारिणी प्रार्थनाः
दधाना कर पद्माभ्यामक्षमाला कमण्डलू.
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता. नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः॥
वन्दे वाञ्छितलाभाय चन्द्रार्धकृतशेखराम्.
जपमाला कमण्डलु धरा ब्रह्मचारिणी शुभाम्॥
गौरवर्णा स्वाधिष्ठानस्थिता द्वितीय दुर्गा त्रिनेत्राम्.
धवल परिधाना ब्रह्मरूपा पुष्पालङ्कार भूषिताम्॥
परम वन्दना पल्लवाधरां कान्त कपोला पीन.
पयोधराम् कमनीया लावणयं स्मेरमुखी निम्ननाभि नितम्बनीम्॥
देवी ब्रह्मचारिणी स्त्रोतः
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्.
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शङ्करप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी.
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
त्रिपुरा में हृदयम् पातु ललाटे पातु शङ्करभामिनी.
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पञ्चदशी कण्ठे पातु मध्यदेशे पातु महेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो.
अङ्ग प्रत्यङ्ग सतत पातु ब्रह्मचारिणी.
जय अम्बे ब्रह्मचारिणी माता. जय चतुरानन प्रिय सुख दाता॥
ब्रह्मा जी के मन भाती हो. ज्ञान सभी को सिखलाती हो॥
ब्रह्म मन्त्र है जाप तुम्हारा. जिसको जपे सरल संसारा॥
जय गायत्री वेद की माता. जो जन जिस दिन तुम्हें ध्याता॥
कमी कोई रहने ना पाए. उसकी विरति रहे ठिकाने॥
जो तेरी महिमा को जाने. रद्रक्षा की माला ले कर॥
जपे जो मन्त्र श्रद्धा दे कर. आलस छोड़ करे गुणगाना॥
माँ तुम उसको सुख पहुँचाना. ब्रह्मचारिणी तेरो नाम॥
पूर्ण करो सब मेरे काम. भक्त तेरे चरणों का पुजारी॥
रखना लाज मेरी महतारी॥