साहित्य से खेल और सिनेमा तक: सहस्राब्दी के पांच प्रेरक चेहरे

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  onikamaheshwari | Date 10-08-2025
The Indian Youth Icons of the 2000s
The Indian Youth Icons of the 2000s

 

साकिब सलीम
 
सहस्राब्दी के पहले दशक में आर्थिक विकास और भारतीय मध्यम वर्ग का उत्थान हुआ. ये प्रतीक एक नए भारत का प्रतिनिधित्व करते थे. मेरी नज़र में पाँच महत्वपूर्ण युवा प्रतीक नीचे सूचीबद्ध हैं.
 

चेतन भगत

मेरे जैसे लोग, जो 2000 के दशक के मध्य में इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़े हैं, चेतन भगत के पहले उपन्यास, "फाइव पॉइंट समवन" के प्रति उस दीवानगी से खुद को जोड़ सकते हैं. 2000 के आसपास, हर कोई इस बात पर अफ़सोस कर रहा था कि नई सहस्राब्दी में भारतीय युवा कम पढ़ रहे हैं. आईआईटी और आईआईएम पासआउट इन्वेस्टमेंट बैंकर भगत ने 2004 में एक उपन्यास लिखा. यह इंजीनियरिंग कॉलेज के छात्रों की कहानी थी. युवाओं, खासकर इंजीनियरिंग कॉलेजों में पढ़ने वाले युवाओं को कुछ ऐसा मिला जिससे वे जुड़ सकते थे.
 
उपन्यास हिट हो गया. मैं यह कह सकता हूँ कि उस समय इंजीनियरों द्वारा इसे किसी भी पाठ्यपुस्तक से ज़्यादा पढ़ा गया था. भगत के उपन्यासों की, हालाँकि साहित्य जगत के दिग्गजों ने आलोचना की थी, लेकिन उन्होंने युवा पीढ़ी को फिर से पाठकों के बीच वापस ला दिया. उनके बाद के उपन्यास, वन नाइट एट कॉल सेंटर, हाफ गर्लफ्रेंड, 3 मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ आदि, सभी बेस्टसेलर साबित हुए. उनके अधिकांश उपन्यासों पर बाद में फ़िल्में भी बनीं, जिनमें 3 इडियट्स भी शामिल है, जिसमें आमिर खान भी थे. नई सहस्राब्दी में, चेतन भगत भारत के पहले बेस्टसेलर लेखक थे.
 
 
सानिया मिर्ज़ा

पी. टी. उषा के बाद, अगर कोई एक भारतीय खिलाड़ी है जो ट्रेंडसेटर होने का दावा कर सकती है, तो वह सानिया मिर्ज़ा ही हैं. 2000 का दशक और कुछ हद तक 2010 का दशक भी इस हैदराबादी लड़की के नाम रहा. मिर्ज़ा सिर्फ़ 18 साल की थीं जब 2005 में वह डब्ल्यूटीए टूर्नामेंट जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं. इसके बाद वह ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट में वरीयता प्राप्त करने वाली पहली भारतीय महिला बनीं, यह उपलब्धि उन्होंने 2006 में ऑस्ट्रेलियन ओपन में हासिल की.
 
2007 में, जब वह 20 साल की थीं, मिर्ज़ा ने अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ एकल रैंकिंग 27 हासिल की. इससे पहले, वह 2003 में विंबलडन जूनियर डबल्स जीत चुकी थीं. उन्होंने डबल्स और मिक्स्ड डबल्स में 6 ग्रैंड स्लैम जीते और डबल्स वर्ग में 91 हफ़्ते तक दुनिया की नंबर 1 खिलाड़ी रहीं. मिर्ज़ा 2000 और 2010 के दशक में सबसे ज़्यादा पहचाने जाने वाले और सबसे ज़्यादा कमाई करने वाले भारतीय खिलाड़ियों में से एक थीं. अपने चरम पर बहुत कम भारतीय क्रिकेटर उनकी लोकप्रियता की बराबरी कर पाए.
 
 
सौरव गांगुली

क्रिकेट प्रेमी भारतीयों के दिमाग में अंकित सबसे यादगार छवियों में से एक है सौरव गांगुली द्वारा 2002 में नेटवेस्ट ट्रॉफी के फाइनल में लॉर्ड्स में इंग्लैंड के खिलाफ जीत का जश्न मनाने के लिए अपनी शर्ट उतारना. हार के जबड़े से मोहम्मद कैफ और युवराज सिंह द्वारा छीनी गई जीत अब भारतीय लोककथाओं का हिस्सा है. 2000 में, मैच फिक्सिंग के आरोपों से भारतीय क्रिकेट हिल जाने के बाद, सौरव गांगुली ने कप्तानी संभाली. उन्होंने पहले ही खुद को सर्वश्रेष्ठ एकदिवसीय बल्लेबाजों और मध्यम तेज गेंदबाजों में से एक के रूप में स्थापित कर लिया था जो मैच जिता सकते थे. लेकिन, उनकी असली चमक कप्तानी में इंतजार कर रही थी.
 
जब गांगुली ने कमान संभाली, तो भारत एक अच्छी टीम थी, लेकिन विश्व विजेता नहीं थी. अपनी कप्तानी में उन्होंने हरभजन सिंह, जहीर खान, युवराज सिंह, मोहम्मद कैफ और कई अन्य जैसे युवाओं को एक नई हत्यारी प्रवृत्ति का संचार करने के लिए समर्थन दिया. लगभग हर क्रिकेट विश्लेषक का मानना है कि एम.एस. धोनी, विराट कोहली और रोहित शर्मा के नेतृत्व में बाद में विश्व कप जीत और हासिल की गई रैंकिंग गांगुली द्वारा रखी गई नींव पर ही बनी है. गांगुली उस नए भारत के प्रतीक थे जिसने कभी हार नहीं मानी और दुनिया को जीत लिया.
 
 
कुमार विश्वास

2000 का दशक दिलचस्प दौर था. जब दुनिया मान रही थी कि इंटरनेट के बढ़ते चलन के चलते युवा साहित्य से दूर हो जाएँगे, तब भारत में नए साहित्यकार उभरकर सामने आए. जब हम इंजीनियरिंग कॉलेज में थे, तो उत्सवों में सबसे ज़्यादा बार कुमार विश्वास की हिंदी कविता "कोई दीवाना कहता है..." सुनाई जाती थी. यकीन मानिए, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में हिंदी कविता पढ़ने-सुनाने का कोई ख़ास चलन नहीं था.
 
यही कुमार विश्वास की ताकत थी. दिलचस्प बात यह थी कि कई बार लोग कवि का नाम नहीं जानते थे, फिर भी प्रेम पत्रों, संदेशों और प्रस्तावों में उस कविता का इस्तेमाल होता था. इंटरनेट और गूगल के उस शुरुआती दौर में कई लड़के अपनी गर्लफ्रेंड को यह तक बता देते थे कि वे जो कविता सुना रहे हैं, वह उनकी लिखी हुई है. उपयोग चाहे जो भी हो, यह कहना गलत नहीं होगा कि 2000 के दशक में कुमार विश्वास की कविताएँ प्रेम के इज़हार के लिए फ़िल्मी गानों और उर्दू शायरी को टक्कर दे रही थीं. कोई आश्चर्य नहीं कि दशक के अंत तक वे देश के सबसे बड़े युवा-आधारित विरोध प्रदर्शनों में से एक - अन्ना हजारे के नेतृत्व वाले इंडिया अगेंस्ट करप्शन आंदोलन - का नेतृत्व कर रहे थे.
 
 
ऋतिक रोशन

कहते हैं, "यकीन करने के लिए देखना ही पड़ता है", और यह बात ऋतिक रोशन द्वारा 2000 के दशक की शुरुआत में हासिल की गई स्टारडम से ज़्यादा जंचती नहीं है. जनवरी 2000 में, जब "कहो ना प्यार है" सिनेमाघरों में रिलीज़ हुई, पूरा देश ऋतिक अभिनीत इस फिल्म की धुन पर नाच रहा था. कुछ समय के लिए, फिल्म पंडितों ने शाहरुख, सलमान, आमिर, अक्षय और बाकी सभी को नकार दिया था.
 
भारत ने हाल ही में ऐसा कुछ नहीं देखा था. जहाँ शाहरुख का उदय धीरे-धीरे हुआ, वहीं ऋतिक को उनकी पहली रिलीज़ के कुछ ही दिनों के भीतर स्टार मान लिया गया. लड़कों ने अपने कपड़े, बाइक, बाल और बाकी सब कुछ उनके नाम पर स्टाइल किया. उन्हें हर विज्ञापन अभियान के लिए साइन किया जा रहा था और ऐसा लग रहा था जैसे देश के लिए इसके अलावा कुछ भी मायने नहीं रखता.