अब्दुल कलाम से क़मर रहमान तक: विज्ञान में चमकते मुस्लिम नाम

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 10-08-2025
Muslim Scientists of Independent India
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आवाज द वॉयस/नई दिल्ली

स्वतंत्र भारत में मुस्लिमों ने देश और राष्ट्र की सेवा विभिन्न क्षेत्रों में की। देश ने इन सेवाओं के लिए उनकी सराहना की और उन्हें सम्मान व प्रतिष्ठा दी. इन्हीं क्षेत्रों में से एक है विज्ञान का क्षेत्र, जिसमें आज़ादी के बाद एक से अधिक वैज्ञानिकों ने अपने आविष्कारों और खोजों से अपना नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज किया। चाहे वह मेडिकल साइंस हो या अंतरिक्ष विज्ञान, भारतीय मुसलमानों ने खुद को इतिहास का हिस्सा बनाया.

यद्यपि यह सत्य है कि देश के विभाजन के बाद शिक्षित मुसलमानों का एक बड़ा हिस्सा सीमा पार चला गया, लेकिन इसके बावजूद खुले वातावरण और बेहतर अवसरों के कारण मुसलमानों ने अन्य क्षेत्रों की तरह विज्ञान में भी सफलता प्राप्त की. यहां ऐसे दस नामों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है जिन्होंने स्वतंत्र भारत में विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धियाँ हासिल कीं.
 
 डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

डॉ. अवुल पाकिर जैनुलाब्दीन अब्दुल कलाम, जिन्हें लोकप्रिय रूप से “भारत के मिसाइल मैन” के रूप में जाना जाता है, ने 22 मई 1989 को चांदीपुर (ओडिशा) से ‘अग्नि’ के सफल प्रक्षेपण के साथ राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित किया. वे भारतीय एयरोस्पेस वैज्ञानिक और राजनेता थे, जिन्होंने 2002 से 2007 तक भारत के राष्ट्रपति के रूप में कार्य किया.
 
1931 में तमिलनाडु के रामेश्वरम में जन्मे, डॉ. कलाम ने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से एयरो इंजीनियरिंग में डिप्लोमा (DMIT) किया और उन्हें विज्ञान के डॉक्टर (D.Sc.) की मानद उपाधि भी प्रदान की गई. वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) में ASL-V मिशन के प्रभारी निदेशक थे, इसके बाद वे हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) स्थित रक्षा अनुसंधान और विकास प्रयोगशाला (DRDL) के निदेशक बने. वे भारतीय विज्ञान अकादमी के फेलो भी रहे.
 
डॉ. कलाम “अग्नि” के जनक हैं — यह स्वदेशी रूप से विकसित 17 मीटर लंबी और 75 टन वजनी बहु-चरणीय मिसाइल है, जिसमें 1000 किलोग्राम का पेलोड है और इसकी मारक क्षमता 1600 से 2500 किलोमीटर तक है. वे 400 वैज्ञानिकों की टीम के साथ इस परियोजना में शामिल थे. उनकी टीम के प्रयासों से भारत ने सात पश्चिमी देशों के “मिसाइल टेक्नोलॉजी कंट्रोल रिजीम” (MTCR) की उन शर्तों को पार कर लिया, जिनका उद्देश्य तीसरी दुनिया के देशों को मिसाइल तकनीक से वंचित रखना था. 
 
प्रमुख अंतरिक्ष वैज्ञानिक के अनुसार, “हमारी स्वदेशी मिसाइल तकनीक, री-एंट्री तकनीक, गाइडेंस और कंट्रोल तकनीक तथा ऑन-बोर्ड कंप्यूटर के साथ, पूर्व या पश्चिम की सर्वोत्तम तकनीक के तुल्य है.” डॉ. कलाम ने DRDL, हैदराबाद में ‘पृथ्वी’ जैसी परियोजनाओं पर भी कार्य किया. भारत के मिसाइल कार्यक्रम में उनके योगदान और मई 1998 में परमाणु परीक्षणों की सफलता के लिए उन्हें रक्षा मंत्री का सलाहकार नियुक्त किया गया और भारत सरकार ने उन्हें देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान “भारत रत्न” प्रदान किया.
 
डॉ. सैयद ज़हूर क़ासिम — पद्मश्री (1974)

डॉ. ज़हूर क़ासिम भारत के अंटार्कटिका मिशन के लिए जाने जाते हैं. 31 दिसंबर 1926 को जन्मे और 20 अक्टूबर 2015 को दिवंगत हुए, वे एक भारतीय समुद्री जीवविज्ञानी थे. उन्होंने भारत के पहले अंटार्कटिक अभियान का नेतृत्व किया और 1981 से 1988 तक सात अन्य अभियानों का मार्गदर्शन किया. 1991 से 1996 तक वे भारत के योजना आयोग के सदस्य रहे.
 
 
1989 से 1991 तक वे जामिया मिलिया इस्लामिया के कुलपति रहे और अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, मदुरै कामराज विश्वविद्यालय, अन्नामलाई विश्वविद्यालय, आईआईटी मद्रास तथा जामिया मिलिया इस्लामिया सहित कई विश्वविद्यालयों में मानद प्रोफेसर रहे. उन्हें भारत सरकार ने पद्मश्री और पद्मभूषण से सम्मानित किया.
 
डॉ. ओबैद सिद्दीकी — पद्मभूषण (1984), पद्मविभूषण (2006)

डॉ. ओबैद सिद्दीकी न्यूरोबायोलॉजी और जेनेटिक्स के विशेषज्ञ थे और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च तथा राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1932 में उत्तर प्रदेश के बस्ती ज़िले में जन्मे, उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से MSc पूरी की और यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो से पीएचडी की.
 
 
उन्होंने कोल्ड स्प्रिंग हार्बर लेबोरेटरी और यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया में पोस्ट-डॉक्टरल शोध किया. 1962 में होमी भाभा के आमंत्रण पर उन्होंने मुंबई के TIFR में आणविक जीवविज्ञान इकाई स्थापित की और 30 साल बाद बेंगलुरु में TIFR के राष्ट्रीय जैविक विज्ञान केंद्र के संस्थापक निदेशक बने. वे भारतीय विज्ञान अकादमी के अध्यक्ष, रॉयल सोसाइटी (लंदन) और यूएस नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज के सदस्य रहे.
 
डॉ. सलीम अली

“भारत के पक्षी पुरुष” के नाम से प्रसिद्ध सलीम मोईज़ुद्दीन अब्दुल अली का जन्म 12 नवंबर 1896 को हुआ था। पक्षी विज्ञान (Ornithology) में उनके योगदान के लिए उन्हें जे. पॉल गेटी वाइल्ड लाइफ कंज़र्वेशन पुरस्कार सहित कई राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मान मिले. आश्चर्यजनक रूप से, उनके पास विश्वविद्यालय की कोई डिग्री नहीं थी। उन्होंने फिन्स बाया नामक पक्षी की खोज की, जिसे सौ साल से विलुप्त माना जा रहा था.
 
 
1941 में उन्होंने The Book of Indian Birds प्रकाशित की, जिसमें रंगीन चित्र और विवरण के साथ पक्षियों की पहचान आम जनता के लिए आसान हो गई. 1948 में उन्होंने एस. डिलन रिप्ले के साथ मिलकर 10 खंडों में Handbook of the Birds of India and Pakistan पर काम शुरू किया.
 
प्रोफेसर ई. ए. सिद्दीक

इब्राहीम अली अबूबकर सिद्दीक भारत के प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने अपने कार्य के माध्यम से उच्च गुणवत्ता वाले चावल की कई नई किस्मों के विकास में योगदान दिया। भारत सरकार ने उनके कार्य के लिए उन्हें 2011 में पद्मश्री से सम्मानित किया. उन्होंने विभिन्न वैज्ञानिक और शैक्षणिक क्षेत्रों में कार्य किया, लेकिन उनका मुख्य शोध क्षेत्र आनुवंशिक अनुसंधान (Genetic Research) रहा, जिसके माध्यम से उन्होंने चावल की कई नई किस्में विकसित कीं। पुसा बासमती 1, पुसा 2-21, पुसा 33, पुसा 4 और पुसा 834 जैसी किस्में उनके नाम से जुड़ी हैं.
 
 
प्रोफेसर सिद्दीक ने मिस्र, वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देशों के साथ-साथ विश्व बैंक के लिए भी अपनी सेवाएं दीं. विश्व बैंक के सलाहकार के रूप में कार्य करते हुए उन्होंने कई परियोजना प्रस्ताव (Project Proposals) तैयार किए.
 
सिब्त हसन ज़ैदी

सिब्त हसन ज़ैदी (अप्रैल 1918 – 5 अप्रैल 2008) एक पैथोलॉजिस्ट और टॉक्सिकोलॉजिस्ट थे, जो प्रायोगिक विषविज्ञान (Experimental Toxicology) में अपने योगदान के लिए जाने जाते हैं। उन्होंने लंदन के हैमरसमिथ अस्पताल में पैथोलॉजी की ट्रेनिंग ली, जहाँ उन्होंने विषविज्ञान में शोध भी किया. प्रशिक्षण पूरा करने के बाद ज़ैदी भारत लौट आए और प्रायोगिक विषविज्ञान में अनुसंधान शुरू किया. उनका काम मुख्य रूप से औद्योगिक विषों के जैविक प्रभावों पर केंद्रित था. उन्होंने पर्यावरणीय और व्यावसायिक स्वास्थ्य खतरों से निपटने के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं में भाग लिया. ज़ैदी ने कई समितियों में सेवाएं दीं, जिनमें विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की समितियाँ भी शामिल थीं, जहाँ उन्होंने विषविज्ञान और जनस्वास्थ्य पर विशेषज्ञ सलाह प्रदान की.
 
 
1977 में, उन्हें अमेरिकन इंडस्ट्रियल हाइजीन एसोसिएशन द्वारा औद्योगिक विष विज्ञान में आजीवन उपलब्धियों और योगदान के लिए विलियम पी. यांट पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
 
1977 से 1993 तक वे इसके संपादकीय बोर्ड के सदस्य भी रहे. 1978 में वेनेज़ुएला सोसाइटी ने उन्हें औद्योगिक चिकित्सा में उनके योगदान के लिए अपना सर्वोच्च सम्मान प्रदान किया. उन्हें व्यावसायिक स्वास्थ्य में योगदान (1975) के लिए सर अर्देशिरलाल दलाल गोल्ड मेडल और भारत सरकार द्वारा पद्मश्री (1977) से सम्मानित किया गया.
 
सैयद एहतेशाम हसनैन

सैयद एहतेशाम हसनैन एक शिक्षाविद और सूक्ष्मजीव विज्ञानी (Microbiologist) हैं. उन्होंने टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी, अमेरिका में कई वर्ष बिताए और 1987 में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इम्यूनोलॉजी (NII) में स्टाफ वैज्ञानिक के रूप में कार्य करने के लिए भारत लौट आए. फरवरी 1999 में, हसनैन को सेंटर फॉर डीएनए फिंगरप्रिंटिंग एंड डायग्नोस्टिक्स (CDFD) के पहले निदेशक के रूप में नियुक्त किया गया। 2005 से 2011 तक उन्होंने हैदराबाद विश्वविद्यालय के 7वें कुलपति (Vice-Chancellor) के रूप में सेवाएं दीं.
 
 
2 सितंबर 2016 को उन्होंने जामिया हमदर्द, नई दिल्ली के कुलपति का कार्यभार संभाला और 2021 तक इस पद पर रहे. 2011 से 2018 तक वे भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, दिल्ली (IIT Delhi) में एक आमंत्रित प्रोफेसर रहे. वर्तमान में वे IIT दिल्ली में SERB के पहले पांच राष्ट्रीय विज्ञान अध्यक्षों (National Science Chair) में से एक के रूप में कार्यरत हैं. उन्हें संघीय गणराज्य जर्मनी का ऑर्डर ऑफ मेरिट और 2006 में भारत के राष्ट्रपति द्वारा पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया.
 
चत्तूर मोहम्मद हबीबुल्लाह

चत्तूर मोहम्मद हबीबुल्लाह एक प्रसिद्ध गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट थे, जो भारत में पाचन तंत्र के चिकित्सा क्षेत्र में अपने योगदान के लिए जाने जाते थे। उनका जन्म 1937 में आंध्र प्रदेश में हुआ. 1958 में उन्होंने गुंटूर मेडिकल कॉलेज से एमबीबीएस किया, इसके बाद आंध्र विश्वविद्यालय से जनरल मेडिसिन (MD) में मास्टर की डिग्री और पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च, चंडीगढ़ से डीएम किया.
 
 
उन्होंने अपने करियर की शुरुआत उस्मानिया मेडिकल कॉलेज के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजी विभाग में सहायक प्रोफेसर के रूप में की. 1975 से 1992 तक वे प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष रहे, और इसके बाद 1994 तक कॉलेज के प्रिंसिपल के पद पर कार्यरत रहे.
 
उन्होंने सेंटर फॉर लिवर रिसर्च एंड डायग्नॉस्टिक्स, दक्कन कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज़, हैदराबाद के निदेशक और आंध्र प्रदेश सरकार के मेडिकल एजुकेशन निदेशक के रूप में भी सेवाएं दीं.
 
वे 1997 में नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज, इंडिया के फेलो बने. उनके नाम पर कई वैज्ञानिक प्रकाशन दर्ज हैं. 1997 में उन्हें ख्वारिज़्मी इंटरनेशनल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया और 2001 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया. 10 जुलाई 2010 को हृदयाघात (हार्ट अटैक) के कारण उनका निधन हो गया.
 
क़मर रहमान

क़मर रहमान एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक हैं, जिन्होंने पिछले 40 वर्षों में नैनो कणों (Nanoparticles) के शारीरिक प्रभावों को समझने के लिए व्यापक शोध किया है। वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एस्बेस्टोसिस, स्लेट की धूल और अन्य घरेलू व पर्यावरणीय कण प्रदूषण के प्रभावों तथा व्यावसायिक स्वास्थ्य (Occupational Health) में सुधार के उपायों पर अपने कार्य के लिए जानी जाती हैं.
 
 
डॉ. क़मर रहमान का जन्म स्वतंत्रता से एक वर्ष पूर्व शाहजहाँपुर के एक प्रतिष्ठित विद्वान परिवार में हुआ, जो शाहजहाँ के समय अफगानिस्तान से भारत आए थे. परिवार में सख़्त पर्दे की परंपरा होने के बावजूद उन्होंने विज्ञान के क्षेत्र में उल्लेखनीय सफलता प्राप्त की. वे भारत की शीर्ष दस महिला वैज्ञानिकों की सूची में शामिल रही हैं और भारत की पहली वैज्ञानिक हैं जिन्हें 600 वर्ष पुरानी प्रतिष्ठित रोस्टॉक विश्वविद्यालय, जर्मनी ने मानद डॉक्टरेट (Honorary Doctorate) की उपाधि से सम्मानित किया। यही वह मंच है जहां विज्ञान जगत की महान हस्ती आइंस्टीन को भी सम्मानित किया गया था.
 
उन्हें विज्ञान भूषण और यश भारती पुरस्कार जैसे उच्च सम्मान भी प्राप्त हुए। उनके निर्देशन में 45 विद्यार्थियों ने अपनी पीएचडी अनुसंधान पूरा किया है। डॉ. क़मर रहमान विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के परामर्श पैनल की सदस्य हैं और वर्तमान में जर्मनी की रोस्टॉक यूनिवर्सिटी तथा लखनऊ स्थित एमिटी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर कार्यरत हैं.
 
डॉ. इस्रार अहमद – भौतिक विज्ञानी

डॉ. इस्रार अहमद, निदेशक, सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ साइंस, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू), अलीगढ़, एक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक हैं। वे सैद्धांतिक नाभिकीय भौतिकी और क्वांटम स्कैटरिंग थ्योरी के प्राधिकृत विद्वान माने जाते हैं.
 
इसके अलावा, वे 1986 से एएमयू की उर्दू मासिक पत्रिका ‘तहज़ीबुल अख़लाक़’ और हिंदी मासिक ‘निशांत’ का संपादन कर रहे हैं. 19 दिसंबर 1940 को जन्मे डॉ. इस्रार अहमद, श्री मुख़्तार अहमद के पुत्र हैं.
 
1959 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद उन्होंने स्नातकोत्तर शिक्षा प्राप्त की और एएमयू से भौतिकी में पीएच.डी. की उपाधि हासिल की. 1961 में उन्होंने एएमयू में व्याख्याता के रूप में कार्यारंभ किया और 1984 से भौतिकी विभाग के अध्यक्ष के रूप में सेवाएं दे रहे हैं. उनके अब तक 48 शोध-पत्र अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं. उनके निर्देशन में कई शोधार्थियों को एम.फिल और पीएच.डी. की उपाधि प्रदान की गई है.
 
 
डॉ. अहमद, इटली के ट्राइस्टे स्थित अंतर्राष्ट्रीय सैद्धांतिक भौतिकी केंद्र (International Center for Theoretical Physics) के सहयोगी सदस्य हैं, जिसकी स्थापना नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. अब्दुस सलाम ने की थी.
 
वे न्यूयॉर्क एकेडमी ऑफ साइंसेज़ और इंडियन फिजिक्स एसोसिएशन के भी सदस्य हैं. उन्होंने 26–28 मार्च 1987 को ‘धार्मिक सेमिनार और विज्ञान शिक्षा’ विषय पर सम्मेलन तथा 26–31 दिसंबर 1989 को परमाणु ऊर्जा विभाग (DAE) संगोष्ठी का आयोजन एएमयू, अलीगढ़ में किया.
 
उन्होंने मुस्लिम धार्मिक मदरसों के शिक्षकों के लिए कई विज्ञान परिचयात्मक पाठ्यक्रम भी संचालित किए.इसके अतिरिक्त, वे हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी में विज्ञान कथा लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं.