-फ़िरदौस ख़ान
दिल्ली में जामा मस्जिद के पास स्थित मीना बाज़ार देश के सबसे पुराने बाज़ारों में शुमार होता है. मीना बाज़ार के बारे में बहुत सी किंवदंतियां हैं. इसमें कितनी सच हैं और कितनी झूठ, इस बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता है. हां, इतना ज़रूर है कि शाही औरतों के लिए शुरू किए गये इस बाज़ार में सदियों से आम औरतें भी ख़रीददारी कर रही हैं. औरतें ही नहीं, बल्कि मर्द भी ख़ूब ख़रीददारी कर रहे हैं.
इस बाज़ार की शुरुआत में जहां सिर्फ़ औरतें ही सामान बेच सकती थीं, सदियों से उस बाज़ार में मर्द सामान बेच रहे हैं. वक़्त के साथ कितना कुछ बदल गया. कहा जाता है कि सबसे पहले मीना बाज़ार की शुरुआत तुर्की में हुई थी. फिर तुर्की की तर्ज़ पर हिन्दुस्तान में मुग़लकाल में इसकी शुरुआत हुई. मुग़ल सम्राट हुमायूं ने इसकी शुरुआत की थी और बादशाह अकबर ने इसे ख़ूब बढ़ावा दिया.
इस बाज़ार की सबसे ख़ास बात यह थी कि इसमें सामान बेचने वाली भी औरतें होती थीं और सामान ख़रीदने वाली भी औरतें ही होती थीं. इस बाज़ार में मर्दों के आने पर सख़्त पाबंदी थी. हां, सिर्फ़ बादशाह, शहज़ादे और कुछ ख़ास लोग ही इस बाज़ार में आ सकते थे.
इस बाज़ार को क़ायम करने का मक़सद यह था कि शाही परिवार की सख़्त परदे में रहने वाली औरतें इस ज़नाने बाज़ार से सामान ख़रीद सकें. इस बाज़ार में हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि दुनिया के मुख़तलिफ़ देशों की नायाब चीज़ें और रेशमी कपड़ा मिलता था.
कहा तो यह भी जाता है कि शाहजहां और मुमताज़ की पहली मुलाक़ात इसी बाज़ार में हुई थी, जिसने उनकी ज़िन्दगी को बदल कर रख दिया. मीना बाज़ार की इस मुलाक़ात का नतीजा आगरा में जमना के किनारे खड़ा सफ़ेद संगमरमर का ताजमहल आज भी उनकी मुहब्बत की गवाही दे रहा है.
मीना बाज़ार इतना मशहूर है कि साल 1968 में आई फ़िल्म ‘क़िस्मत’ के एक गाने में भी इसका ज़िक्र है. बानगी देखें-
आई हो कहां से गोरी आंखों में प्यार लेके
चढ़ती जवानी की पहली बहार लेके
दिल्ली शहर का सारा मीना बाज़ार लेके...
मीना बाज़ार में इत्र, क़ुरआन, इस्लामी किताबें, तस्बीह, टोपियां, मुसल्ले, ख़ूबसूरत लिबास, बुर्क़े, हिजाब, चादर सब मिल जाता है. यहां बच्चों से लेकर महिलाओं और पुरुषों के बहतरीन कपड़े मिलते हैं. ख़ूबसूरत नक़्क़ाशी वाले बर्तन और सजावटी सामान भी ख़ूब मिलता है.
यहां ज़ेवरात और मेकअप का सामान भी मिलता है. बेडशीट, कम्बल और पर्स, बैग, सूटकेस आदि भी यहां मिलते हैं. यहां बिजली का सामान भी मिलता है. बच्चों का सामान और खिलौने भी मिलते हैं. यह कहना क़तई ग़लत न होगा कि यहां घर के इस्तेमाल की बहुत सी चीज़ें मिल जाती हैं.
मुहम्मद अली बताते हैं कि यहां के बहुत से दुकानदार तो हमेशा एक ही चीज़ बेचते हैं मसलन वे बर्तन बेचते हैं, तो बर्तन ही बचते हैं, लेकिन बहुत से दुकानदार मौसम के हिसाब से सामान बदल देते हैं. वे सर्दी के मौसम में गर्म कपड़े, रज़ाई और कम्बल बचते हैं, तो गर्मी के मौसम में पंखे और कूलर आदि बेचते हैं.
दिल्ली में आने वाले पर्यटक मीना बाज़ार ज़रूर आते हैं. इनमें विदेशी पर्यटकों की तादाद भी बहुत ज़्यादा है. विदेशी लोग इत्र और नक़्क़ाशी वाली चीज़ें ख़रीदना ही ज़्यादा पसंद करते हैं, क्योंकि घरेलू सामान की उन्हें कोई ज़रूरत नहीं होती.मुम्बई की जन्नत बताती हैं कि वे जब भी दिल्ली आती हैं, तो मीना बाज़ार ज़रूर आती हैं. यहां आकर उनके कई काम हो जाते हैं.
सबसे पहले वे जामा मस्जिद जाती हैं और नमाज़ पढ़ती हैं. फिर वे हज़रत सैयद अबुल क़ासिम उर्फ़ हरेभरे शाह साहब और हज़रत सरमद शहीद की दरगाह पर जाती हैं. फिर वे मीना बाज़ार में घूमती हैं और ख़रीददारी करती हैं. इसके बाद वे यहां मिलने वाली लज़ीज़ चीज़ें खाती हैं. वे कहती हैं कि यहां का ज़ायक़ा कहीं और नहीं मिलता.
कैसे पहुंचे
बस से जामा मस्जिद स्टॉप पर उतरें. मेट्रो से जामा मस्जिद मेट्रो स्टेशन पर उतरें. यह दिल्ली मेट्रो की बैंगनी लाइन पर एक टर्मिनस स्टेशन है.
(लेखिका शायरा, कहानीकार व पत्रकार हैं)