कश्मीर की सरज़मीं पर भाईचारे की मिसाल: सिख ग्रामीण ने मुस्लिम कब्रिस्तान के लिए दी अपनी ज़मीन

Story by  आवाज़ द वॉयस | Published by  [email protected] | Date 23-05-2025
An example of brotherhood on the land of Kashmir: Sikh villager gives his land for a Muslim cemetery
An example of brotherhood on the land of Kashmir: Sikh villager gives his land for a Muslim cemetery

 

एहसान फाजिली / श्रीनगर

जब धार्मिक पहचान के नाम पर दुनिया के कई हिस्से बंट रहे हैं, उस समय कश्मीर घाटी से एक ख़बर आई है, जिसने यह साबित कर दिया कि इंसानियत और सांप्रदायिक सौहार्द अब भी ज़िंदा है.दक्षिण कश्मीर के पुलवामा जिले के त्राल क्षेत्र के सैमोह गांव में एक सिख नागरिक ने ऐसा कार्य किया है, जिसने समूचे समाज को एक नई दिशा और उम्मीद दी है.

यह कहानी है पुशविंदर सिंह की — एक सेवानिवृत्त शिक्षक, सामाजिक कार्यकर्ता, पूर्व ट्रेड यूनियन नेता और हाल ही में चुनाव लड़ने वाले प्रत्याशी की.उन्होंने गांव के मुस्लिम समुदाय के लिए अपनी निजी ज़मीन का एक हिस्सा स्वेच्छा से दान कर दिया, जिससे स्थानीय कब्रिस्तान तक एक समुचित रास्ता बनाया जा सके.

kashसमस्या जो वर्षों से खड़ी थी

सैमोह गांव के शेख मोहल्ला में स्थित मुस्लिम समुदाय का कब्रिस्तान लंबे समय से एक असुविधा का कारण बना हुआ था.कब्रिस्तान के चारों ओर की ज़मीनें निजी स्वामित्व में थीं और सभी ज़मीन मालिकों ने अपने-अपने हिस्सों को बाड़बंदी कर घेर लिया था.

इस कारण शव यात्रा निकालने में भारी कठिनाई आती थी.कई बार तो जनाज़े को पुशविंदर सिंह के पुराने घर के सामने से गुज़ारना पड़ा.

यह दृश्य पुशविंदर के दिल को छू गया.वे महसूस करते थे कि यह समस्या केवल एक मार्ग की नहीं, बल्कि सामाजिक समझ और सहयोग की है.प्रशासनिक स्तर पर भी समाधान की कोशिशें नाकाम रही थीं.

ऐसे में पुशविंदर सिंह ने वो किया जो बहुत कम लोग सोचते हैं — अपनी ज़मीन का हिस्सा मुस्लिम कब्रिस्तान के रास्ते के लिए दे दिया.

दिल से निकला फ़ैसला

पुशविंदर सिंह ने 6 फीट x 90 फीट की अपनी ज़मीन, जो कब्रिस्तान के बगल में स्थित थी, बिना किसी अपेक्षा के दान कर दी.यह ज़मीन उनके पुराने घर के सामने थी, जिसे अब कब्रिस्तान तक पहुँचने वाले रास्ते के रूप में उपयोग में लाया गया.स्थानीय प्रशासन ने भी तत्परता दिखाते हुए इस रास्ते को टाइल्स से ढकवा दिया, ताकि यह हर मौसम में उपयोग के योग्य बना रहे.

उनका यह कदम न केवल गांव के लोगों के लिए राहत का कारण बना, बल्कि यह कश्मीर में सांप्रदायिक सौहार्द और इंसानी एकता का प्रतीक भी बन गया.

साहित्य और आध्यात्म से प्रेरणा

पुशविंदर सिंह के इस निर्णय के पीछे न केवल मानवीय संवेदनाएं थीं, बल्कि वे गहराई से कश्मीरी संस्कृति और सूफी विचारधारा से भी प्रभावित हैं.उन्होंने कश्मीरी शायर महजूर का उल्लेख करते हुए कहा कि जैसे उनकी कविताएं हिंदू-मुस्लिम एकता को दूध और शक्कर जैसा बताती हैं, वैसे ही समाज में सभी धर्मों का मेल ज़रूरी है.

उन्होंने गुरु गोविंद सिंह की बात दोहराई — “देखो, सभी मानव जातियाँ एक हैं” — और इसे अपने कर्म का मार्गदर्शन बताया.उनके अनुसार यह ज़मीन दान करने का निर्णय किसी धार्मिक प्रचार का हिस्सा नहीं, बल्कि "हिंदू-मुस्लिम-सिख इत्तेहाद" (एकता) के संदेश को ज़मीन पर उतारने का एक प्रयास है.

एक राजनेता, जो सिर्फ़ वादे नहीं करता

सितंबर 2024 में हुए जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव, जो अनुच्छेद 370 के हटने और राज्य के पुनर्गठन के बाद पहले चुनाव थे, उनमें पुशविंदर सिंह ने त्राल निर्वाचन क्षेत्र से ऑल पार्टीज़ सिख कोऑर्डिनेशन कमेटी (APSSC) के उम्मीदवार के रूप में हिस्सा लिया.

त्राल क्षेत्र में लगभग 80,000 मतदाता हैं, जिनमें 13,000 सिख समुदाय के हैं.चुनाव के दौरान उन्होंने मुस्लिम मतदाताओं से वोट मांगे, यह कहते हुए कि वे "सभी समुदायों की सेवा करेंगे." उन्होंने यह वादा केवल भाषणों में नहीं, बल्कि अपने कर्मों से निभाकर दिखाया.

कश्मीर की ज़मीन पर साझी संस्कृति की खुशबू

पुशविंदर सिंह का यह कदम कश्मीर की साझा सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण है.यह उस संस्कृति की कहानी है जिसमें सूफी संतों ने कश्मीर को एकता और करुणा का संदेश दिया, और आज भी कुछ लोग उस पर अमल कर रहे हैं.सैमोह गांव का यह मार्ग अब केवल एक रास्ता नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए सांप्रदायिक सौहार्द और इंसानी रिश्तों की मिसाल बन गया है.

जब एक समाज बंटवारे, नफ़रत और संकीर्ण सोच से जूझ रहा हो, तब पुशविंदर सिंह जैसे लोग उम्मीद की लौ जलाते हैं.वे हमें याद दिलाते हैं कि धर्म दीवार नहीं, सेतु हो सकता है.एक सिख द्वारा मुस्लिम समुदाय के लिए यह छोटा-सा रास्ता कश्मीर की वादियों में बड़ा संदेश दे गया — "इंसानियत ज़िंदा है."