मस्जिदों में इफ़्तार का गणित

Story by  फिदौस खान | Published by  [email protected] | Date 12-03-2024
Mathematics of Iftar in Mosques
Mathematics of Iftar in Mosques

 

-फ़िरदौस ख़ान

रमज़ान का मुक़द्दस महीना शुरू हो चुका है. रमज़ान में बहुत सी मस्जिदों में इफ़्तार का इंतज़ाम किया जाता है. बहुत से रोज़ेदार मस्जिदों में ही रोज़ा खोलना पसंद करते हैं. इसलिए वे अपने घरों से इफ़्तारी लाते हैं. बहुत से लोग बाज़ार से इफ़्तारी लाते हैं. वे इफ़्तार के लिए इतना सामान ले आते हैं कि वे ख़ुद भी रोज़ा खोल लें और दूसरों को भी इफ़्तार करवा दें. 

रमज़ान में अमूमन हर घर में शाम को इफ़्तारी बनाई जाती है. घरों से भी मस्जिदों में इफ़्तार का सामान भेजा जाता है. इफ़्तारी में बहुत से पकवान शामिल होते हैं. चूंकि खजूर से रोज़ा खोलना सुन्नत है. इसलिए इफ़्तारी में सबसे पहले खजूर का ही नाम आता है.

खजूर से रोज़ा खोलने के बाद शिकंजी और तरह-तरह के शर्बत ही भाते हैं. इनमें रूह अफ़ज़ा सबसे आगे रहता है, वह चाहे रूह अफ़ज़ा का सादा शर्बत हो या फिर दूध रूह अफ़ज़ा हो या नीम्बू के शर्बत में मिला रूह अफ़ज़ा हो.

दिनभर के रोज़े के बाद इन्हीं से गले को तरावट मिलती है. इसके बाद दीगर चीज़ों की बारी आती है. फलों की चाट रोज़े के बाद क़ूवत और ताज़गी का अहसास करवाती है. ज़ायक़ेदार पकौड़ियां, समोसे, कबाब, मसालेदार चने और चने की दाल आदि इफ़्तारी में शामिल रहते हैं.

बहुत से लोग रमज़ान में एतिकाफ़ में बैठते हैं. ऐसे में उनके लिए रात के खाने और सहरी का भी इंतज़ाम किया जाता है. एतिकाफ़ में बैठने वालों के घर से खाने-पीने का सामान आता ही है.

इसके अलावा अन्य लोग भी मस्जिदों में खाना और सहरी का सामान भेजते हैं. रात के खाने में बिरयानी, नहारी, क़ौरमा, क़ीमा, कोफ़्ते, कबाब और गोश्त से बने कई तरह के लज़ीज़ पकवान शामिल रहते हैं.

सहरी के लिए दूध, डबल रोटी, सेवइयां, शाही टुकड़े, खीर, फिरनी और हलवा-परांठा आदि भेजा जाता है. लोग बिरयानी की देग़ बनवाते हैं और फिर इसे मस्जिदों में भिजवाते हैं. बहुत से लोग रमज़ान के दौरान मस्जिदों में खजूर, शर्बत की बोतलें और खाने का दीगर सामान भी तक़सीम करते हैं.       

बहुत से लोग मस्जिदों में पूरी इफ़्तार न भेज कर कुछ चीज़ें ही भेजते हैं, मसलन किसी ने खजूर भेज दिए, किसी ने चाट भेज दी, किसी ने पकौड़ियां भेज दीं, किसी ने समोसे भेज दिए, किसी ने कबाब भेज दिए तो किसी ने चने या चने की दाल आदि भेज दी. बहुत से लोग रोज़ेदारों के लिए मस्जिदों में शर्बत और ठंडे पानी का इंतज़ाम करते हैं. जिन लोगों के घर दूर हैं, वे भी अकसर मस्जिदों में ही रोज़ा खोल लेते हैं.

मौलाना अब्दुल रज़्ज़ाक़ क़ासमी बताते हैं कि ज़्यादातर लोग मस्जिद में इफ़्तारी लेकर आते हैं. वे अन्य रोज़ेदारों को भी इफ़्तार की दावत देते हैं. इसके अलावा इलाक़े के कई घरों से भी इफ़्तारी आ जाती है. ऐसे में मुसाफ़िरों को भी इफ़्तार मिल जाती है. सबलोग मिलजुल एक परिवार के सदस्यों की तरह इफ़्तार करते हैं.

वे आगे कहते हैं कि रमज़ान में इफ़्तारी और खाना तक़सीम करना बहुत ही अच्छा और नेक काम है. इस तरह ग़रीब लोगों को भी ज़ायक़ेदार इफ़्तारी और लज़ीज़ खाना मिल जाता है. कुछ लोग खाने के पैकेट बांटते हैं, जिसे रोज़ेदार अपने घर लेकर जा सकते हैं.

रमज़ान में गली, मोहल्लों और मस्जिदों के आसपास खाने- पीने का सामान ख़ूब बिकता है. ऐसे भी बहुत से घर हैं, जिनमें इफ़्तार का सामान बाज़ार से ही आता है. बहुत से कारोबारी और अपने घर से दूर रहने वाले लोग इन्हीं दुकानों से इफ़्तारी और सहरी लेते हैं. दिल्ली की जामा मस्जिद इलाक़े में रमज़ान के दौरान होटलों पर सहरी और इफ़्तार का ख़ास इंतज़ाम किया जाता है. इसलिए रमज़ान के दौरान यहां रातभर होटल खुले रहते हैं.

(लेखिका आलिमा हैं और उन्होंने फ़हम अल क़ुरआन लिखा है)