लोग और लोकाचारः फलों का राजा लेकिन आम लोगों का साथी, आम बहुत है खास

Story by  मंजीत ठाकुर | Published by  [email protected] | Date 21-05-2023
आम बहुत है खास
आम बहुत है खास

 

मंजीत ठाकुर

आम जिस तरह से आम लोगों का पसंदीदा फल है और हर जगह उपलब्ध है इसलिए यह कहना कि भारत में सबसे ज्यादा खाया जाने वाला फल आम ही है, तो कहना गलत नहीं होगा. सिर्फ पके हुए रूप में हप्प से गप्प कर जाने वाला रसीला और खुशबूदार आम फल आम लोगों की जिंदगी का हिस्सा है.

सोचिए, जिस गरीब को सब्जी मुहाल हो वह क्या खाता होगा!रोटी के साथ अचार. छोटी कैरियों से कूटकर खट्टे अचार बनाने से लेकर बड़े-बड़े फांकों से मसालेदार अचार बनाने की कला तो हिंदुस्तान ही नहीं, दक्षिण एशिया के लगभग हर घर की स्त्री जानती है. आम कच्चा रहे तो अचार और पक जाए तो फल, बहुत पक जाए तो फिर उससे बनता है अमावट. बच्चों की मिठाई.

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बच्चे अमावट (आम पापड़) से खुश हो जाते हैं. अचार और अमावट को खाद्य प्रसंस्करण के प्राचीन भारतीय ज्ञान हैं. आखिर भारत में आम को चार हजार से अधिक सालों से उगाया जा रहा है. और हिंदुस्तान के किस गांव की कल्पना आप बगैर अमराई के कर लेंगे? बहरहाल, यूरोपियन देशों के कोई चार सदी पहले ही इस कमाल के फल का स्वाद मिला है.

वैज्ञानिकों ने ऐसे जीवाश्मिक सुबूत खोज निकाले हैं जिनसे साबित होता है कि भारतीय उपमहाद्वीप में आम के पहली मौजूदगी आज से ढाई से तीन करोड़ साल पहले ही पूर्वोत्तर या म्यांमार से सटे इलाके में हुई थी और वहां से यह फैलता हुआ दक्षिण भारत तक पहुंच गया.

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आम के पत्तों को पवित्र माना जाता है और इसके बगैर मंगल कार्य पूरे नहीं होते हैं. इस बारे में लिखना बेकार ही है.

संस्कृत में जो आम्रफल था, वही वैदिक साहित्य में रसाल और सहकार के रूप में जाना जाता है. वृहदारण्यक उपनिषद में आम के पेड़ को काटने की निंदा की गई है.

सवाल है कि संस्कृत का आम्र या अंब और प्राकृत-पालि का आम अंग्रेजी में जाकर मैंगो कैसे बन गया. असल में तमिल में आम को कहते थे आम-काय जो उच्चारण दोष में जाकर धीरे-धीरे मामकाय बन गया. मलयालम में मामकाय घिसकर मांगा कहा जाने लगा. पुर्तगाली जब केरल पहुंचे तो उनका साबका आम से पड़ा और उन्होंने इसको मैंगो कहकर बाकी दुनिया के सामने पेश किया.

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आम का भारतीय संस्कृति में कितनी अहमियत है इसके बारे में कुछ उल्लेख करना ही काफी होगा. भगवान बुद्ध को उनके शिष्यों ने एक अमराई भेंट की थी ताकि वहां वह रुकें तो उन्हें गर्मी न सताए. इसके अलावा वैशाली की नगरवधू आम्रपाली को भी आम से जुड़े सम्मान से जोड़ा गया था. कामदेव के प्रसिद्ध प्रेम का बाण, आम के फूलों (मंजर) का बना हुआ माना जाता है.

भारत में अप्रैल के महीने में मॉनसून-पूर्व बारिश होती है जिसे मैंगो शावर कहते हैं. बंगाल की खाड़ी में उठने वाले तूफान काल बैशाखी के वजह से होने वाली इन बारिशों में कमजोर आम गिर जाते है और बाकी के बचे आमों को पकने में मदद मिलती है इसलिए इस बारिश को मैंगो शावर कहते हैं.

मेसिडोनिया से शासक सिकंदर ने जब भारत पर हमला किया तो वापसी में कई तरह के फल भी ले गया था, और उनमें से एक था आम. बौद्ध काल में आम के फलों का लेन-देन कूटनीतिक आचार-विचार का प्रतीक था.

मौर्य राजाओं ने सड़कों के किनारे आम के पेड़ लगवाए.

मध्यकालीन शासकों में, अलाउद्दीन खिलजी को भी आम बहुत पसंद थे और कई ऐसे दस्तावेज मिलते हैं जिसमें वह आम का भोज दिया करता था. प्रसिद्ध फारसी कवि अमीर खुसरो ने आम को नगजा तरीन मेवा हिंदुस्तान कहा, यानी हिंदुस्तान का सबसे अच्छा फल. 

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मुगल बादशाहों का आम से लगाव तो बहुत प्रसिद्ध है और कई इतिहासकारों ने इसका ब्योरा दिया है.

यहां तक कि शेरशाह सूरी से परास्त होकर काबुल की ओर भागते समय भी हुमायूं ने इस बात का ध्यान रखा कि उसे नियमित तौर पर आम मिलते रहें. अकबर ने दरभंगा के पास बहुत बड़े लाखी बाग का निर्माण किया, जिसमें एक लाख से अधिक आम के पेड़ थे. यह तोतापुरी, रतौल और महंगे केसर सहित आमों की कलम लगाने के शुरुआती उदाहरणों में से एक है.

हालांकि, सिंहासन के लिए मुगल बाप-बेटों में काफी लड़ाई हुई थी और इसके काफी किस्से इतिहास की किताबों में हैं. फिल्मी ही सही, एक किंवदंती यह भी है कि अनारकली नामकी नर्तकी के लिए भी सलीम (जहांगीर) और अकबर भिड़ गए थे. नौबत युद्ध तक की आ गई थी. अनारकली की कहानी सच्ची है या झूठी, यह तो नहीं मालूम लेकिन शाहजहां और उसके बेटे औरंगजेब के बीच आमों की लिए तरकार छिड़ गई थी.

असल में एक बार औरंगजेब ने बाग से तुड़वाए सारे आम अपने महल में रखवा लिए थे जो उसके पिता और शासक शाहजहां को नागवार गुजरा और उसने औरंगज़ेब को घर में नज़रबंद कर दिया. बाद में, औरंगजेब ने फारस के शाह अब्बास को उत्तराधिकार की लड़ाई में अपने पक्ष में करने के लिए उपहार में आम भिजवाए थे.

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वेबसाइट द बेटर इंडिया में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, मुगल काल में आम पन्ना, आम का लौज और आम मीठा पुलाव जैसे व्यंजन मुगल काल में मुगल दरबारी खानसामों ने विकसित किए. नूरजहां अपनी मशहूर शराब तैयार करने के लिए आम और गुलाब के मिश्रण का इस्तेमाल करती थी.

पीला-सुनहरा चौसा आम हुमायूं पर शेर शाह सूरी की जीत का जश्न मनाने के लिए पेश किया गया था, जबकि जायकेदार दशहरी आम के जन्म का श्रेय रोहिल्ला सरदारों के पास है.

दंतकथा है कि मराठों के पेशवा, रघुनाथराव पेशवा ने मराठा वर्चस्व के संकेत के रूप में 1करोड़ आम के पेड़ लगाए. और किस्सा है कि इन्हीं पेड़ों में से किसी एक पेड़ का फल पुर्तगालियों के हाथ कलम के जरिए अल्फांसो में बदल गया, जिसे देशज भाषा में हापुस कहते हैं.

आम स्वाद का, मंगल का, सौभाग्य और समृद्धि का प्रतीक है. हिंदू कर्मकांडों में आम के पल्लवों का खास इस्तेमाल है.

हम में से अधिकतर लोगों ने गरमी की दोपहरों में अमराइयों में चांदमारी करके टिकोले गिराए होंगे, हममें सेअधिकतर लोगों का बचपन अमराइयों में मचान पर सोकर आम की रखवाली और हवा चलने पर गिरे हुए आमों को चुनने में भी बीता होगा.

आम, हमारे लिए आम नहीं, बेहद खास है.